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Special: प्रदेश भाजपा में गुटबाजी और खेमेबंदी की कहानी नई नहीं, पहले हुई घटनाएं भी वसुंधरा के इर्दगिर्द ही रही

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Published : Feb 19, 2021, 6:51 PM IST

राजस्थान भाजपा में गुटबाजी और खेमेबंदी की कहानी नई नहीं है. पिछले 15 वर्षों से राजस्थान भाजपा में गुटबाजी और खींचतान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. अब जब फिर प्रदेश भाजपा में गुटबाजी की ये आग भड़कने लगी है तो इस खास रिपोर्ट के जरिए उन पिछली घटनाओं को भी जान लें जो सीधे तौर पर वसुंधरा राजे से जुड़ी थी.

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प्रदेश भाजपा में गुटबाजी की कहानी नई नहीं

जयपुर.प्रदेश भाजपा में एक बार फिर गुटबाजी चरम पर है, लेकिन खास बात यह है कि पिछले 15 वर्षों से राजस्थान भाजपा में गुटबाजी और खींचतान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. पूर्व की घटनाओं का जिक्र करें तो प्रदेश भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ खींचतान सुर्खियों में रही. अब जब फिर प्रदेश भाजपा में गुटबाजी की ये आग भड़कने लगी है तो इस खास रिपोर्ट के जरिए उन पिछली घटनाओं को भी जान लें जो सीधे तौर पर वसुंधरा राजे से जुड़ी थी.

प्रदेश भाजपा में गुटबाजी की कहानी नई नहीं

नेता प्रतिपक्ष पद की लड़ाई में दिल्ली तक विधायकों की हुई थी परेड

साल 2009 की बात करें तो प्रदेश में सत्ता में कांग्रेस काबिज हुई थी. इसके बाद भाजपा में यह चर्चा शुरू हुई कि आखिर नेता प्रतिपक्ष कौन बनेगा. पार्टी की ओर से विधानसभा चुनाव में हुई हार के चलते वरिष्ठ पदों पर तैनात नेताओं से इस्तीफे मांग लिए गए थे. फिर चाहे प्रदेश संगठन महामंत्री हो या अन्य पद पर आसीन नेता, लेकिन इस बीच यह तय नहीं हो पा रहा था कि नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाए.

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लेकिन, वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों का खेमा वसुंधरा राजे को नेता प्रतिपक्ष बनाए रखना चाहते थे. इसको लेकर राजे समर्थकों ने पार्टी आलाकमान पर दबाव भी बनाया. आलम यह रहा कि दिल्ली तक वसुंधरा समर्थकों की परेड तक करवा दी गई. विपक्ष के उपनेता के रूप में घनश्याम तिवाड़ी ने ही सदन के अंदर पार्टी की भागदौड़ संभाले रखी. तब प्रदेश भाजपा की गुटबाजी वसुंधरा राजे समर्थकों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही और यह पूरा घटनाक्रम मीडिया में सुर्खियों में भी बना रहा.

कटारिया की मेवाड़ यात्रा के विरोध में इस्तीफे तक की दे दी थी धमकी

नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया से भी कुछ साल पहले तक वसुंधरा राजे के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे. दोनों के बीच अच्छे राजनीतिक संबंध थे, लेकिन हम बात कर रहे हैं साल 2012 की शुरुआत की जब तत्कालिक प्रदेश भाजपा कोर कमेटी के भीतर जब गुलाबचंद कटारिया की ओर से मेवाड़ क्षेत्र में राजनीतिक यात्रा निकाले जाने की चर्चा हुई.

पार्टी के नेता चाहते थे कटारिया की यात्रा निकले, लेकिन वसुंधरा राजे इससे सहमत नहीं थी और अपनी असहमति कोर कमेटी की बैठक में भी उन्होंने जता दी. साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से इस्तीफा तक की चेतावनी दे डाली. हालांकि, वसुंधरा राजे की नाराजगी को देखते हुए गुलाबचंद कटारिया अपनी यात्रा नहीं निकाल पाए. तब भी पार्टी के भीतर की ये खेमेबाजी जग जाहिर हुई थी.

