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सुरक्षित मातृत्व के लिए महिलाएं अपनाएं ये टिप्स, भूल से भी न करें ऐसी गलतियां

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Published : Apr 10, 2023, 4:17 PM IST

एक महिला के लिए सुरक्षित मातृत्व का होना बहुत जरूरी है. इसी को लेकर सरकार के द्वारा कई जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं. फिर भी कुछ चीजों के अभाव के चलते महिलाओं को परेशानी झेलनी पड़ती है.

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गर्भावस्था

प्रदेश में 40 से 45 फीसदी महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं.

लखनऊ: सुरक्षित मातृत्व का होना किसी भी महिला के लिए बेहद जरूरी है. यही वजह है कि इसके लिए प्रदेश सरकार के द्वारा कई जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं, लेकिन महिला रोग विशेषज्ञ की माने तो छोटी-छोटी गलतियों के चलते बहुत सी महिलाएं गर्भावस्था के दौरान मौत की भेंट चढ़ जाती हैं. ज्यादातर इस तरह के केस ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक होता है. ग्रामीण क्षेत्रों से कभी-कभी ऐसे केस आते हैं, जिसे हाई डिपेंडेंसी यूनिट में रखे जाते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं अपने स्वास्थ्य को लेकर सचेत नहीं रहती हैं. यही कारण है कि कई बार स्थिति गर्भावस्था के दौरान बिगड़ जाने से काफी क्रिटिकल हो जाती है.

हजरतगंज स्थित वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ. निवेदिता कर ने बताया कि सुरक्षित मातृत्व का होना इसलिए भी जरूरी है कि एक बच्चे की जान आपसे जुड़ी हुई है. राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस 2023 का थीम 'कोरोना वायरस के बीच घर पर रहें, मां और शिशु को कोरोना वायरस से सुरक्षित रखें' रखा गया है. कोरोना वायरस के समय बेहद ज्यादा जरूरी है कि गर्भवती महिलाएं अपना ध्यान रखें. जब मां सुरक्षित रहेगी और अच्छा महसूस करेगी तो उसका बच्चा भी अच्छा महसूस करेगा.

गर्भावस्था के दौरान मां का रहन-सहन और मां की इच्छा के ऊपर निर्भर करता है कि बच्चे का इंटरेस्ट क्या होगा, क्योंकि जब गर्भ में शिशु पल रहा होता है तो वह अपने मां के ऊपर निर्भर रहता है. मां जो खाती है, वहीं शिशु खाता है. इसीलिए कहा जाता है कि गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को दोगुनी भूख लगती है. इस दौरान मां को अपनी सेहत का विशेष ख्याल रखना चाहिए अच्छी-अच्छी कहानी, अच्छी-अच्छी किताबें पढ़नी चाहिए, ताकि बच्चे का भविष्य अच्छा हो.

कोरोना वायरस से खुद को बचाएं
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान डॉ. निवेदिता ने कहा कि अभी सबसे बड़ी चुनौती है कोरोना वायरस से गर्भवती महिलाओं को बचाना. साल 2020 में कोरोना वायरस में बहुत ही गर्भवती महिलाएं क्रिटिकल कंडीशन में थी, क्योंकि इनकी कोविड रिपोर्ट भी पॉजिटिव थी और इनका प्रसव भी कराना था. ऐसे में बहुत ही जटिल-जटिल केस अस्पताल में आए, जिसमें देखा गया कि जो महिला कोरोना संक्रमित थी, उन्हें खास दिक्कत हो रही थी. जैसे उनका हाई या लो ब्लड प्रेशर हो जाना या फिर सांस लेने में समस्या होना.

इस केस में जब गर्भवती महिलाएं अस्पताल आने में देरी कर देती थी. उस समय महिला की स्थिति काफी अधिक खराब हो जाती है. ऐसे में गर्भवती महिलाओं को सबसे पहले तो खुद को कोरोना वायरस से बचाना है. इसके बाद अपना अच्छे से ख्याल रखना है. जितना हो सके भीड़भाड़ से दूर रहें. बाहर घूमने फिरने अधिक न जाएं, जहां पर भीड़ कम है, उन्हीं फैमिली फंक्शन में भी जाएं.

