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Special: दूध का कारोबार बना घाटे का सौदा, पशुपालकों की आर्थिक हालत खस्ता

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Published : Oct 31, 2020, 9:36 AM IST

गेहूं और गन्ने की खेती के साथ काफी हद तक पशुपालन भी किसानों की आर्थिक स्थिति का आधार है, लेकिन दूध के गिरते भाव और पशुओं पर बढ़ते खर्च ने सारा गणित बिगाड़ दिया है. यही कारण है कि किसानों के लिए अब पशुपालन घाटे का सौदा साबित हो रहा है. देखें विस्तृत रिपोर्ट...

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पशुपालन बना घाटे का व्यापार

दौसा: कुछ साल पहले तक पशुपालन किसानों के लिए फायदे का सौदा रहा. लेकिन अब इसमें भी घाटा होने लगा है. फायदे का मुख्य कारण दूध के सही दाम, बेहतर उत्पादन और पशुओं पर होने वाला कम खर्च था. पिछले कुछ वर्षो में दुधारू पशुओं की देखरेख और रातब आदि पर बढ़ते खर्च ने सारा गणित बिगाड़ दिया.

पशुपालन बना घाटे का व्यापार

ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश लोग जिनके खेती के लिए काफी कम जमीन होती है, वे पशुपालन के सहारे अपने परिवार का गुजर-बसर करते आ रहे थे. लेकिन वर्तमान हालातों में उनके भी हालत खस्ता कर दिए. एक तो बारिश की कमी के चलते खेतों में फसलों की पैदावार अच्छी नहीं हुई. जो थोड़ी बहुत फसल हुई भी तो टिड्डियां उसे चट कर गईं. ऐसे में अब किसानों के लिए महंगे दामों पर चारा लाकर पशुओं को पालना और सस्ते दामों पर दूध बेचना मुश्किल हो रहा है.

'आसमान छू रहा चारे का भाव'

पशुओं के चारे के भाव तो आसमान छू रहे हैं. लेकिन दूध के भाव दिन-ब-दिन घटते ही जा रहे हैं. जिसके चलते जिले के किसान पूरी तरह परेशान हैं और अब पशुपालन से धीरे-धीरे मुंह मोड़ने लगे हैं. जिले में एक ओर जहां किसान अनाज की कीमतों में बढ़ोत्तरी न होने से पहले ही आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे. वहीं अब पशुपालन भी फायदे का सौदा नहीं रहा है.

दूध के नहीं मिल रहे सही दाम

'दूध का कारोबार घाटे का सौदा'

हाल ये है कि पशुपालन में कोई कमाई नहीं हो रही है. दूध से ज्यादा चारा महंगा है. ऐसे में किसान अब पशुपालन से दूरी बनाते जा रहे हैं. दूध का कारोबार घाटे का सौदा साबित हो रहा है. एक समय था, जब किसानों के लिए खेती के साथ पशुपालन भी कमाई का सबसे बड़ा जरिया होता था. एक-एक घर में पांच-पांच भैंसें पाली जाती थीं. गायें भी होती थीं. तब चारा सस्ता होता था. खेतों में भी आसानी से चारा उगाया जाता था. उसमें भी ज्यादा खर्च नहीं होता था. दूध के दाम भी ठीक-ठाक मिलते थे. जमीन न होने वाले ग्रामीण भी पशु पालकर परिवार का पालन पोषण कर लेते थे.

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अब किसानों ने अपने खेतों में बाजरे की फसल की कटाई कर अन्य फसलों का उत्पादन शुरू कर दिया है. पशुओं के चारे की पैदावार कम कर दी है. जिससे हरे चारे और भूसा के दाम आसमान छू रहे हैं. जिन लोगों के पास खेत नहीं हैं, उन्होंने पशु पालना बंद कर दिया है. जमीन वाले किसानों ने भी पशु पालने से दूरी बना ली है. ग्रामीण क्षेत्र में अब आधे भी पशु नहीं पाले जा रहे हैं.

किसानों की आर्थिक स्थिति हुई बुरी

'आवारा पशु फसलों को पहुंचा रहे नुकसान'

आसपास के सभी गांवों में तेजी से आवारा पशुओं की संख्या बढ़ रही है. पहले से ही यहां सैकड़ों पशु घूमते रहते थे. बस स्टैंड समेत आसपास की दुकानों पर दर्जनों गायें घूमती हैं. फसलों में भी ये नुकसान पहुंचाते हैं. किसानों को इनसे फसलों की रखवाली करनी पड़ रही है. पूरी-पूरी रात खेतों पर रहना पड़ रहा है. केंद्र सरकार किसानों की समस्याओं पर ध्यान देने की बजाय नए नियम कानून बना रही है. दूध के दाम भी जस के तस हैं. इससे पशुपालन में दिक्कत हो रही है. ऐसे में पशुपालन के सहारे अब परिवार चलाना मुश्किल ही नहीं दूभर हो चला है.

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महंगे दामों पर पशु खरीदना फिर महंगे दामों पर चारा खरीदना और बहुत सस्ते दामों पर दूध बेचना किसानों के लिए समस्या खड़ी कर रहा है. जिस वजह से लोग अब धीरे-धीरे पशुपालन से मुंह मोड़ते नजर आ रहे हैं. अब तक लोगों के घरों में 10 से 15 दुधारू पशु हुआ करते थे. लेकिन अब पशुपालक एक या दो दुधारू पशु रखकर अपने घर परिवार के खानपान में लगे हैं, तो वहीं पशुपालन को छोड़कर शहर में मजदूरी तलाशने में जुट गए हैं.

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