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Special : अलवर में 159 हेक्टेयर जमीन से खत्म किए गए विलायती बबूल के पेड़, जानिए इसका इतिहास और कैसे भारत आया

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Published : Jun 23, 2021, 10:29 AM IST

Updated : Jun 23, 2021, 10:49 AM IST

विलायती बबूल (Vilayati Acacia) खेतों को बंजर बना रहा है. इसकी बढ़ती तादाद दूसरे पेड़ पौधों को नष्ट करने के साथ ही पशु-पक्षियों (animals and birds) के लिए भी भी घातक साबित हो रही है. अलवर जिले में वन विभाग (Forest department) ने 159 हेक्टेयर जमीन से विलायती बबूल (Vilayati Acacia) को नष्ट किया है जिसके कुछ राहत मिलने वाली है. लेकिन क्या आपको पता है कि यह बिलायती बबूल भारत कैसे आया और कैसे देश के अलग अलग हिस्सों में फैलता चला गया. देखिए ये रिपोर्ट...

Vilayati Acacia in Alwar District, Forest Department
विलायती बबूल खत्म करने की कवायत शुरू

अलवर.रेगिस्तान में हरियाली लाने के लिए अंग्रेजों के जमाने में शेखावाटी में हेलिकॉप्टर से बिखेरे गए विलायती बबूल (Vilayati Acacia) के बीज अब भारी मुसीबत बन चुके हैं. कृषि अधिकारियों की मानें तो अब तक विलायती बबूल के चलते वन क्षेत्र के निकट करीब 300 हेक्टेयर भूमि बंजर हो चुकी है. पर्यावरण को दूषित करने के अलावा कांटेदार कीकर (विलायती बबूल) से जीव-जंतु और पक्षी भी घायल हो जाते हैं. हालांकि इसको हटाने का काम भी शुरू हुआ है लेकिन तेजी से बढ़ते कीकर के पेड़ों के आगे के प्रयास भी ज्यादा असर नहीं दिखा पा रहे हैं.

विलायती बबूल खत्म करने की कवायत शुरू

हरियाली की आस में लगाया गए विलायती बबूल ने ढाक धोक, कैर, ढाक, सालर, खैरी, रोंझ, ककेड़ा, जंड, के अलावा औषधीय पौधे गुग्गल, बांसा, चिरमी, ग्वार पाठा, सफेद आक, माल कांगनी, सफेद मूसली, मरोड़ फली, शतावर, गोखरू, जंगली प्याज, हडजुड़, जटरोफा, अश्वगंधा और इंद्र जैसी कई वनस्पतियों को निगल रहा है.

इस पेड़ से पक्षियों को भी नुकसान होता है. पक्षी बबूल के कांटों में फंसकर घायल हो जाते है. खराब होते हालातों को देखते हुए अलवर में वन विभाग की तरफ से विलायती बबूल को हटाने की प्रकिया शुरू की है. इसके तहत 159 हेक्टेयर जमीन से विलायती बबूल के पेड़ हटाए गए हैं अभी तक.

अलवर डीएफओ AK श्रीवास्तव ने बताया- वन विभाग की तरफ से अब तक करीब 159 हेक्टेयर जमीन से विलायती बबूल हटाया गया है. नाबार्ड, कैंपा, कैंपा डीएफएल जैसी अनेकों योजनाओं के तहत विलायती बबूल के पेड़ों को हटाने की प्रक्रिया शुरू हुई है.

सड़क किनारे खड़े विलायती बबूल

AK श्रीवास्तव ने बताया कि विलायती बबूल को नष्ट करने में करीब करीब 3 साल का समय लगा है. उन्होंने बताया की अभी भी लगातार इसकी मॉनिटरिंग की जाती है. आने वाले समय में अगर फिर से तैयार होते है तो यह प्रक्रिया दोहराई जाएगी.

विलायती बबूल दूसरे पेड़ों को नष्ट कर रहा-

कीकर (विलायती बबूल)के नीचे कोई पेड़ तो होना अलग बात है उसके नीचे घास भी नही उगती है. इससे पर्यावरण को भी नुकसान होता है. अरावली के आसपास के रहने वाले किसान कहते हैं कि पहले वो अपने पशुओं को पहाड़ में चरने के लिए छोड़ देते थे लेकिन अब पहाड़ों से घास भी खत्म हो गई है. इसके अलावा दूसरे पेड़ों को भी यह नष्ट कर दिया है.

