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पिक्चर अभी बाकी है! आर्थिक आरक्षण और एट्रोसिटी के खिलाफ Karni Sena कर रही आंदोलन की तैयारी

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Published : Jan 12, 2023, 10:14 PM IST

करणी सेना ने 4 दिन के आंदोलन में भोपाल में जो माहौल बना दिया था उसके बाद BJP के लिए इतनी राहत है कि, 18 सूत्रीय मांगे मान लिए जाने के आश्वासन के साथ सड़क और मैदान खाली हो गए है. (Karni Sena Andolan) इसके ये मायने कतई नहीं है कि, चुनावी साल में करणी सेना आगे अपना जौहर नहीं दिखाएगी. देखिए खास रिपोर्ट...

Bhopal karni sena andolan
भोपाल करणी सेना आंदोलन

भोपाल। पद्मावती फिल्म के विरोध में दीपिका पादुकोण की नाक काट देने की चेतावनी के साथ सुर्खियों में आई कर्णी सेना ने पांच साल में शक्ल और तेवर बदल लिए हैं. ये भोपाल में चार दिन बीजेपी सरकार के लिए आफत बने आंदोलन ने बता दिया, लेकिन 21 सूत्रीय मांगों में से 18 के मांग लिए जाने के बाद भी चुनावी साल में खड़े मध्यप्रदेश में बीजेपी के लिए करणी सेना का संकट टला नहीं है. आर्थिक आधार पर आरक्षण और एट्रोसिटी एक्ट की खिलाफत पर अड़ी करणी सेना 2 महीने के ब्रेक के बाद इन दो बड़ी मांगों को लेकर फिर एक बार आंदोलन तेज करेगा. इस बार केन्द्र सरकार पर दबाव बनाया जाएगा और सांसदों के इलाके में करणी सेना का आंदोलन जोर पकड़ेगा. यानि अब 2024 का चुनाव के मद्देनजर करणी सेना दम दिखाएगी. तैयारी पूरे देश में जनजागरण यात्राएं निकालने की भी है.

भोपाल करणी सेना आंदोलन

आंदोलन टला है खत्म नहीं: भोपाल में 4 दिन तक सरकार की नाक में दम करने के बाद करणी सेना का आंदोलन इस आश्वासन के साथ खत्म हुआ है कि 18 सूत्रीय मागों पर सरकार कमेटी बनाकर अमल करवाएगी. लेकिन ये आंदोलन के खात्मे का पूर्णविराम नहीं ब्रेक है. करणी सेना के प्रमुख जीवन सिंह शेरपुर ने भी बाकायदा अल्टीमेटम देकर आंदोलन खत्म किया है. शेरपुर ने अल्टीमेटम दिया है कि 2 महीने का समय सरकार को दिया जाएगा. अगर 2 महीने में मांगे पूरी नहीं हुई तो करणी सेना इसी तेवर के साथ फिर मध्यप्रेदश की सड़कों पर आंदोलन करते उतारु हो जाएगी. दूसरी अहम बात कि करणी सेना का असल संघर्ष एट्रोसिटी एक्ट और आर्थिक आधार पर आरक्षण को लेकर है. उसकी वजह भी है. करणी सेना का आंदोलन इन दो मांगों को उठाने के साथ सवर्ण समाज का आंदोलन बना है. इसी वजह से सवर्ण समाज ने भी करणी सेना को समर्थन दिया है.

भोपाल करणी सेना आंदोलन

अब सांसदों के इलाके में सेना दिखाएगी दम:करणी सेना के तेवर ब्रेक के बाद फिर दिखाई देंगे. इस बार प्रदेश के सांसदों के इलाके में. इस मांग के साथ कि वो अपनी पार्टी के साथ संसद में एट्रोसिटी के साथ आर्थिक आरक्षण को लेकर माहौल बनाएं. करणी सेना के कृष्णा बुंदेला बताते हैं ऐसा बिल्कुल नहीं है कि आंदोलन खत्म हो गया. आश्वासन के बाद ये ब्रेक है. 18 मांगे प्रदेश सरकार ने मांनी हैं और कहा है कि मंत्रियों की कमेटी बनाकर इस पर अमल होगा. हमे अधिकारियों ने बताया कि दो महीने का समय इन्हे अमल में लाने में लगेगा. इसलिए करणी सेना ने भी दो महीने का अल्टीमेटम दिया है. अगर दो महीने बाद सरकार हमारी मांगो को अमल में नहीं लाती तो फिर करणीसेना सड़कों पर उतरेगी और ये तो तय मानिए कि दूसरे चरण में अब केन्द्र सरकार से मागे गनवाने हम मैदान में उतरेंगे इस बार प्रदेश भर के सांसदों के जरिए मांगे मनवाने आंदोलन छेड़ा जाएगा.

जनजागरण यात्रा निकालेगी करणी सेना:करणी सेना के कृष्णा बुंदेला बताते हैं कि, करणी सेना समाज की आवाज़ बुंलंद कर रही है. एक तरीके से सवर्ण समाज की आवाज़ है. तो सेना का आंदोलन अलग अलग चरणों में जारी रहेगा. हमारे साथ एससी एसटी वर्ग के लोग भी हैं. भोपाल के आंदोलन में शामिल होने तीन तीन सौ किलोमीटर से पैदल चलकर आए थे. अभी दो महीने तक हम सरकार कारुख मध्यप्रदेश में देख रहे हैं. नहीं तो चुनावी साल में एमपी में फिऱ आंदोलन होना है. दूसरी तरफ 2024 में पूरे देश में जनजागरुकता यात्राएं निकाली जाएगी.

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2018 के चुनाव में दिखाए थे तेवर:2017 में पद्मावती फिल्म के विरोध के साथ पहली बार करणी सेना लोगों के जुबान पर चढ़ी थी. फिल्म का विरोध था लेकिन प्रदर्शन में जो भीड़ जुट रही थी वो सेना की ताकत बताने काफी थी. खास तौर पर मालवा निमाड़ में इस आंदोलन का बड़ा असर रहा था. फिर माई का लाल के नारे ने तो इतना असर दिखाएगा कि सवर्मो की सियासत में ग्वालियर चंबल से तो बीजेपी का सफाया ही हो गया. राजनीतिक जानकारों ने ये माना कि माई का लाल नारे के साथ सवर्ण समाज के आंदोलन की इसमें भूमिका रही थी इस बार भी करणी सेना का मालवा निमाड़ ग्वालियर चंबल की विधानसभा सीटों पर असर देखा जा रहा है. असल में राजपूत समाज के गौरवशाली इतिहास की हुंकार बनकर उठी करणी सेना से यूथ इसीलिए कनेक्ट हो रहा है कि जड़ों के साथ जुड़ा ये संगठन उसके हक की बात करते खड़ा है जिस पर कभी राजनीतिक दलों ने कान नहीं दिया. राजधानी भोपाल में ही चार दिन के आंदोलन में जुटी नौजवानों की तादात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि करणी सेना का आधार मजबूत है.

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