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राजस्थान की वो दिग्गज नेता जो 9 बार पहुंचीं विधानसभा, लेकिन एक गलती और सियासी करियर खत्म

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 3, 2023, 2:30 PM IST

Sumitra Singh Exclusive, झुंझुनू की दिग्गज नेता सुमित्रा सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में अपने सियासी इतिहास पर खुलकर बात की. उन्होंने अपने राजनीतिक करियर के खात्मे पर भी बेबाकी से अपनी बात रखी. देखिए उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी...

former Assembly Speaker Sumitra Singh
former Assembly Speaker Sumitra Singh

सुमित्रा सिंह ने क्या कहा, सुनिए...

झुंझुनू. राजस्थान में विधानसभा चुनाव बेहद नजदीक है. पार्टियों के टिकट वितरण भी अंतिम चरण में हैं, साथ ही प्रदेश में कई नेताओं का बगावत का दौर भी जारी है. इस बीच प्रदेश में एक ऐसी नेता भी रहीं हैं, जिन्होंने कभी भी जरूरत पड़ने पर पार्टी बदलने से गुरेज नहीं किया. राजस्थान विधानसभा में 9 बार विधायक बनकर पहुंचीं. अंदाजा लगाया जा सकता है कि 1957 में पहली बार विधायक बनने और फिर मंत्री और उसके बाद विधानसभा अध्यक्ष बनने वाली सुमित्रा सिंह की कितनी राजनीतिक सूझबूझ रही होगी, लेकिन वे भी एक बार राजनीतिक जाल में फंस गईं थीं और अंत में उनका राजनीतिक करियर खत्म हो गया.

एक गलती ने कर दिया करियर खत्म : सुमित्रा सिंह बताती हैं कि वर्ष 2003 में भाजपा के टिकट पर कद्दावर जाट नेता शीशराम ओला के पुत्र वर्तमान मंत्री बृजेन्द्र ओला को उन्होंने शिकस्त दी और फिर विधानसभा अध्यक्ष बनीं. 2008 के चुनाव से पहले पांच-छ सरपंच सहित कई लोग उनके पास आए और झुन्झुनू छोड़कर मंडावा आने की बात कही. ऐसे में झुन्झुनू से सिटिंग एमएलए की सीट छोड़कर मंडावा विधानसभा का चुनाव लड़कर उन्होंने अपनी जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती कर दी.

इस चुनाव में उनकी जमानत तक जब्त हो गई. लोग बताते हैं कि यह राजनीतिक जाल पूर्व मंत्री शीशराम ओला ने बिछाया था, क्योंकि सुमित्रा सिंह झुन्झुनू में ओला के पुत्र को लगातार शिकस्त दे रही थीं. यह चुनाव हारने के बाद उन्होंने 2013 में वापसी का प्रयास किया. उन्होंने झुन्झुनू में भाजपा का टिकट मांगा. हालांकि, टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव भी लड़ा, लेकिन नाकामी मिली. बाद में वापस कांग्रेस में भी आईं, लेकिन इस तरह 9 बार की विधायक का राजनीतिक करियर खत्म हो गया.

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भाजपा के बागी का कर रहीं समर्थन :अब वे भाजपा से बागी प्रत्याशी राजेन्द्र सिंह भामू का समर्थन कर रही हैं और अब करीब 93 वर्ष की उम्र में भी उसी जोश के साथ जनता के बीच जा रही हैं. उनके पुत्र राजीव सिंह भी टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने यहां से गत बार के बागी प्रत्याशी बबलू चौधरी को टिकट दे दिया. हालांकि वे बताती हैं कि अपनी ओर से कभी भी उन्होंने भाजपा या कांग्रेस से किसी भी बड़े नेता से संपर्क नहीं किया.

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ये है सिंह का सियासी इतिहास :1957 में पिलानी से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर पहली बार विधायक बनीं. फिर 1962, 1967, 1972 व 1977 में झुंझुनू से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचीं. 1985 व 1990 में पिलानी से लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयी हुईं. 1998 में झुंझुनू से निर्दलीय के रूप में और 2003 में झुंझुनू से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा.

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