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Lok Devta Mamadev: लोकदेव मामादेव, ये रूठ जाएं तो पड़ जाता है अकाल!

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Published : Sep 22, 2022, 6:44 AM IST

Updated : Sep 22, 2022, 10:30 AM IST

Lok Devta Mamadev

लोक देवता मामादेव राजस्थान की मिट्टी में बसते है. न मंदिर में न घरों के भीतर लेकिन सजते हैं गांवों के प्रवेश द्वार पर. मूर्ति रूप में स्थापित नहीं होते न ही मिट्टी से गढ़े जाते हैं बल्कि काठ के तोरण रूप में सजते हैं (Lok Devta Mamadev). दुखहरता देवता क्यों पूजे जाते हैं तोरण रूप में? कैसा होता है तोरण और क्या है वो दिल को छू लेने वाली कहानी जिसने आयुषधारी वीर को लोकदेवता बना दिया!

उदयपुर. राजस्थान की भूमि वीरों की गाथाओं से परिपूर्ण है. यहां के कण कण में भगवान बसते हैं. लोकदेवताओं का भी समृद्ध इतिहास है (Lok Devta of Rajasthan). ऐसे ही एक लोकदेव हैं मामादेव. जिनको पश्चिमी राजस्थान में पूजा जाता है. मूर्ति बनाकर नहीं बल्कि घरों के द्वार पर तोरण लगाकर. तोरण भी कोई मामूली नहीं! इनमें कई चिन्ह होते हैं, छवियां होती हैं जिसकी लोग आराधना करते हैं.

लोकजीवन को प्रभावित करती कुछ शख्सियतों को ही लोकदेवता कहते हैं (Lok Devta Mamadev). वो देव जो मानव रूप में अपने लोगों का कल्याण करते हैं. राजस्थान के एक ऐसे ही प्रसिद्ध लोक देवता मामादेव. इन्हें मेवाड़ बरसात के देवता के रूप में भी पूजता है.कहते हैं जब ये नाराज होते हैं तो क्षेत्र में अकाल की जैसी स्थिति पैदा होती है और फिर इन्हें मनाने रिझाने का जतन होता है. मान जाते हैं तो इंद्रदेव मेहरबान होते हैं.

मूर्ति नहीं तोरण रूप में जन आराध्य: राजस्थान के लोक देवताओं में मामादेव को बड़ी ही भक्ति आराधना और विश्वास के साथ पूजा जाता है. राजस्थान के लोक देवताओं में मामादेव एक विशिष्ट देवता हैं, जिनकी मिट्टी की मूर्ति नहीं, बल्कि लकड़ी का एक विशेष प्रकार का बड़ा कलात्मक तोरण होता है. इसे अन्य देवी-देवताओं की तरह गांव में स्थापित न करके गांव के बाहर के मुख्य सड़क पर प्रतिष्ठित किया जाता है. यह तोरण पांच 5 फीट तक की ऊंचाई लिए होता है. मामादेव मुख्यतः बारिश लाने वाले देव माने जाते हैं. माना जाता है कि इनकी भक्ति अगर सच्चे मन और विश्वास के साथ ना की जाए तो यह रूठ भी जाते हैं. ऐसे में लंबे समय तक उस इलाके में बारिश ना होना और अकाल जैसी स्थिति भी पैदा होती है. उदयपुर के लोक कला मंडल में भी मामादेव के पारंपरिक काष्ठ शिल्पियों की ओर से तैयार की गई मूर्ति रखी गई है.

क्यों कहते हैं बरसात के देवता!

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रिझाने से होती है अच्छी बारिशः साहित्यकार महेंद्र भाणावत ने बताया कि मामादेव को बारिश का देवता भी कहा जाता है. पूरे लोक में मामादेव की बहुत विशेष प्रतिष्ठा है. यहां के कण-कण में मामादेव विराजते हैं. ऐसे में उनकी बड़ी आस्था और विश्वास के साथ लोग पूजा-अर्चना करते हैं. लंबे समय तक जब क्षेत्र में बारिश नहीं होती है और आकाल की स्थिति उत्पन्न होती है तो इनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.