विलायती बबूल राजस्थान में इसे कीकर के नाम से भी जाना जाता है

भारत कैसे आया विलायती बबूल-

बिलायती बबूल का वैज्ञानिक नाम प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा है. अरावली पर्वतमाला प्राचीनतम पर्वतमालाओं में से एक है. इसका अधिकांश भाग राजस्थान में ही है. अरावली का सर्वोच्च पर्वत शिखर राजस्थान में माउंट आबू के पास गुरु शिखर है. दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन भी इसी अरावली पर्वत माला में ही बना हुआ है. यूरोपियन देशों की मदद से तापमान को संतुलित रखने के लिए इस पर्वत माला पर अलग-अलग समय पर पौधरोपण हुआ.

80 साल पूर्व अंग्रेजों ने हेलीकॉप्टर से छिड़के थे बीज-

वर्ष 1940 में ब्रिटिश अधिकारियों ने उस समय राजस्थान में बढ़ रहे रेगिस्तान को रोकने के लिए मेक्सिको का एकेसिया का बीज अलवर, बाड़मेर, जैसलमेर समेत राजस्थान के अधिकांश जिलों में छिड़का गया था. अकाल व कम बारिश के बावजूद धीरे-धीरे बबूल पनपने लगे और बीते 81 सालों में लाखों हेक्टेयर में फैल चुका है.

  • ये है विलायती बबूल-

12 मीटर तक होती है इसकी ऊंचाई

10 सेंटीमीटर तक लंबी होती हैं फलियां

30 तक होती है फलियों में बीजों की संख्या

10 साल उगने योग्य होता है इसका बीज


खेतों तक कैसे पहुंचा बिलायती बबूल-

समय साथ जैसे जैसे अरावली पर्वतमाला (Aravalli Hills) में ये बढ़ता गया इसके साथ ही पहाड़ियों से बारिश के पानी के साथ बहकर किसानों की जमीन तक भी आ पहुंचा. निचले इलाके में भी यह पेड़ काफी संख्या में हो गए. इस तरह से धीरे धीरे ये बढ़ते गए.

अरावली क्षेत्र में विलुप्त हुई पेड़ों की प्रजाति-

अरावली की पहाड़ी में ढाक, धोक, कैर, ढाक, सालर, खैरी, रोंझ, ककेड़ा, जंड, के अलावा औषधीय पौधे गुग्गल, बांसा, चिरमी, ग्वार पाठा, सफेद आक, माल कांगनी, सफेद मूसली, मरोड़ फली, शतावर, गोखरू, जंगली प्याज, हडजुड़, जटरोफा, अश्वगंधा व इंद्र भी पाए जाते थे, जो अब लुप्त हो चुके हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय के पर्यावरण अध्ययन विभाग के प्रोफेसर और पूर्व प्रो-वाइस चांसलर सीआर बाबू लंबे समय से विलायती बबूल के पर्यावरण और जैवविविधता पर दुष्प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि विलायती बबूल भारत में आने के बाद अब तक देशी पेड़-पौधों की 500 प्रजातियों को खत्म कर चुका है.

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राजस्थान में खेजड़ी, अंतमूल,केम, जंगली कदम, कुल्लू, आंवला, हींस, करील और लसौड़ा सहित सैकड़ों देशी पौधे अब दिखाई नहीं देते. यही वजह है कि विलायती बबूल के फायदे कम और नुकसान ज्यादा हैं. जिस जमीन पर यह पैदा होता है वहां कुछ और नहीं पनपने देता. पर्यावरण की दृष्टि से भी इसका कोई उपयोग नहीं होता है.

अलवर में वन विभाग अब तक करीब 159 हेक्टेयर जमीन से विलायती बबूल को हटा चुका है. अलग-अलग योजनाओं के तहत जिले में काम किया जा रहा है. किसानों को इससे राहत मिलती दिख रही है इसके साथ ही आने वाले समय में यहां एक बार फिर से दूसरे हरे भरे पेड़ तैयार हो सकेंगे. लेकिन अभी भी वन विभाग के लिए चुनौती है कि आखिर पूरी तरह से इसे कब तक खत्म किया जा सकेगा.

Last Updated :Jun 23, 2021, 10:49 AM IST

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