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Hindi Diwas 2022: हिंदी साहित्य को अमर कर गए 'भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र', उनके प्रयासों से मिली पहचान

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Published : Sep 14, 2022, 1:08 PM IST

हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस(Hindi Diwas) के रूप में मनाया जाता है. यह दिन हिंदी भाषा के महत्व की पहचान दिलाता है. हिंदी भाषा साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र का हिंदी के प्रचार-प्रसार में बड़ा योगदान है. जहां उन्होंने अंग्रेजी शासन काल में ही निज भाषा पर जोर देते हुए सबसे पहले आत्मनिर्भर होने की बात कही थी जो आज भी प्रासंगिक है.

भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र.
भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र.

वाराणसी:निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के मिटन न हिय के सूल. हिंदी भाषा साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र ने खड़ी बोली यानी हिंदी की आम भाषा को लोगों तक पहुंचाने के लिए इन बातों को कहा था. आज समय के साथ हिंदी मजबूत होती जा रही है. शायद यही वजह है कि अब सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी भी अपनी भाषा की अपेक्षा हिंदी को ज्यादा तवज्जो देते हैं. काशी की इस मिट्टी में जन्म से लेकर भाषा साहित्य और संस्कृति के लिए कुछ अलग कर गुजरने वाली इस महान विभूती को आज भी लोग स्मरण करते हैं. भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र को हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है और उन्होंने ही अंग्रेजी शासन काल में निज भाषा पर जोर देते हुए सबसे पहले आत्मनिर्भर होने की बात कही थी जो आज भी प्रासंगिक है.


भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र ने हिंदी सेवा की वजह से एक युग को ही अपने नाम कर लिया. 1857 से लेकर 1900 तक का समय भारतेंदु युग के तौर पर हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों को आज भी पढ़ाया जाता है. माना जाता है कि 15 वर्ष में ही भारतेंदु जी ने साहित्य की सेवा प्रारंभ कर दी थी. 18 वर्ष की आयु में उन्होंने कवि वचन सुधा नामक पत्रिका निकाली. जिसमें उस समय के शिष्य विद्वानों की रचनाएं प्रकाशित हुई. 20 वर्ष की आयु में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट बनने के बाद भी आधुनिक साहित्य के जनक के रूप में उनकी एक अलग पहचान बनी. वाराणसी से ही वर्ष 1807 में कवि वचन सुधा और 1873 में हरिश्चंद्र मैगजीन के बाद 1874 में स्त्री शिक्षा के लिए बालबोधिनी आदि पत्रिकाओं का प्रकाशन सफलतापूर्वक किया.

साहित्य की सेवा के साथ साहित्यिक संस्थाओं को भी उन्होंने कहा कि में बेहद समृद्ध तरीके से विकसित किया और लेखकों को एक मंच पर लाने का काम किया. उनके द्वारा की गई साहित्यिक सेवाओं के कारण आज भी वाराणसी की पहचान साहित्य में शीर्ष पर है. भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र का निवास स्थान वाराणसी के चौखंबा इलाके में आज भी स्थित है. घर के अंदर आज भी साहित्यिक महक आपको आसानी से महसूस होगी. भारतेंदु बाबू के हाथों की लिखी बहुत सी लेखनी आज भी उनके पांचवीं पीढ़ी के परिवार के सदस्यों ने संभाल कर रखी हैं. उनके हाथों की लिखी बाकी लेखनी कला भवन सहित शारदा भवन व कई अन्य संस्थाओं को सुपुर्द की गई है, ताकि उसे सुरक्षित रखा जा सके.

सबसे बड़ी बात यह है कि भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र जी की कही बातें आज सटीक और सही साबित हो रही हैं. भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र जी की पांचवी पीढ़ी के उनके परिवार के सदस्य दीपेश चंद्र चौधरी का कहना है की भारतेंदु जी ने निज भाषा पर हमेशा से जोर दिया. निज भाषा का तात्पर्य से हिंदी से नहीं बल्कि बंगाली, मराठी, उड़िया, तमिल, कन्नड़ से है. आप जिस भाषा में बातचीत करते हैं. वही निज भाषा है. उसकी उन्नति ही आपकी उन्नति का सार है. यह बात उन्होंने उस वक्त कही थी. यही वजह है कि आज जब नई शिक्षा नीति आई है तो निज भाषा पर जोर दिया जा रहा है.

दीपेश का कहना है कि गांधी जी से पहले भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने आत्मनिर्भर होने की बात कही थी और आज वह बातें भी प्रासंगिक हो रही हैं. आज भारत आत्मनिर्भर बन रहा है. दीपेश का कहना है कि 1882 में हिंदी को अदालत की भाषा बनाने का सपना भारतेंदु बाबू ने संजोया था. तत्कालीन शिक्षा आयोग के समक्ष हिंदी को अदालती भाषा बनाने की पैरवी कर उन्होंने अपनी गवाही देते हुए साफ कहा था कि यदि हिंदी अदालती भाषा हो जाए तो संबंध पढ़ाने के लिए चौबीस आना कौन देगा और साधारण की अर्जी लिखवाने के लिए कोई रुपया आठ आने क्यों देगा. इतना ही नहीं भारतेंदु बाबू ने उस वक्त जो बातें कही थी आज वह सच साबित हो रही हैं और उसको मानकर लोग भारत को मजबूत बना रहे हैं.

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