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कोरोना कालचक्र: 'फर्ज के आगे रिश्तों की फिक्र गुम, जब अपनों की याद आती है तो Video Call कर लेते हैं...'

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Published : Apr 28, 2020, 12:35 PM IST

कोरोना वैश्विक महामारी से हर कोई डरा हुआ है. चिकित्सक, सफाईकर्मी और पुलिस हमारे लिए योद्धा की तरह मैदान में डटे हैं. इस लड़ाई में जहां चिकित्‍सक अपनी जान पर खेलकर कोरोना को मात दे रहे. वहीं महिलाएं भी कुछ पीछे नहीं हैं. कोई दूध पीते बच्चे तो कोई माता-पिता को छोड़कर अपनी फर्ज को पूरा कर रही हैं. इन्हें देख ऐसा लगता है जैसे फर्ज के आगे रिश्तों की फिक्र गुम गई हो, उनके इस समर्पण को सलाम. आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही कोरोना वॉरियर्स के बारे में.

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घर से दूर वीडियो कॉल ही कनेक्टिविटी का जरिया

जोधपुर.मथुरादास माथुर अस्पताल में वर्तमान में करीब 200 कोरोना पॉजिटिव मरीजों का उपचार चल रहा है. इस उपचार में सैकड़ों नर्सिंग कर्मी भी लगे हुए हैं, जो ड्यूटी का फर्ज निभाने के लिए घर से दूर हैं. ये ड्यूटी के बाद खुद कहीं संक्रमण का शिकार तो नहीं हो गए हैं, इसकी जांच की भी पूरी प्रक्रिया करने के लिए क्वॉरेंटाइन में रह रहे हैं.

घर से दूर वीडियो कॉल ही कनेक्टिविटी का जरिया

मथुरादास माथुर अस्पताल की नर्सिंग कर्मियों को भी एक क्वॉरेंटाइन सेंटर में रखा गया है. जहां वे ड्यूटी पर तो नहीं जा रही हैं, लेकिन घर से फिर भी दूर हैं. इनकी रिपोर्ट आने के बाद इन्हें यहां से निकाला जाएगा. अगर जरूरत हुई और मरीज बढ़ गए तो फिर से डयूटी पर जाना पड़ सकता है. ईटीवी भारत ने घरों से करीब 1 महीने से दूर रह रहे कोरोना वॉरियर्स से मिलकर इनके अनुभवों को जाना.

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यहां रह रही मनीषा राठौड़, कुंती वैष्णव, आशा चौधरी, सुमेश यादव, मंजू गोयल, रोशनी, सुनीता, सुमित्रा जाट, शानू, रेणु पंवार, पूनम सेन और सीमा चौधरी प्रतिदिन वीडियो कॉल से ही परिवार के सम्पर्क में रह रही हैं. उन लोगों ने बताया कि उनके बच्चे परिवार के अन्य सदस्यों के पास हैं. घर की याद भी आती है, लेकिन जब तक क्वॉरेंटाइन पीरियड पूरा नहीं हो जाता, हम घर जाने के बारे में सोच भी नहीं सकते.

कोरोना वार्ड में ड्यूटी करने वाली महिलाएं

वार्ड के अनुभव बताते हुए नर्सिंगकर्मियों ने कहा कि जो भी रोगी वार्ड में आता है. सबसे पहले उसका सवाल होता है कि मेरा परिवार कहां है, उनको कहां रखा गया है? फिर वह अपनी आवश्यकताएं बताते हैं, जो हमें पूरी करनी होती है. इसके साथ खुद को भी संक्रमण से बचाना होता है. फोन पर बच्चे पूछते हैं कि घर क्यों नहीं आ रहे हो तो उनको भी यही बताया कि बीमारी बहुत बड़ी है. इसलिए हम घर नहीं आ सकते. तुम लोग भी घर से बाहर मत निकलो.

सही मायने में अस्पताल की जिम्मेदारी के साथ-साथ फोन पर ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी इन कोरोना योद्धाओं ने उठाई है. जब मरीज स्वस्थ होकर घर लौटता है तो उसे लगता है, जैसे नया जीवन मिल गया. लेकिन उससे ज्यादा हमें खुशी होती है कि हमारी मेहनत सफल हो रही है.

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