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BSP politics : मायावती की किसी दल के साथ गठबंधन न करने की घोषणा जरूरी या मजबूरी

बहुजन समाज पार्टी को राजनीतिक सफर बड़े ही चुनावी समझौतों और रणनीतियों से भरा है. बसपा प्रमुख भले ही अपने जन्मदिन पर किसी भी राजनीतिक दल के साथ वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव न लड़ने के फैसला यह कहकर लिया है कि उन्हें गठबंधन से फायदा नहीं होता, लेकिन उनका यह कथन उनके राजनीतिक सफर से मेल नहीं खाता. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

मायावती की राजनीति.
मायावती की राजनीति.

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Published : Jan 16, 2023, 11:05 PM IST

लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने अपने जन्मदिन पर एलान किया है कि वह आने वाले चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं करेंगी. मायावती ने कहा कि बसपा को गठबंधन का कभी कोई फायदा नहीं मिलता है. हालांकि आंकड़े बताते हैं कि गठबंधन बसपा के लिए हमेशा फायदे का सौदा ही रहा है. इन्हीं गठबंधन और चुनावी समझौतों ने मायावती को उत्तर प्रदेश का चार बार मुख्यमंत्री बनाया. ऐसे भी मौके आए जब पार्टी हाशिए पर पहुंच गई और गठबंधन के कारण फिर उभर कर सामने आई. ऐसे में यह सवाल उठने लगे हैं कि बसपा के लिए किसी भी दल से गठबंधन न करने की घोषणा क्या वाकई जरूरी है या यह घोषणा बसपा की मजबूरी बन गई है.

मायावती की राजनीति.

यदि 90 के दशक की बात करें, तो बहुजन समाज पार्टी के उभार का यही वक्त था. बहुत कम विधानसभा चुनावों में बहुत कम सीटें लाकर भी बसपा इस दशक में तीन बार सरकार बनाने में कामयाब हुई और मायावती दो बार मुख्यमंत्री भी बनीं. पहली बार बसपा और सपा की सरकार बनी. हालांकि सपा के साथ उनकी ज्यादा दिन नहीं निभी और मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया, जिसके बाद मुलायम सिंह को सत्ता से बेदखल होना पड़ा. इसके बाद इस दशक में दो बार ही जिस भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से मायावती सरकार में आईं, उसी भाजपा ने उन पर अवसरवादी था और वादाखिलाफी के आरोप लगाए. कांग्रेस के साथ भी उनका गठबंधन चल नहीं पाया. हालांकि राजनीति में तमाम ऐसे दल और गठबंधन हैं, जो दशकों तक बिना किसी दिक्कत और मतभेद के साथ-साथ राजनीति करते रहे हैं. हालांकि बसपा के साथ कभी किसी भी दल की निभ नहीं पाई. वर्ष 2019 में सपा-बसपा गठबंधन में बसपा शून्य से बढ़कर 10 सीटों तक पहुंची. बावजूद इसके मायावती ने सपा पर ही आरोप लगाए और पार्टी ने गठबंधन तोड़ने का फैसला कर लिया. आज प्रदेश का जो सूरते हाल है, उसमें कोई भी बड़ा दल बसपा से समझौता करना ही नहीं चाहता. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले ही अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं. कांग्रेस अपने अस्तित्व से जूझ रही है, जबकि भारतीय जनता पार्टी केंद्र और प्रदेश में अपने दम पर सत्ता बनाने में सफल है. ऐसे में उसे बसपा से गठबंधन की कोई जरूरत‌ ही नहीं है. ऐसे में बसपा के सामने रास्ता ही क्या है? चाह कर भी कोई गठबंधन होने वाला नहीं है.

मायावती की राजनीति.
90 के दशक में अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार गिर गई. जिसके बाद वर्ष 1993 उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए. इस चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन हुआ, जिसमें सपा ने 109 सीटें तो बहुजन समाज पार्टी ने 67 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की. इसके बाद सपा-बसपा की मिली-जुली सरकार बनी और मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह यादव. हालांकि यह गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चल सका और वर्ष 1995 में मुलायम सिंह यादव की सरकार गिर गई. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने बसपा को समर्थन दिया और 03 जून 1995 को मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनीं. हालांकि यह सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चल सकी और 18 अक्टूबर 1995 को मायावती को पद से इस्तीफा देना पड़ा. वर्ष 1996 में हुए विधानसभा के चुनावों में बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. इस चुनाव में बसपा को 66 तो कांग्रेस को मात्र 33 सीटें प्राप्त हुईं. चुनाव के बाद ही बसपा ने कांग्रेस को झटका देते हुए गठबंधन से अलग होने की घोषणा कर दी. 21 मार्च 1997 को मायावती भाजपा के बाहरी समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब हुईं. हालांकि यह बंधन भी 6 माह बाद ही 21 सितंबर 1997 को टूट गया. वर्ष 2002 के विधानसभा चुनावों में मायावती एक बार फिर मायावती की किस्मत चमकी और 3 मई 2002 को वह भारतीय जनता पार्टी के बाहरी समर्थन से उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. अगस्त 2003 को भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और बसपा सरकार का पतन हो गया. वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा प्रदेश का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनकर उभरी और मायावती पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हुईं. इस तरह हुआ चौथी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. वह प्रदेश की पहली दलित मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ चार बार मुख्यमंत्री बनने वाली पहली नेता भी हैं. यदि वर्ष 2007 को छोड़ दें तो बसपा के सफलता में गठबंधन हो और दूसरे राजनीतिक दलों के सहयोग को साफ देखा जा सकता है.
मायावती की राजनीति.
यदि लोकसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी के प्रदर्शन की बात करें, तो पार्टी ने वर्ष 2009 में उत्तर प्रदेश में 20 सीटें जीतने में कामयाब रही और उसे 6.17 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए. इस दौरान उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी. स्वाभाविक है कि सत्ता में रहते हुए लोकसभा चुनाव में जाने का उसे फायदा मिला. यह पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव में बसपा का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. वर्ष 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव में बसपा उत्तर प्रदेश में एक भी सीट नहीं जीत पाई. यह चुनाव पार्टी ने बिना किसी गठबंधन के लड़ा था और उसे 4.19 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए. वर्ष 2019 में बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया और लोकसभा चुनाव में उतरी. इस गठबंधन का पार्टी को बड़ा लाभ मिला और वह 10 सीटें जीतने में कामयाब रही. वहीं समाजवादी पार्टी महज पांच सीटों पर सिमट गई. इस चुनाव में बसपा को 3.67 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए.
मायावती की राजनीति.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि 'बसपा प्रमुख मायावती तमाम गठबंधन करने और उन्हें तोड़ने के लिए जानी जाती है. बसपा के साथ कोई भी गठबंधन लंबे वक्त तक नहीं चल सका. प्रदेश के वर्तमान हालात ऐसे हैं कि सभी राजनीतिक दलों को अपने-अपने रास्ते खुद बना ले बढ़ रहे हैं. सपा का बसपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन का अनुभव अच्छा नहीं रहा. भाजपा छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है और एक दशक से वह लगातार कामयाबी होती रही है. ऐसे में उसे नया प्रयोग करने की कोई जरूरत भी नहीं है. कांग्रेस प्रदेश में हाशिए पर है. उसके साथ गठबंधन करके लाभ और हानि ज्यादा दिखाई देती है. ऐसे में बसपा का एकला चलो का मार्ग मजबूरी भी है. अभी लोकसभा चुनाव में एक साल बाकी है, तब तक क्या स्थितियां बनती बिगड़ती है यह देखने वाली बात होगी.

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