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pregnancy tips: प्रेगनेंसी में न आने पाए दौरे, समय-समय पर कराते रहें जरूरी जांच

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Published : Apr 17, 2022, 4:15 PM IST

गर्भावस्था के दौरान जिन महिलाओं की समय-समय पर जरूरी जांच नहीं होती, उन्हें कभी-कभी दौरे या झटके आते हैं. दरअसल, जब जरूरी जांच होती रहती हैं तो शरीर में होने वाले बदलाव को बारीकी से डॉक्टर समझते हैं. लेकिन जब जरूरी जांच नहीं होती, उस समय पर अचानक झटके आते हैं. ऐसे में बच्चा गिरने का भी खतरा रहता है. इसे एक्लेम्पसिया (Eclampsia) नाम से भी जाना जाता है.

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लखनऊ: गर्भावस्था के दौरान जिन महिलाओं की समय-समय पर जरूरी जांच नहीं होती, उन्हें कभी-कभी दौरे या झटके आते हैं. दरअसल, जब जरूरी जांच होती रहती हैं तो शरीर में होने वाले बदलाव को बारीकी से डॉक्टर समझते हैं पर ऐसा नहीं होने पर अचानक से झटके आने पर बच्चा गिरने का भी खतरा बन जाता है. इसे एक्लेम्पसिया (Eclampsia) नाम से भी पहचाना जाता है.

यह एक गंभीर बीमारी हैं. एक स्तर पर इसका प्रभाव बहुत खतरनाक साबित होता है. इस स्थिति में प्रेगनेंट महिला को हाई ब्‍लड प्रेशर रहने के कारण दौरे पड़ने लगते हैं. क्वीन मैरी अस्पताल की वरिष्ठ डॉ. सीमा अग्रवाल ने बताया कि अगर एक्लेम्पसिया का इलाज न किया जाए तो मां और बच्‍चे की जान को खतरा हो सकता है. प्रदेश में लगभग 14 फीसदी प्रेगनेंट महिलाओं की मौत एक्लेम्पसिया के कारण होती है. जब महिलाएं पांच महीने की प्रेग्नेंट होतीं हैं, उस समय शरीर के हार्मोंस में बदलाव होता है. गर्भावस्था के दौरान ब्लड प्रेशर का बढ़ जाना घातक साबित हो सकता है. जब गर्भावस्था के दौरान किसी महिला का ब्लड प्रेशर बढ़ता है, उस समय महिला को झटके आते हैं. यह झटके मां और बच्चे दोनों के लिए काफी खतरनाक होता है.

डॉ. सीमा ने बताए pregnancy tips

डॉ. सीमा ने बताया कि एक्लेम्पसिया की शिकायत उन महिलाओं में होती है जो पांच महीने की गर्भवती हों. पांच महीने पहले एक्लेम्पसिया की दिक्कत नहीं होती. जब महिला का ब्लड प्रेशर बढ़ता है, उस समय महिला को दौरे आते हैं. मतलब जिस प्रकार किसी व्यक्ति को मिर्गी आती है, उसका शरीर पूरी तरह से हिल जाता हैं, उसी प्रकार गर्भावस्था के दौरान भी महिलाओं को दौरा पड़ता है. अब ऐसे केस बढ़ने लगे हैं. पहले इनकी संख्या 1 से 2 प्रतिशत होती थी लेकिन अब इनकी संख्या तेजी से बढ़कर 14 प्रतिशत तक हो गई है. यानि इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं में यह समस्या देखने को मिल रही है.

उन्होंने बताया कि सबसे अहम बात यह है कि गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर से संपर्क में रहें और उनके कहे मुताबिक हर महीने पर ब्लड प्रेशर की जांच कराएं. यह बेहद जरूरी है क्योंकि कई बार अस्पताल में इतने सीरियस के आते हैं जिसको हैंडल करने में हमें मुश्किल होती है. कई बार हम मरीज को नहीं बचा पाते हैं. ऐसे में जागरूकता सबसे अहम किरदार निभाती है.

शुरुआती लक्षण
- हाई बीपी
- चेहरे या हाथों में सूजन
- सिरदर्द
- अधिक वजन बढ़ना
- जी मचलाना और उल्टी
- नजर से संबंधित समस्याएं जिसमें कम दिखना या धुंधला दिखना शामिल है.
- पेशाब करने में दिक्कत
- पेट में दर्द (विशेष रूप से पेट के ऊपर दाईं तरफ)दौरे पड़ना
- बहुत ज्यादा घबराहट होना
- बेहोशी की हालत

कारण
- ब्लड प्रेशर बढ़ जाना
- रक्त वाहिका से संबंधित समस्याएं
- मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र (न्यूरोलॉजिकल) से जुड़े कारक
- आहार
- जीन

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उपाय
- गर्भावस्था के दौरान समय-समय पर बीपी की जांच आवश्यक है.
- डिलीवरी का समय तय करने से पहले डॉक्टर बीमारी की गंभीरता के साथ-साथ ये देखते हैं कि गर्भ में शिशु का कितना विकास हो चुका है.
- अगर डॉक्टर आपमें प्रीक्लेम्पसिया के हल्के लक्षणों का निदान करते हैं तो वे स्थिति को लगातार मॉनिटर कर सकते हैं. इस स्थिति को एक्लेम्पसिया में बदलने से रोकने के लिए दवा दे सकते हैं.
- गंभीर रूप से प्रीक्लेम्पसिया या एक्लेम्पसिया से ग्रस्त महिलाओं को डॉक्टर जल्दी प्रसव का सुझाव दे सकते हैं. प्रभावित महिला के लिए देखभाल की योजना इस बात पर निर्भर करेगी कि बीमारी की गंभीरता क्या है और प्रेग्नेंसी कितने महीने की हो चुकी है.
- इलाज के तौर पर दौरों को रोकने के लिए डॉक्टर दवा दे सकते हैं. शुरुआती लक्षण दिखाई देने पर संपर्क करें.
- इसके अलावा वे हाई बीपी को कंट्रोल करने के लिए भी दवा लिख सकते हैं. अगर बीपी फिर भी हाई रहता है तो प्रसव करवाने की जरूरत पड़ सकती है.

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