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विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवसः डॉ. मनीषा सिंह ने उठाया राजस्थानी संस्कृति से लोगों को जोड़ने का बीड़ा, 12 साल से जारी है अविरल सफर

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Published : May 21, 2023, 6:36 AM IST

Updated : May 21, 2023, 9:19 AM IST

पूरे विश्व में सांस्कृतिक विविधता का दिवस 21 मई को मनाया जाता है. यह दिन पूरे विश्व में अलग-अलग देशों की सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाने के लिए, उनकी विविधता को जानने के लिए मनाया जाता है. विश्व में सांस्कृतिक विविधता का दिवस के मौके पर आज हम आपको डॉक्टर मनीषा सिंह मिलवा रहे हैं. डॉ. मनीषा सिंह पिछले 12 साल से राजस्थानी संस्कृति से (World Day for Cultural Diversity) युवाओं को जोड़ने का काम कर रही हैं.

World Day for Cultural Diversity
World Day for Cultural Diversity

मान द वैल्यू फाउंडेशन की फाउंडर डॉ. मनीषा सिंह से खास बातचीत

जयपुर.आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपनी संस्कृति और तीज त्योहारों को भूलते जा रहे हैं . एकल परिवार और भागदौड़ भरी जिंदगी के दरमियान हालात यह है कि लोग अब इन त्योहारों से दूर होते जा रहे हैं. युवाओं को संस्कृति से जोड़ने के लिय आज पूरे विश्व भर में सांस्कृतिक विविधता का दिवस मनाया जा रहा है. यह दिन पूरे विश्व में अलग-अलग देशों की सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाने के लिए , उनकी विविधता को जानने के लिए मनाया जाता है. विश्व में सांस्कृतिक विविधता के दिवस के मौके पर आज हम आपको मुलाकात डॉ मनीषा सिंह से करवा रहे हैं.

डॉ. मनीषा सिंह राजस्थानी संस्कृति से युवाओं को जोड़ने के मिशन में लगी हुई हैं . वर्कशॉप, तीज गणगौर उत्सव , सेमिनार के जरिए मनीषा पिछले 12 साल से राजस्थानी कल्चर को बढ़ावा दे रही हैं. मनीषा कहती हैं कि बेशक समय के साथ चलना बहुत जरूरी है, मगर हमें इतना तेज भी नहीं चलना चाहिए कि हम अपने बुजुर्गों की तरफ से चलाए गए परंपराएं , रीति रिवाज और तीज-त्योहारों को किनारे कर दें.

राजस्थानी संस्कृति से जोड़ने की मुहिम

बेटी के सवालों ने किया विचलितःमनीषा कहती हैं कि बचपन से हमने देखा है कि हम जॉइंट फैमिली में रहे तो हर तीज त्योंहार को बड़े उत्साह और हर्षोल्लास के साथ में मनाते हैं . पूरे साज सिंगार के साथ परंपराओं को निभाते हुए हम त्योहार को मनाते हुए आ रहे हैं , लेकिन जब मेरी बेटी छोटी थी तब उसने मुझसे कई बार इस तरह से सवाल किए कि हम यह त्यौहार क्यों मना रहे ? किस लिए मना रहे ?. मुझे इस बात ने सोचने को मजबूर कर दिया कि आज मेरी बेटी के यह सवाल हैं, वह तो लगातार हमारी परंपराओं को परिवार के जरिए देख रही है, लेकिन कई ऐसे एकल परिवार है जो इन त्योहारों से दूर होते जा रहे हैं. इसकी वजह से युवा पीढ़ी हमारे तीज त्योहार परंपराएं रिती रिवाज से अनभिज्ञ हो रही है.

डॉ. मनीषा सिंह व अन्य मिहलाएं

उन्होंने बताया कि वहीं से सोच पैदा हुई कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाए, जिससे कि युवा पीढ़ी को हम हमारे कल्चर, हमारे त्योहार , परंपराएं , रीति रिवाज के बारे में जागरूक कर सकें. इसी को लेकर 2012 में मान फाउंडेशन की नींव रखी है और उसका उद्देश्य एक ही रखा था कि छोटे छोटे कार्यक्रम के जरिए बच्चों को हम जागरूक कर सकें. मनीषा कहती हैं कि हमारे बच्चों को हमारे तीज त्योहार , संस्कृति और इतिहास के बारे में बताना चाहिए, ताकि उनको पता चले कि उनकी संस्कृति खूबसूरत है. हमारा गौरवांवित भरा इतिहास रहा है , वह युवा पीढ़ी को जानना जरूरी है. आधुनिकता की दौड़ में इन सब चीजों से बहुत पीछे रह गए हैं.