एनीमिया से बचे महिलाएं
उन्होंने बताया कि प्रदेश में 40 से 45 फीसदी महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं. एनीमिया होने के कारण गर्भवती महिलाओं की स्थिति गर्भावस्था के दौरान और भी ज्यादा क्रिटिकल हो जाती है. ऐसे में कई बार ऐसा होता है कि उनकी जटिल सर्जरी के द्वारा प्रसव कराया जाता है और सर्जरी के दौरान खून की कमी हो जाने से गर्भवती की जान पर बात आती है. दरअसल, महिलाएं हमेशा से ही अपना ख्याल बाद में रखती हैं पहले अपने घरवालों का ख्याल रखती हैं.

अपने बारें में सोचती नहीं है, इन्हीं सब कारणों की वजह से यूपी सरकार ने सुरक्षित मातृत्व के लिए साल में दो बार जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित करती है, ताकि गांव-गांव जाकर आशा बहुएं ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को जागरूक करें और उन्हें बताएं कि स्वस्थ रहना उनके लिए कितना ज्यादा आवश्यक है. यह आवश्यकता उस वक्त और भी ज्यादा बढ़ जाती है, जब महिला एक बच्चे को जन्म देती है. जब गर्भवती महिला स्वस्थ रहेंगी, उसे किसी प्रकार की कोई बीमारी नहीं रहेगी और खून की कमी नहीं होगी तो वह सुरक्षित मातृत्व कहलाएगी.

समय-समय पर कराते रहें अल्ट्रासाउंड व खून की जांच
उन्होंने कहा कि गर्भावस्था के दौरान समय-समय पर महिला रोग विशेषज्ञ से मिलें और अल्ट्रासाउंड व खून की जांच अवश्य कराएं, क्योंकि खून की जांच होने से आपके शरीर में होने वाले सभी बदलाव को देखा जा सकता है. विशेषज्ञों से सही समय पर डायग्नोज कर सही तरीके से प्रसव कराएगी. इसके अलावा अल्ट्रासाउंड इसलिए भी जरूरी है कि होने वाला बच्चा गर्भ में कैसा है. उसकी क्या स्थिति है. कई बार शिशु के गले में नाड़ी फंस जाती है, जिससे प्रसव में दिक्कत हो जाती है.

सिजेरियन प्रसव कराने की स्थिति बनती है. इसलिए बेहद जरूरी है कि समय-समय पर यह दोनों जांच होनी चाहिए, ताकि प्रसव के समय अचानक कोई क्रिटिकल कंडीशन न हो. उन्होंने बताया कि अभी तक के एक्सपीरियंस में बहुत सारी गर्भवती महिलाएं यह दोनों ही जांच नहीं कराती हैं और अंत समय में जब प्रसव के दौरान अस्पताल आती हैं तो उनकी स्थिति खराब रहती है. इसलिए यह दोनों ही जांचे जब विशेषज्ञ कहें उसके अनुसार जरूर कराएं.

अधिक समय तक न बर्दाश्त करें प्रसव पीड़ा
उन्होंने बताया कि अस्पताल में बहुत सारे केस ऐसे आते हैं, जब प्रसव पीड़ा अत्यधिक शुरू हो जाती है. इसके बाद परिजन गर्भवती महिला को लेकर अस्पताल भागते हैं. ऐसी स्थिति में जच्चा-बच्चा दोनों की जिंदगी दांव पर लगी रहती है. लोग सोचते हैं कि प्रसव पीड़ा शुरू हो जाए, थोड़ा सा और हो जाए, तब उसके बाद अस्पताल लेकर जाएंगे. इस सोच के कारण बहुत से गर्भवती महिलाओं की जान पर बात आई है. बहुत सी गर्भवती महिलाओं की इस कारण मौत भी हुई है. दरअसल, होता क्या है कि प्रसव पीड़ा जब अंतिम पड़ाव पर होता है, उस समय कई केस में बच्चेदानी फट जाती है. इस स्थिति में गर्भवती की जान भी जा सकती है, इसलिए प्रसव पीड़ा शुरू होते ही अस्पताल पहुंचे और प्रसव कराएं.

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