उत्तराखंड

uttarakhand

आसमान में भी सुरक्षित नहीं ये विलुप्त होती प्रजाति, खाद्य श्रृंखला की है महत्वपूर्ण कड़ी

By

Published : Feb 4, 2019, 6:51 AM IST

Updated : Feb 4, 2019, 1:16 PM IST

80 के दशक में भारत में गिद्धों की संख्या 8 करोड़ थी, लेकिन आज गिद्धों की संख्या में 99 प्रतिशत की तेजी से गिरावट आई है. गिद्धों की संख्या में गिरावट आने का पता सबसे पहले पकिस्तान में चला.

रामनगर:गिद्ध हमारे जीवन के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं शायद इसका कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता.गिद्ध पर्यावरणीय संतुलन के लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी हैं. लेकिन इन दिनों गिद्धों की लगातार घटती संख्या वाकई में एक चिंता का विषय है. इस ओर अगर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में गिद्धों की प्रजाति समाप्त हो जाएगी. जिसका सीधी असर पर्यावरण संतुलन पर पड़ेगा. जिससे मानव जीवन पर भयंकर बीमारियों का संकट खड़ा हो जाएगा.


गौरतलब है कि 80 के दशक में भारत में गिद्धों की संख्या 8 करोड़ थी, लेकिन आज गिद्धों की संख्या में 99 प्रतिशत की तेजी से गिरावट आई है. गिद्धों की संख्या में गिरावट आने का पता सबसे पहले पकिस्तान में चला. जहां वैज्ञानिकों ने रिसर्च के दौरान पता लगाया कि इनके कम होने का कारण एक दर्द निवारक इंजेक्शन है. जिसे डाईक्लोफिनिक्स सोडियम कहते हैं. यह इंजेक्शन मवेशियों में लगाया जाता है. जिससे 24 से 48 घंटे के भीतर मवेशी की मौत हो जाती है और जब उस मवेशी को गिद्ध खा है तो उसकी किडनी इस दवाई को प्रोसेस नहीं कर पाती. जिसके कारण गिद्ध को विस्लर गाउट हो जाता है और वह मर जाता है.


गिद्धों की कम होती संख्या रामनगर या भारत की नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए चिंता का कारण है.दरअसल अजीब सी शक्ल वाला यह पक्षी पर्यावरण की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. गिद्ध खाद्य श्रंखला की एक महत्वपूर्ण कड़ी है. इन्हें पर्यावरण का सफाई कर्मी भी कहा जाता है. इन्हें लाशों को खाने वाला माहिर पक्षी भी कहते हैं. बताते चले की गिद्ध मरे हुए जानवरों को खाकर पर्यावरण में फैलने वाली दुर्गन्ध और बैक्टीरिया से बचाते हैं. जिसके कारण पर्यावरण स्वच्छ बना रहता है और मनुष्य भी तरह-तरह की बीमारियों जैसे हेजा,प्लेग और रेबिज जैसी खतरनाक बीमारियों से बचा रहता है.

खत्म होते गिद्द.


गिद्धों की कमी के कारण आज सड़कों पर मवेशियों की लाशें सड़ी-गली हालत में देखी जा सकती हैं. मृत जानवरों को आवारा कुत्ते अपना आहार बनाते हैं. जिसके बाद कुत्ते और भी हिंसक हो जाते हैं. मवेशियों को लगाये गये डाईक्लोफिनिक्स सोडियम इंजेक्शन का असर कुत्तों पर देखा गया है.वैज्ञानिकों की शोध के बाद भारत सरकार ने इस इंजेक्शन पर बैन लगा दिया है.बावजूद इसके डाईक्लोफिनिक्स सोडियम इंजेक्शन को चोरी छुपे बेचा जा रहा है.


विश्व में गिद्धों की कई तरह की प्रजाति पाई जाती है परन्तु भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियां पायी जाती हैं. जिनमें से प्रजातियां उत्तराखंड में देखने को मिलती हैं. यहां इंडियन वाइड बैक की प्रजति सबसे अधिक पायी जाती है. बात अगर रामनगर की करें तो 20 साल पहले कॉर्बेट पार्क के क्षेत्रों में हजारों की संख्या में गिद्ध देखे जा सकते थे. लेकिन आज समय के साथ ये संख्या सिमट कर रह गयी है. जिसके कारण पर्यावरण चक्र पर गहरा खतरा मंडरा रहा है.


पर्यावरण के सफाई कर्मी और खाद्य श्रंखला की इस महत्वपूर्ण कड़ी को बचाने के लिए सभी को प्रयास करने होंगे.इसके साथ ही सरकार को भी जागरुकता अभियान चलाकर गिद्धों रो बचाने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे. पर्यावरणीय महत्व वाले जीव का संरक्षण न केवल पर्यावरण के हित में है बल्कि ये मानव जीवन के लिए भी बहुत ही आवश्यक है.

Last Updated : Feb 4, 2019, 1:16 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details