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12 साल पहले शुरुआत हुईः मनीषा बताती हैं कि पहले तो उन्होंने छोटे छोटे कार्यक्रम के जरिए शुरू किया, लेकिन लगा इस तरह से जागरूकता नहीं बढ़ेगी . इसलिए 2012 में एक फाउंडेशन बनाया, जिसके जरिए महिलाओं का समूह खड़ा किया. महिलाओं का समूह गणगौर , तीज से एक दो दिन पहले इन त्योहारों को उत्सव के रूप में मनाने लगा . इसमें बच्चों को भी जोड़ने का काम किया . इस उत्स्व में महिलाएं पारंपरिक परिधान में अच्छे से तैयार होकर आती हैं , पूरी रस्मो रिवाज के साथ त्योहार मनाया जाता है. इसके आलावा साल में एक बार गैलोर कार्यक्रम किया जाता है, जिसमे राजस्थानी संस्कृति से जुड़े कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है.

डॉ. मनीषा सिंह

राजस्थानी भाषा, संस्कृति और परम्पराओं पर इसमें चर्चा की जाती है. मनीषा कहती हैं कि इस तरह के कार्यक्रमों के जरिए हम अपने रीति रिवाज और परंपराओं को मनाते हैं. उन्होंने कहा कि आज बहुत बड़ा कारवां बन गया है. सैकड़ों महिलाएं कार्यक्रमों के जरिए जुड़ी हुई हैं और वह हर साल होने वाले कार्यक्रमों में भाग लेती हैं . इसके अलावा वर्कशॉप के जरिए हम बच्चों को जागरूक करते हैं. कॉलेज, स्कूल में भी हम वर्कशॉप लगाते हैं ,ताकि बच्चों को अधिक से अधिक हमारी संस्कृति के बारे में जागरूक कर सकें. मनीषा बताती हैं कि पिछले 12 साल से लगातार इसी तरह के छोटे - छोटे प्रयास के जरिए राजस्थानी संस्कृति को युवाओं तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है.

पद्मावत का उठाया था मुद्दाःपद्मावत फिल्म को लेकर हुए विवाद पर मनीषा सिंह कहती हैं कि पद्मावत फिल्म के समय जब विरोध हो रहा था तो हमसे भी कई सवाल किए गए थे. जब इस फिल्म को देखा ही नहीं तो विरोध क्यों कर रहे , लेकिन हमारा विरोध फिल्म की कहानी से नहीं था. हमारा विरोध था कि जिस तरह से एक महारानी जिसने अपनी अस्मिता के लिए जौहर कुंड में कूदना मंजूर किया, उसमें जिस तरह से घूमर के जो डांस को दिखाया गया, वह मूल स्वरूप के साथ छेड़खानी की गई थी. घूमर का ट्रेडिशन बिल्कुल अलग तरह का है. उसको जिससे जोड़कर दिखाया गया, उसमें जिस ड्रेस का इस्तेमाल किया गया था , उससे हमारी आपत्ति थी. मनीषा ने कहा कि हमारी जो आने वाली पीढ़ी है वह उसी फिल्म के नजरिए से हमारी संस्कृति को देखेगी. पद्मावत फिल्म घूमर को सही तरिके से नहीं दिखाया गया था , उसी को लेकर हमने विरोध दर्ज कराया था और अपनी बात रखी थी.

त्योहारों पर किया फोकस

छोटे छोटे समूह के जरिए मनाएं त्यौहारःमनीषा कहती है कि आधुनिकता की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हम अपनी परंपराओं , संस्कृति से दूर हो रहे हैं. इसके कई कारण हैं. बच्चे सोशल मीडिया , यूट्यूब में बिजी हैं . एकल परिवार हो गए हैं . घरों में उस तरह से परंपरागत तरीके से तीज त्यौहार नहीं मनाए जाते, जैसे पहले मनाए जाते थे. इसकी वजह से युवा इसके बारे में जागरूक नहीं हो पाते, इसलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि जहां हम रह रहे हैं, वहां पर छोटे-छोटे समूह बनाएं और उनके जरिए त्योहारों को सेलिब्रेट करें. इससे हमारे युवा ट्रेडिशन को लेकर जागरुक हो सकेंगे.

मनीषा ने कहा कि एक वक्त था कि जब लोग बड़ी बेसब्री से सावन माह का इंतजार करते थे, पूरे साल में ये ऐसा महीना होता था, जिसे लोग बड़ी खुशियों से मनाया करते थे. नई नवेली दुल्हनें पूरा श्रृंगार कर इस खुशियों के त्योहार को अपने सखियों के साथ मनाती थी, लेकिन समय की रफ्तार इतनी तेज है कि हम सभी से ऐसे खुशियों भरे त्योहार से दूर होते जा रहे हैं. आजकल नौजवान लड़कियां व दुल्हनें मिलजुल कर ऐसे त्यौहार मनाने के स्थान पर मोबाइल के वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, इंटाग्राम में खो चुकी हैं. उन्हें त्यौहार की कोई अहमियत ही नहीं रही. अब समय की पुरजोर मांग है कि हम अपने पुरातन काल से चली आ रही परम्पराओं , तीज - त्योहारों को पहले की भांति हंसी खुशी से मनाएं. मनीषा कहती है कि यह सच है कि हमें बदलते दौर के साथ कई चीजों में बदलाव करने पड़ते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी परंपराएं, संस्कृति को भूल जाएं.

Last Updated : May 21, 2023, 9:19 AM IST

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