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हीमोफीलिया की नई दवा से बार-बार नहीं चढ़ाना पड़ेगा मरीज को खून

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Published : Apr 18, 2023, 8:12 AM IST

केजीएमयू में हीमोफीलिया दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस दौरान केजीएमयू हीमैटोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एके त्रिपाठी ने लोगों को संबोधित किया.

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लखनऊ : अब हीमोफीलिया मरीजों को बार-बार फैक्टर आठ या नौ चढ़वाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. मरीज को रक्तस्राव जैसी घातक स्थिति से भी गुजरने से बचाने में मदद मिलेगी. अंगों को टेढ़े होने से भी बचाया जा सकेगा. यह संभव होगा हीमोफीलिया की नई दवा से. खास तरह का इंजेक्शन लगाकर मरीजों को एक माह तक राहत प्रदान की जा सकेगी. यह जानकारी केजीएमयू हीमैटोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एके त्रिपाठी ने दी. वह सोमवार को हीमोफीलिया दिवस पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.

डॉ. एके त्रिपाठी ने कहा कि 'प्रदेश में करीब 2200 हीमोफीलिया के मरीज पंजीकृत हैं, जिसमें 1400 मरीजों का इलाज अकेले केजीएमयू में चल रहा है. प्रदेश के 26 अस्पतालों में हीमोफीलिया मरीजों के इलाज की सुविधा है. इससे मरीजों को घर के निकट इलाज हासिल करने में मदद मिल रही है. डॉ. एके त्रिपाठी ने बताया कि हीमोफीलिया मरीजों में रक्तस्राव का खतरा अधिक रहता है. शरीर में खून जमाने के लिए जरूरी फैक्टर आठ व नौ की कमी होती है. मरीज की जिंदगी बचाने के लिए फैक्टर आठ या नौ चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. अभी मरीजों को समस्या होने की दशा में इलाज मुहैया कराया जा रहा है. जल्द ही समस्या न हो इसके लिए इलाज की व्यवस्था की जाएगी. उन्होंने बताया कि खास तरह का इंजेक्शन बाजार में आ चुका है, जिसे माह में एक बार लगाया जाएगा. मरीज को रक्तस्राव जैसी समस्या से बचाने में मदद मिलेगी. यही नहीं जोड़ों के आस-पास मांसपेसियां मजबूत होंगी. इससे जोड़ों को खराब होने से बचाने में मदद मिलेगी.'



मरीज को परिजन से मिलाया :केजीएमयू के ट्राॅमा सेंटर में पुलिस ने एक लावारिस मरीज को बीते 26 फरवरी को भर्ती कराया गया था. यह मरीज पुलिस को बेहोशी की हालत में लखनऊ रेलवे स्टेशन पर मिला था. पुलिस ने मरीज को ट्राॅमा सेंटर में भर्ती कराया था. तब यह कोमा में था. इलाज से धीरे-धीरे सुधार आया और वह खाने-पीने बोलने चलने लायक हो गया. होश में आने के बाद उसने अपना नाम जीत बहादुर बताया. मरीज गांव-छपरा मैदान, जिला-गोरखा, नेपाल का रहने वाला है.

मरीज को परिजन से मिलाया

केजीएमयू की ओर से जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि 'उसकी पत्नी का नाम दीमिनी है, जो अब छोड़कर चली गई है और दूसरी शादी कर ली है. युवक का एक बेटा है जिसका नाम किस्मत है और वह शक्ति स्कूल की किसी शाखा में पढ़ रहा है. युवक अपनी मां के साथ गांव में रहता है. युवक के दो भाई थे जो शादी करके अब अलग रहते हैं और दो बहनें थीं जिनकी शादी हो चुकी है. युवक अपने गांव से सोनौली और फिर गोरखपुर आया था और गोरखपुर में ट्रेन पर बैठकर केरल जा रहा था, जहां इसके कुछ साथी लोग कैंटीन का बिजनेस करते हैं.

जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि यह बेहोशी की हालत में लखनऊ रेलवे स्टेशन पर मिला था. होश में आने के बाद इसने अपनी मां से फोन पर बात की. मां ने किसी को इसके पास भेजने का इंतजाम करने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहीं. पैसे की व्यवस्था करके उन्होंने एक आदमी को जीत बहादुर को लेने के लिए लखनऊ भेजा, लेकिन वह आदमी पैसा पाकर लखनऊ आने की जगह शायद दिल्ली चला गया. नौकरी वगैरह करने के लिए. इसके बाद हम लोगों ने इनकी मां से बात की, लेकिन वह हिंदी नहीं समझ पाती थीं. फिर उनके ग्राम प्रधान से बात की जो हिंदी तो समझते थे, लेकिन किसी को लखनऊ भेजने में असमर्थता व्यक्त कर रहे थे. बीते रविवार को हम लोगों ने अपने विभाग के कर्मचारियों अतुल उपाध्याय मित्रेश व अन्य के साथ मरीज को अपने खर्चे पर कार से नेपाल के लिए रवाना किया.'



सुनौली बॉर्डर पर नेपाल के एक पुलिस अधिकारी अनिल थापा को सारी बातें बताई गईं तो उन्होंने बहुत सहयोग किया. उन्होंने मरीज के गांव के समीप थाने में फोन किया और यह पता चला कि वहां से ग्राम प्रधान और मरीज की मां ने किसी को मरीज को लेने के लिए सुनौली बॉर्डर भेजा है. उसका फोन नंबर लेकर पुलिस ने उसको फोन किया तो पता चला कि वह बॉर्डर के पास के बस स्टेशन पर बैठकर मरीज के आने का इंतजार कर रहा है. फिर नेपाल की पुलिस उसे ढूंढ कर बॉर्डर तक ले आई और वहां मरीज को आए हुए परिजन को सौंपा और मरीज के गांव के थाने के पुलिस वालों को बोला कि जब यह मरीज थाने पहुंच जाए तो वह लोग स्वयं मरीज को उसकी मां को सौंप दें. कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. बिपिन पुरी ने न्यूरोसर्जरी विभाग के सफल प्रयास के लिए पूरे विभाग की प्रशंसा करते हुए उन्हें बधाई दी.

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