उन्होंने बताया कि प्राचीन समय में राजाओं के समय में गांव में ढोल बलाई अपना ढोल लेकर ऊंची चोटी पर चढ़कर ढोल बजाते हुए पूरे गांव को सूचना देता था. इस दौरान सूचना दी जाती थी कि राजा की आज्ञा से सुबह पूरे गांव वाले मामादेव की पूजा आराधना करेंगे. साहित्यकार महेंद्र भाणावत ने बताया कि अपने घर से लोग बाहर जाकर विशेष भोग बनाते और भगवान को चढ़ाने के बाद एक दूसरे को बांटते थे. जिसके कारण क्षेत्र में पड़ा अकाल और सूखे की स्थिति दूर होती थी और भगवान इंद्रदेव मेहरबान होते थे.

ये रूठ जाएं तो पड़ जाता है अकाल

मामादेव तोरण के रूप में प्रसिद्ध हैंः साहित्यकार भाणावत ने बताया कि मामा देव तोरण के रूप में भी प्रसिद्ध हैं. लकड़ी के बने हुए तोरण मामादेव का एक प्रतीक रूप है. उदयपुर आदिवासी क्षेत्र गोगुंदा, ईसवाल क्षेत्र में मामादेव की विशेष मान्यता है. वहीं प्रतीक के रूप में काष्ठ के तोरण की स्थापना और पूजा की जाती है. आदिवासियों और किसानों में इनके प्रति खासा महत्व है. मामादेव का तोरण खंडीय से लेकर आठ खंडीय तक का होता है. उन्होंने बताया कि एक खंड तोरण में एक घुड़सवार अंकन होता है. उस पर सिंदूर चढ़ा दिया जाता है. जबकि आठ खंडीय होने पर हर खंड के दोनों और घोड़ा, ऊपर मयूर मुख की आकृतियां होती हैं. इसी पर ऊपरी सतह में शेर, वीर पुरुष का चित्रण किया होता है. वहीं इसमें तलवार, भाला व वीर पुरुष सबसे ऊपर होता है. उन्होंने बताया कि यही मामा देव का रूपांकन होता है.

तोरण चिह्न की कहानीःमामादेव के तोरण के चिह्न के बारे में कहा जाता है कि मामादेव अपना विवाह करने गए थे. लेकिन मामादेव का विवाह नहीं हुआ, विवाह से पूर्व उनका निधन हो गया. शादी के दौरान तोरण नहीं मारा, इससे पहले ही इनका निधन हो गया. इसलिए उनकी स्मृति में उनके प्रतीक चिह्न के रूप में तोरण के रूप में स्थापना कर मामादेव की पूजा प्रारंभ हुई.

लोककला मंडल में मामादेव की तोरण रूप में विग्रहः लोककला मंडल के निदेशक लाईक हुसैन ने बताया कि मामादेव के तोरण की ऐसी मान्यता है कि गांव के प्रवेश द्वार पर एक तोरण बनाया जाता है जो कि लकड़ी का होता है. उन्होंने कहा कि इसके पीछे मान्यता है कि गांव में किसी तरह की महामारी ना फैले, पशुओं में किसी तरह की महामारी ना फैले गांव पूरी तरह से संपन्न रहे.

तोरण मामादेव का एक प्रतीक रूप

शेखावाटी में भरता है मेलाःइतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि मामादेव लोक देवता के रूप में प्रसिद्ध हैं. रामनवमी को इनके स्थान सीकर में मेला भरता है. वैसे इन की प्रतिमा काष्ठ की ही होती हैं ,जिन्हें तोरण में स्थान दिया जाता है. मेवाड़ के इतिहास में कुंभलगढ़ दुर्ग में महाराणा कुंभा द्वारा निर्मित मामादेव का मंदिर है, जो कि इस दुर्ग की तलहटी में है. यहां कुंभा नित्य पूजा किया करते थे. यह मंदिर जीण अवस्था में आज भी देखा जा सकता है. यहां पर मामादेव की काष्ठ की प्रतिमा ना होकर पाषाण प्रतिमा है. उन्होंने बताया कि बरसात के प्रमुख देवता के रूप में इन्हें पूजा जाता है.

Last Updated :Sep 22, 2022, 10:30 AM IST

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