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Special: दांव पर जिंदगी...'कालीसिंध' से गांवों के पानी में कुछ यूं घुल रहा जहर

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Published : Jul 16, 2020, 4:14 PM IST

झालावाड़ के कुछ गांवों में लोगों को विकास की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. आलम यह है कि उन्हें जिंदगी बचाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. जब पानी ही जहर बन जाए तो उसे और कह भी क्या सकते हैं. देखिये ये खास रिपोर्ट...

Kalisindh Thermal Power Plant, कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट
कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट से ग्रामीणों के पानी में घुल रहा जहर

झालावाड़. शहर से 17 किलोमीटर दूर स्थित कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट के आसपास के गांवों के लोगों को विकास की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. थर्मल पावर प्लांट से निकली कोयले की राख और उसका केमिकल और ऑइल, ग्रामीणों के तालाबों और भूमिगत पानी को जहरीला बना रहा है. आलम यह है कि यहां का पानी न सिर्फ इंसानों के लिए, बल्कि जानवरों के पीने योग्य भी नहीं बचा है.

कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट से ग्रामीणों के पानी में घुल रहा जहर

ग्रामीणों ने बताया कि थर्मल पावर प्लांट में फ्लाई एश के लिए बनाये गए कृत्रिम तालाब में सीपेज की वजह से उनके जल स्रोत इतने प्रदूषित हो गए हैं कि उनका पानी किसी के भी पीने लायक नहीं बचा है. ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव के पानी को ना तो वो पी सकते हैं, ना दूध में डाल सकते हैं, ना नहा सकते हैं और ना ही जानवरों को पिला सकते हैं. ऐसे में प्रदूषित पानी से ग्रामीणों के सामने विकराल समस्या खड़ी हो गई है.

ईटीवी भारत की टीम ने ग्रामीणों की समस्याओं को गहराई से जानने के लिए थर्मल पावर प्लांट के आसपास के करीब आधा दर्जन गांवों का दौरा किया. जिसमें निमोदा, उण्डल और कर्मा खेड़ी में गांव में सबसे ज्यादा परेशानी देखने को मिली.

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दूध का फटना...

ग्रामीणों ने बताया कि जानवरों से दूध निकालने के बाद वह जैसे ही उसको गर्म करते हैं, पानी डालने से महज 10 से 15 सेकंड में दूध फट जाता है और पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है. इन गांवों में मुख्य रूप से गुर्जर समाज के लोग रहते हैं, जिनका मुख्य काम शहरों में दूध की सप्लाई करने का ही होता है. ऐसे में इन लोगों के लिए यह समस्या और भी ज्यादा परेशान करने वाली बन गई है.

साबुन का बेअसर होना...

ग्रामीणों ने बताया कि जब वे साबुन और पानी से हाथ धोते हैं या नहाते हैं तो उसका कोई असर नहीं होता. यहां तक कि पानी के संपर्क में आते ही साबुन के झाग अलग हो जाते हैं और पानी अलग बहने लगता है. जिसकी वजह से साबुन का कोई असर नहीं होता है. वहीं, पानी से नहाने के बाद त्वचा से संबंधित समस्या भी ग्रामीणों को झेलनी पड़ती है.

बर्तनों का खराब हो जाना...

ग्रामीणों ने बताया कि इस पानी की वजह से स्टील, प्लास्टिक और लोहे के बर्तन जो अन्य जगहों पर सालों साल चलते हैं, वो उनके यहां पर 6 महीने में ही खराब हो जाते हैं. उनमें मोटी परतें जम जाती हैं और वो किसी भी काम के नहीं रह जाते.

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बीमारियों का बढ़ना...

गांव के एक युवक ने बताया कि उसको हाल ही में लीवर से संबंधित बीमारी हुई थी, जिसके इलाज के लिए उनको कोटा में भर्ती होना पड़ा. जहां पर डॉक्टर ने बताया कि आपके गांव का पानी खराब है. ऐसे में बीमारियों से बचने के लिए गांव का पानी बिल्कुल ना पिएं. पानी या तो गांव से बाहर का पिएं या फिर बोतल का.

जानवरों में बांझपन...

ग्रामीणों ने बताया कि पानी में प्रदूषण का स्तर धीरे-धीरे इतना ज्यादा बढ़ गया है कि पालतू जानवर बीमार हो रहे हैं और उनमें बांझपन बढ़ रहा है. कई जानवर तो बिना किसी बीमारी के ही जल्द मर भी जाते हैं.

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जमीनों का बंजर होना...

ग्रामीणों ने बताया कि थर्मल पावर प्लांट के बनने के पहले उनके खेतों में बहुत पैदावार होती थी, लेकिन धीरे-धीरे पैदावार घटती गई और अब स्थिति यह हो गई है कि उनकी जमीनें बंजर होती जा रही है. वहीं, थर्मल पावर प्लांट के चीफ इंजीनियर जीके राठी ने बताया कि उनको इस समस्या के बारे में कोई जानकारी नहीं है. आप बता रहें हैं तो इस बारे में जानकारी करवाई जाएगी.

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