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गोरखपुर के कैम्पियरगंज की डेमोग्राफिक रिपोर्ट: यहां का हाल-बाढ़ से बेहाल, लेकिन सड़कों का बिछा जाल

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Published : Oct 3, 2021, 7:20 PM IST

गोरखपुर का कैंपियरगंज विधानसभा क्षेत्र एक ऐसा चुनावी क्षेत्र है. जहां पर विकास, स्वास्थ्य, उद्योग और सुरक्षा ये सभी मुद्दे गौण रहते हैं. यहां के लोगों की परेशानी सिर्फ बाढ़ की रहती है, जो यदा-कदा सालों में ही आती है.

गोरखपुर के कैम्पियरगंज की डेमोग्राफिक रिपोर्ट

गोरखपुरः जिले का कैंपियरगंज विधानसभा क्षेत्र एक ऐसा चुनावी क्षेत्र है. जहां के लोगों की सबसे बड़ी समस्या बाढ़ की होती है. जिससे लोग काफी परेशान होते हैं. चुनावी दृष्टिकोण से देखें, तो नेताओं द्वारा विकास के जो भी वादे किए जाएं, लेकिन यहां की जनता के लिए मुद्दा मौजूदा विधायक फतेह बहादुर सिंह से बढ़िया प्रत्याशी के होने की होती है. ये मुद्दा पूरे चुनाव में हावी रहता है. जिसका नतीजा है कि फतेह बहादुर सिंह वर्तमान में बीजेपी के विधायक तो हैं, लेकिन पिछले 30 सालों से वो लगातार विधायक होते आए हैं.

विधायक फतेह बहादुर सिंह 2 विधानसभा सीटों का प्रतिनिधित्व किया है. 1991 से लेकर 2007 तक वो पनियारा विधानसभा सीट से विधायक थे. परिसीमन के बाद बनी कैम्पियरगंज विधानसभा सीट से इन्होंने 2007 का चुनाव बहुजन समाज पार्टी से जीता और तत्कालीन मायावती की सरकार में वन पर्यावरण एवं जंतु उद्यान मंत्री बनाए गए. 2012 के चुनाव में बसपा ने उनका टिकट काट दिया तो एक तरह से इन्होंने निर्दलीय चुनाव भारी मतों से जीतने में कामयाबी हासिल की. सिंबल के तौर पर इन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के घड़ी निशान को अपनाया था.

बाढ़ है यहां की मुख्य समस्या

इस चुनाव में प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इन्हें हराने के लिए खूब जोर आजमाइश किया. लेकिन बीजेपी का प्रत्याशी बृजेश यादव चुनाव हार गये. जब 2017 का विधानसभा चुनाव आया, तो फतेह बहादुर सिंह की योगी से निकटता बढ़ गयी. यह बीजेपी के सिंबल पर सवार होकर भारी मतों से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए. हालांकि योगी के मुख्यमंत्री बनने से यह हैवी मंत्री बनते बनते रह गए. मंत्रिमंडल से तो यह चूक गए, लेकिन अपना राजनैतिक कद इन्होंने हल्का नहीं होने दिया. जिले में 2 महीने पहले हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में इन्होंने अपनी पत्नी साधना सिंह को निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष बना दिया. फतेह बहादुर सिंह कि अपनी जो भी काबिलियत हो. लेकिन उसके साथ उनके पिता का नाम भी जुड़ा है, जो पूर्वांचल के विकास पुरुष कहे जाते थे. जिनका नाम पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह है. यह 2017 के चुनाव के बाद प्रोटेम स्पीकर भी बनाये गए थे.

बाढ़ है यहां की मुख्य समस्या

निर्वाचन आयोग के रिकॉर्ड में ये क्षेत्र 324 विधानसभा क्षेत्र के नाम से दर्ज है. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार हर विधानसभा क्षेत्र का मुद्दा होता है. इस क्षेत्र में भी यह मुद्दा रहता है. जिसको दूर करने की बात वर्तमान विधायक करते हैं. वह कहते हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल में 400 करोड़ से अधिक की सड़कें बनवाई हैं. डोमिनगढ़, खड़खड़िया और बढ़या-ठाठर पुल भी बनवाकर लोगों को आवागमन की सुविधा उपलब्ध कराया है. अपनी निजी भूमि पर स्टेडियम बनवाकर युवाओं को खेलने-कूदने का मौका दिया है. आईटीआई के भी नए संभाग खोले गए हैं. उन्होंने कहा कि दो-दो राजकीय इंटर कॉलेज और डिग्री कॉलेज का निर्माण कराकर क्षेत्र में शिक्षा की व्यवस्था बढ़ाई गई है.

फतेह बहादुर सिंह, विधायक

इसके साथ ही सीएचसी कैंपियरगंज में ऑक्सीजन प्लांट लगाया गया है. रामचौरा रेलवे क्रॉसिंग पर अंडरपास भी उनके प्रयास की देन है. उन्होंने कहा कि आधा दर्जन से अधिक बिजली उपकेंद्र क्षेत्र में इसलिए स्थापित हो सके. जिससे तमाम जगहों पर बिजली की व्यवस्था की जा सकी है और जहां लो वोल्टेज की समस्या है उसे भी दूर किया गया है. फतेह बहादुर सिंह की प्रतिद्वंदी चिंता यादव कहती है कि क्षेत्र में जो भी विकास दिखाई दे रहा है. उससे विधायक का कुछ लेना देना नहीं. यह मुख्यमंत्री के प्राथमिकता वाला क्षेत्र है. जिसकी वजह से तमाम परियोजनाएं यहां खुद दौड़ रही हैं. विधायक का निजी प्रयास होता तो यह क्षेत्र बाढ़ की समस्या से अब तक मुक्त हो चुका होता है. बंधों की मरम्मत और पिचिंग का काम लापरवाही पूर्ण तरीके से होता है.

इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 3,74,971 मतदाता हैं. जिनमें 2,04,250 पुरुष मतदाता और 1,70,721 महिला मतदाता हैं. मतदान में भी यहां भारी रुझान देखने को मिलता है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि क्षेत्र में धन बल की भी खूब चर्चा होती है. यहां के लोग कहते हैं कि जैसे-जैसे चुनाव करीब आता है मतदाताओं को कई तरह के प्रलोभन से भी लुभाने का प्रयास किया जाता है. उद्योग- धंधे तो इस क्षेत्र में नहीं हैं. न ही उसकी बात होती है. लेकिन जातिगत आंकड़ों के खेल से चुनाव की बाजी को जीतने हारने में बदला जाता है. इस विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं का 40 फीसदी निषाद बिरादरी का वोट है. हालांकि इस बिरादरी के लोग यहां चुनाव में सफल नहीं हो पाते हैं.

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इसके बाद पिछड़ी जाति के मतदाताओं का यहां प्रभाव है. जिसमें यादव और कुर्मी मतदाता शामिल हैं. फॉरवर्ड बिरादरी के मतदाता हवा का रुख भांपकर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं. इस बार का भी चुनाव काफी रोचक होगा. महंगाई और बाढ़ से लोग परेशान हुए हैं. विरोधी पार्टियां इसको मुद्दा बना रही हैं. अगर चुनाव तक यह मुद्दा बना रहता है तो परिणाम चाहे जो भी हो मैदान में कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है. इस बार निषाद बिरादरी भी अपना वजूद स्थापित करना चाहती है. इसलिए मजबूत विरोधी खेमे के नेता भी क्षेत्र में चलना शुरू कर दिए हैं.

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