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गोरखपुर नगर निगम, जहां बीजेपी मेयर की सीट तो जीतती रही, मगर निगम बोर्ड में कभी बहुमत नहीं मिला

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Published : Apr 27, 2023, 8:23 PM IST

सीएम योगी के शहर गोरखपुर में बीजेपी निकाय चुनाव 2023 के दौरान पुराना मिथक तोड़ पाएगी. बीजेपी को कभी निगम सदन में अभी तक पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. जानिए कौन दे रहा भाजपा को चुनौती ....

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गोरखपुर निकाय चुनाव पर संवाददाता मुकेश पांडेय की खास रिपोर्ट

गोरखपुर :यूपी में गोरखपुर सीएम योगी आदित्यनाथ का गढ़ रहा है. नगर निकाय चुनाव में गोरखपुर नगर निगम में लगातार भाजपा के मेयर ही चुने जाते रहे हैं मगर बीजेपी यहां निगम बोर्ड में पूर्ण बहुमत बनाने में सफल नहीं रही. बोर्ड में बहुमत के लिए संख्या बल के हिसाब से पार्षदों की संख्या हमेशा कम पड़ती रही है. बीजेपी को मेयर की सीट हासिल करने के बाद जोड़-तोड़ से ही निगम बोर्ड में दो तिहाई सीटें बनानी पड़ी है. वर्ष 2023 के चुनाव में बीजेपी ऐसी रणनीति बनाकर चल रही है, जिससे इस मिथक को तोड़ा जा सके. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए योगी यादित्यनाथ खुद जनसभा करेंगे. इसके अलावा पार्टी ने सांसद रवि किशन को भी प्रचार में उतार दिया है. जगह-जगह पार्टी के कार्यकर्ता नुक्कड़ सभा कर रहे हैं.

गोरखपुर नगर निगम में 80 वार्ड हैं. किसी भी पार्टी को निगम बोर्ड में बहुमत के लिए कम से कम 41 पार्षदों का जीतना जरूरी है. निगम के चुनावी इतिहास को देखें तो भाजपा गोरखपुर में 1995 से ही महापौर की सीट जीत रही है. तीन दशक पहले तक निगम में वार्डो की संख्या 60 थी. निगम सदन में बहुमत के लिए 31 सीटों की जरूरत होती थी. उस दौर में भी बीजेपी को दो तिहाई बहुमत नहीं मिला, हालांकि मेयर ने 5 साल का कार्यकाल सफलता के साथ पूरा किया.

वर्ष 2006, 2012 और 2017 में भी भाजपा ने महापौर की सीट पर बड़े अंतर से जीत हासिल की, लेकिन वार्डों में पार्षदों को जिताने में वह कामयाब नहीं हो पाई. भाजपा से अधिक सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में जाती रही है. हालांकि राजनीतिक कौशल के कारण निर्दलीय और अन्य पार्षदों के बलबूते भाजपा को निगम सदन में बहुमत मिलता रहा. बीजेपी नेता मानते हैं कि इस बार के निकाय चुनाव में परिस्थितियां काफी कुछ बदलेगी. गोरखपुर से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं. विकास की कई कड़ियां नगर निगम में जुड़ी हैं, जिसको चुनाव जीतने का भाजपा आधार बना रही है। पार्टी के क्षेत्रीय अध्यक्ष सहजानंद राय का दावा है कि गोरखपुर में इस बार सिर्फ महापौर ही नहीं बल्कि अधिकतम पार्षदों की जीत होगी.

भाजपा को सबसे कड़ी टक्कर समाजवादी पार्टी से ही मिलती रही है. कांग्रेस- बसपा के खाते में आधा दर्जन सीटें भी नहीं आती थी. यही वजह है कि सपा इस बार भी पूरी जोर आजमाइश स्थानीय निकाय के चुनाव में कर रही है. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता कीर्ति निधि पांडेय कहते हैं कि भाजपा इस मुगालते में न रहे कि, इस बार के चुनाव में वह नगर निगम में अपना पूर्ण बहुमत का बोर्ड बना लेगी. उन्होंने दावा किया कि इस बार तो बीजेपी के हाथ से महापौर की सीट भी जाने वाली है.समाजवादी पार्टी के अधिकतम पार्षद जीतेंगे और महापौर का परिणाम भी सपा के खाते में जाएगा.

आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2012 के नगर निगम चुनाव में सपा ने सिंबल पर प्रत्याशी नहीं उतारे थे, लेकिन उसके कार्यकर्ता 28 वार्ड से पार्षद जीतकर सदन में पहुंचे थे. 2017 के चुनाव में साइकिल चुनाव चिन्ह पर सिर्फ 18 वॉर्डों में ही सपा को जीत मिली थी. वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा ने वर्ष 2012 के मुकाबले 8 वार्ड ज्यादा जीते थे. 2012 में जहां 19 वार्ड में उसे जीत मिली थी, वहीं 2017 में बढ़कर यह 27 हो गई. फिर भी बीजेपी बोर्ड में बहुमत के लिए बिछड़ गई और उसे जोड़-तोड़ करनी पड़ी.

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