मध्य प्रदेश

madhya pradesh

पोला उत्सव पर आकर्षक साज-सज्जा में दिखे बैल, की गई पूजा-अर्चना

By

Published : Aug 19, 2020, 7:47 PM IST

बड़वानी जिले में सादगीपूर्ण तरीके से पोला उत्सव मनाया गया, जहां पशुओं को नहलाने के बाद आकर्षक श्रृंगार कर पूजा-अर्चना की गई.

Pola festival celebrated
पोला उत्सव का आयोजन

बड़वानी। महाराष्ट्र की सीमा से लगे खेतिया क्षेत्र में शांतिपूर्ण ढंग से पोला उत्सव मनाया गया, जिसमें किसान अपने खेत में पशुओं की पूजा किए, जिन्हें सुबह नहलाकर आकर्षक श्रृंगार किया गया. वहीं पूजा कर ढोल-बाजों के साथ शहर भ्रमण भी कराया गया. इन पशुओं को हनुमान मंदिर के पास ले जाकर दर्शन करवाया गया. मान्यता है कि जो मूक रहकर खेती में अपना सहयोग करते हैं, उनका पूजन होना चाहिए. अमावस्या को खानदेश का ये प्राचीनतम सांस्कृतिक पर्व उल्लास के साथ मनाया गया, जहां शासन के निर्देशों को ध्यान में रखा गया. परंपरागत रूप से पूजन कर पशुओं को चारा खिलाया गया.

पोला-पिठोरा मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है. भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को ये पर्व विशेषकर महाराष्ट्र, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है. माना जाता है कि अगस्त माह में खेती-किसान‍ी का काम समाप्त होने के बाद अन्नमाता गर्भ धारण करती हैं. यानी धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है, इसीलिए ये त्योहार मनाया जाता है. ये त्योहार पुरुषों, स्त्रियों सहित बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है. इस अवसर पर पुरुष पशुधन (बैलों) को सजाकर उनकी पूजा करते हैं. स्त्रियां अपने मायके जाती हैं, जबकि छोटे बच्चे मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं.

पिठोरी अमावस्या पर पोला पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए चौसठ योगिनी और पशुधन का पूजन किया जाता है. जहां इस अवसर पर घरों में बैलों की पूजा होती है, वहीं लोग पकवानों का लुत्फ भी उठाते हैं. साथ ही इस दिन 'बैल सजाओ प्रतियोगिता' का आयोजन भी किया जाता है. इस पर्व की धूम शहर से लेकर गांव तक रहती है. जगह-जगह बैलों की पूजा-अर्चना होती है. किसान सुबह से ही बैलों को नहला-धुलाकर सजाते हैं. फिर हर घर में उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. इसके बाद घरों में बने पकवान खिलाया जाता है. इस अवसर पर बैल दौड़ और बैल सौंदर्य प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है, मगर कोरोना काल की वजह से ये पर्व सीमित रूप से मनाया गया. इसमें अधिक से अधिक किसान अपने बैलों के साथ भाग लेते हैं. खास सजी-संवरी बैलों की जोड़ी को पुरस्कृत भी किया जाता है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details