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Special : महिलाओं का मतदान व जीत प्रतिशत बढ़ा, फिर भी प्रतिनिधित्व देने से बच रही सियासी पार्टियां

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 15, 2023, 8:54 PM IST

Rajasthan Assembly Election 2023, राजस्थान विधानसभा चुनाव में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति इस बार भी ढाक के तीन पात वाली है. वहीं, किसी भी सियासी पार्टी ने चुनाव में महिला कोटा लागू करने में कोई रुचि नहीं दिखाई, जबकि मतदान में महिलाओं की भागीदारी की चुनाव-दर-चुनाव बढ़ा है.

Rajasthan Assembly Election 2023
Rajasthan Assembly Election 2023

महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने से बच रही सियासी पार्टियां

जयपुर.राजस्थान में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले संसद में महिलाओं को राजनीति में 33% आरक्षण देने के विधेयक पर मुहर लगी. चूंकि अभी विधेयक लागू नहीं होना था, इसलिए राजस्थान में दोनों ही प्रमुख दलों ने महिलाओं को 33 फीसदी टिकट देना जरूरी नहीं समझा. यहां भाजपा ने महिलाओं को महज 20 यानी कुल सीटों का 10% और कांग्रेस ने 27 यानी कुल सीटों का 13.5 % टिकट देकर इतिश्री कर ली. इनमें भी 7 सीटें ऐसी हैं, जहां दोनों ही राजनीतिक दलों ने महिलाओं पर दांव खेला है. .

मतदान के साथ ही बढ़ा जीत प्रतिशत :राजस्थान विधानसभा चुनाव में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति इस बार भी ढाक के तीन पात वाली है. किसी भी दल ने इस विधानसभा चुनाव में महिला कोटा लागू करने में रुचि नहीं दिखाई, जबकि मतदान में महिलाओं की भागीदारी की अगर बात करें तो साल 1998 से 2018 तक लगातार बढ़ती रही है. पहले जो मतदान 58.88 फीसदी रहा, वो चुनाव दर चुनाव बढ़कर 75 फीसदी तक पहुंच गया. यही नहीं बीते दो चुनाव को देखें तो महिलाओं के जीत का प्रतिशत भी पुरुषों की तुलना में बढ़ा है. 2013 में 166 महिला प्रत्याशियों में से 28 ने जीत दर्ज की थी. वहीं, 2018 में 189 में से 24 विधानसभा पहुंची.

सात सीटों पर महिलाओं में टक्कर

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7 सीटों पर कांग्रेस-भाजपा ने खेला महिला प्रत्याशियों पर दांव :इन आंकड़ों के बावजूद राजस्थान के दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों ने महिलाओं को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया. भाजपा ने जहां 200 में से 20 सीटों पर महिला प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा है तो वहीं कांग्रेस ने कुछ आगे बढ़कर 27 सीटों पर महिला प्रत्याशियों को मौका दिया है. वहीं, प्रदेश में 7 सीटें ऐसी हैं, जहां दोनों ही राजनीतिक दलों ने महिला प्रत्याशियों पर दांव खेला है.

राजस्थान में राजनीति पुरुष प्रधान :महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलने पर आधी आबादी ने सवाल उठाए हैं. शिक्षाविद डॉ. मीनाक्षी मिश्रा ने कहा कि राजस्थान में महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है. जब विधेयक पास हुआ है तो अभी से ही महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाई जानी चाहिए थी और भारत में तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी महिला रही हैं. राजस्थान की तो सीएम भी महिला रही हैं. इन उदाहरण से स्पष्ट है कि महिलाएं राजनीति में भी सक्षम रूप से काम कर सकती हैं. बावजूद इसके यहां राजनीति पुरुष प्रधान हो रही है. अमूमन ये भी देखने को मिलता है कि महिलाओं के नाम पर सीट जीती जाती है, लेकिन महिला उस पर काम करती नजर नहीं आती है. उनके बजाय उनके पति काम करते हैं, जो पार्षद पति या एमएलए पति कहलाते हैं. हालांकि यह गलत है और हास्यास्पद भी. महिला जब अंतरिक्ष में जा चुकी तो और क्या शेष बचा है?.

महिलाओं का मतदान प्रतिशत

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टिकट वितरण से महिलाओं में मायूसी :वहीं, महिला सुरक्षा मंच की अध्यक्ष बबीता शर्मा ने कहा कि दोनों ही पार्टियों ने जो टिकट वितरण किए हैं, उनमें महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है. इसे लेकर महिलाओं में मायूसी भी है. एक तरफ राजनीतिक दल नारी सशक्तिकरण की बात करते हैं, लेकिन महिलाओं को नजरअंदाज किया जाता है. महिलाएं यदि चुनाव में इलेक्ट होकर सदन तक पहुंचती तो महिलाओं के एंपावरमेंट की बात और बेहतर ढंग से रखी जा सकेगी. उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल इस पर ध्यान देंगे.

महिला को एंपावर करने की जरूरत :जयपुर निवासी श्रेया ने कहा कि यदि महिलाओं को प्रोविजन के तहत टिकट ही नहीं मिलेंगे तो उनके जीतकर असेंबली तक पहुंचना तो बाद की बात है. पहली प्राथमिकता टिकट देने की होनी चाहिए, क्योंकि एक सशक्त महिला पूरे समाज को एंपावर करती है. ऐसे में सबसे पहले उस महिला को अधिकारों के तहत एंपावर करने की जरूरत है. महिलाओं के नजरिए से भी देखा जाए तो सदन में एक महिला उनकी मांगों को उनके पक्ष को ज्यादा बेहतर तरीके से रख सकती हैं.

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वहीं, स्कूल संचालिका आयुषी ने बताया कि आज के तारीख में महिलाएं हर क्षेत्र में बहुत बेहतर काम कर रही है. वो खुद एक स्कूल का संचालन करती हैं, जहां अधिकतम स्टाफ महिलाओं का है और वो स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों को सही दिशा दे रही है. इसी तरह इसरो के बड़े-बड़े मिशन सक्सेसफुल रहे, जिसमें महिलाओं की भूमिका अहम रही है. उन्होंने आगे कहा कि पॉलिटिकल रिप्रेजेंटेशन नहीं दिया जाना भी एक बड़ी कमी है और राजनीतिक दलों की ओर से ये प्रतिनिधित्व क्यों नहीं दिया जा रहा है, ये भी समझ से परे है.

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