राजस्थान

rajasthan

Diwali 2022: मिट्टी के दीपकों से कुम्हारों का मन 'खट्टा'...बोले नहीं मिलता मेहनताना, पेट पालना बड़ी चुनौती

By

Published : Oct 16, 2022, 6:53 PM IST

दीपावली सिर पर है और पीएम मोदी वोकल फॉर लोकल (PM Modi Vocal for Local) को बढ़ावा देने को लगातार अपील करते रहे हैं. बावजूद इसके आज बाड़मेर के कई कुम्हार मिट्टी के दीये बनाने से गुरेज कर रहे हैं. कुम्हारों का कहना है कि उन्हें मेहनत के अनुरुप मेहनताना नहीं मिल पाता है, लिहाजा पेट पालना भी उनके लिए चुनौती बन गई है.

potters decreased rapidly in Barmer
विलुप्ति के कगार पर मिट्टी के दीपक

बाड़मेर.दीपावली पर मिट्टी के दीपक की रोशनी अपने आप में अलग होती है, लेकिन आधुनिकता के इस दौर में अब दीपक बनाने की परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त हो (Potter keeping distance from earthen lamps) रही है. कुम्हारों की नई पीढ़ी अब इस कला से दूरी बना रही है. जिसके कारण यह कला आहिस्ते-आहिस्ते अपने खात्मे के कगार पर पहुंचती जा रही है. कुम्हारों की मानें तो मेहनत के अनुरुप पारिश्रमिक न मिलने से उनकी नई पीढ़ी इस कला से दूरी बनाने को मजबूर है.

बाड़मेर में पहले कुम्हारों के 20 परिवार मिट्टी के दीये बनाने का काम करते थे, लेकिन मेहनत के अनुरुप मेहनताना न मिलने से धीरे-धीरे कई परिवारों ने इससे (potters decreased rapidly in Barmer) दूरी बना ली. ऐसे में आज आलम यह है कि बामुश्किल दो-चार परिवार ही इस काम को कर रहे हैं. कुम्हारों का मानना है कि यदि सरकार उनकी मदद करें तो उनकी विलुप्त होती हस्तकला को बचाया जा सकता है.

विलुप्ति के कगार पर मिट्टी के दीपक

इसे भी पढ़ें - आधुनिक चकाचौंध में खो रही मिट्टी के दीये बनाने की कला, परंपरा जिंदा रखने के लिए गांवों में अब भी काम कर रहे कुम्हार

वहीं, दीपावली के पर्व को अब कुछ ही दिन बचे हैं. ऐसे में कुम्हारों को अबकी मिट्टी के दीयो की अच्छी बिक्री होने की उम्मीद है. ऐसे में बाड़मेर के कुछ गिने-चुने कुम्हार दिन-रात जगकर दीये बना रहे हैं. कुम्हार विशनाराम बताते हैं कि 40-50 सालों से वह मिट्टी के बर्तन व दीये बनाने का काम कर रहे हैं. उनके पिता भी यही काम करते थे. अब आबादी ज्यादा होने की वजह से इलाके में मिट्टी के बर्तनों को पकाने नहीं दिया जाता है. लिहाजा उन्हें इस काम को करने में दिक्कतें पेश आती हैं. इसी तरह लालाराम ने बताया कि वह करीब 60 सालों से मिट्टी के बर्तन व दीपक बना रहे हैं. उनके पिता भी इसी काम में लगे थे और आज उनका बेटा भी यही काम कर रहा है. लेकिन अब उनके पोते इस काम को सीखने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं, क्योंकि इस काम को कर उन्हें कोई खास लाभ नहीं होता है.

पीराराम नाम के एक अन्य कुम्हार ने बताया कि दीपावली का पर्व सिर पर है. ऐसे में उनका परिवार इन दिनों मिट्टी के दीये बनाने में लगा है. लेकिन आज कल की पीढ़ी इस काम को सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. क्योंकि इस काम आमदनी नहीं है. लेकिन इन सब के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल फॉर वोकल की अपील से उम्मीद जगी है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details