भाजपा प्रदेशाध्यक्ष पद पर अपनी पसंद को तरजीह दिलवाने के लिए भी हुई थी खींचतान

साल 2018 अप्रैल महीने में प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के इस्तीफे के बाद इस पद पर कौन बैठेगा, इसको लेकर भी प्रदेश भाजपा में काफी कशमकश हुआ. सूत्र बताते हैं कि पार्टी आलाकमान खाली हुए इस पद पर जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को बैठाना चाहते थे, लेकिन राजे और उनके समर्थक इसके लिए राजी नहीं थे.

हालांकि, इस बारे में वसुंधरा राजे ने कभी खुलकर कोई बयान नहीं दिया, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के दौरान राजे समर्थक नेताओं की दिल्ली में कई बार परेड हुई. करीब ढाई महीने तक यह गतिरोध चलता रहा और फिर बीच का रास्ता निकालते हुए मदन लाल सैनी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई. मदन लाल सैनी के नाम पर वसुंधरा राजे की भी सहमति थी. तब भी इस पूरे घटनाक्रम को लेकर प्रदेश भाजपा की गुटबाजी जग जाहिर हो गई और पार्टी की फजीहत भी हुई.

पुरानी घटनाओं और अब में है ये असमानता

पुराने घटनाक्रमों में कहीं ना कहीं राजे अपनी असहमति को लेकर सामने आती रही, लेकिन अब जो घटनाक्रम प्रदेश भाजपा में चल रहा है उसमें वसुंधरा राजे का नाम तो आ रहा है लेकिन इस पूरे घटनाक्रम है वह कभी खुद खुलकर सामने नहीं आई. मतलब वसुंधरा राजे समर्थक यह मांग कर रहे हैं कि यह सर्वमान्य नेता हैं और उन्हें अगले मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट भी किया जाए.

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हालांकि, विधानसभा चुनाव होने में ढाई साल से अधिक का समय शेष है, लेकिन जिस तरह राजे समर्थक इस प्रकार के बयानबाजी कर रहे हैं उससे नुकसान पार्टी को ही है और खुद राजे को भी. यह भी संभव है कि जो घटनाक्रम चल रहा है इसके पीछे वसुंधरा राजे की रजामंदी ना हो, लेकिन यदि ऐसा भी है तो राजे को सार्वजनिक रूप से उनके नाम पर बयानबाजी कर रहे समर्थकों को रोकना चाहिए या फिर अपनी स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए. जिससे कि उनके नाम पर चल रही सियासत का पटाक्षेप हो सके, लेकिन फिलहाल अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ.

दिल्ली में ही हो सकता पटाक्षेप

जिस प्रकार के घटनाक्रम प्रदेश भाजपा में चल रहा है, उसमें वसुंधरा राजे पूरी पिक्चर से बाहर है. हालांकि, उनके समर्थकों की ओर से उनके नाम पर किए जा रहे बयान से प्रदेश की राजनीति में गुटबाजी साफ तौर पर दिख रहा है. ऐसे में यह माना जा रहा है कि 21 फरवरी को दिल्ली में पार्टी आलाकमान की मौजूदगी में होने वाली पदाधिकारियों की बैठक में इसका पटाक्षेप हो जाए. इस बैठक में राष्ट्रीय पदाधिकारी के तौर पर वसुंधरा राजे भी मौजूद रहेगी. साथ ही प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और प्रदेश संगठन मंत्री चंद्रशेखर भी मौजूद रहेंगे.

इन नेताओं से रही राजे की खींचतान

राजस्थान की राजनीति पिछले दो दशक से वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द घूमती रही है. हालांकि, शुरुआती तौर पर वसुंधरा का सियासी कद राजस्थान में इतना बड़ा नहीं था जितना पार्टी से जुड़े अन्य वरिष्ठ नेताओं का था. फिर चाहे बात की जाए ललित किशोर चतुर्वेदी की या पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह.

पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का लोकसभा से जुड़ा टिकट ना मिल पाना सबको पता है कि उसके पीछे एक बड़ी वजह वसुंधरा राजे भी रही और पर्दे के पीछे यह बगावत सुलगती रही. वहीं, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ललित किशोर चतुर्वेदी से भी राजे के संबंध बहुत मधुर नहीं माने जा सकते थे. इनके बीच में पर्दे के पीछे खींचतान से जुड़ी कई घटनाएं आज भी भाजपा नेता व कार्यकर्ताओं के जहन में ताजा है. इसके बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी से वसुंधरा की अदावत जगजाहिर है जो आज तक जारी है.

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