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वजूद खो रहा बुंदेलखंड का पान! देश भर में मशहूर 'बंगला' पान की पड़ोसी मुल्कों में भी है मांग

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Published : Jun 24, 2022, 4:06 PM IST

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड का पान अपना वजूद खोता जा रहा है. देश भर में ही नहीं मशहूर 'बंगला' पान डिमांड पड़ोसी मुल्कों में भी है. लेकिन पान का उत्पादन करने वाले किसान बदहाली की कगार पर पहुंच रहे हैं. फसल उगाने के लिए पान उत्पादक किसानों को सरकार से कोई सहायता या सब्सिडी नहीं मिलती है और ना ही पान फसल बीमा का प्रावधान है.

bundelkhand paan bungalow
बुंदेलखंड का पान बंगला

सागर। बुंदेलखंड में पान की खेती का चलन काफी पुराना है. यहां का देशी बंगला पान सिर्फ बुंदेलखंड में ही नहीं, पूरे मध्यप्रदेश और देश भर में अपने स्वाद के लिए मशहूर है. इतना ही नहीं, पड़ोसी मुल्कों में भी बुंदेलखंड के बंगला पान का निर्यात होता है. लेकिन धीरे-धीरे पान की खेती दम तोड़ रही है और पान का उत्पादन करने वाले किसान बदहाली की कगार पर पहुंच रहे हैं. हालात ये है कि, फसल उगाने के लिए पान उत्पादक किसानों को सरकार से कोई सहायता या सब्सिडी नहीं मिलती है और ना ही पान फसल बीमा का प्रावधान है. फसल का नुकसान होने पर लागत के अनुसार मुआवजा मिलता है. वहीं दूसरी तरफ गुटखा पाउच बाजार में आने के कारण पान का चलन तेजी से घट रहा है. किसान चाहते हैं कि पान की खेती को उद्यान की फसलों के दायरे में लाया जाए, ताकि उनको फसल उत्पादन के लिए सब्सिडी और बीमा का प्रावधान हो और फसल के नुकसान पर उचित मुआवजा मिल सके.

वजूद खो रहा बुंदेलखंड का पान

बुंदेलखंड में कहां-कहां होती है पान की खेती: मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में सागर और छतरपुर जिले में बड़े पैमाने पर पान की खेती होती है. सागर के बलेह, छपरा, सहजपुर और देवरी में पान की खेती होती है. वहीं छतरपुर के महाराजपुर, गढ़ीमलहरा, लवकुश नगर, बारीगढ़, दिदवारा, पिपट और पनागर में भी पान की खेती होती है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के महोबा में भी पान की खेती होती है. कहा जाता है कि 1707 में जब महाराजा छत्रसाल ने बुंदेलखंड पर राज किया, तो यहां के लोगों को रोजगार का साधन जुटाने के लिए पान की खेती शुरू कराई गई थी. इसके अलावा बुंदेलखंड के दमोह, पन्ना और टीकमगढ़ में कुछ गांवों में भी पान की खेती का चलन है. बुंदेलखंड में करीब 25 हजार एकड़ में पान की खेती होती है, जिसमें करीब 20 हजार किसान पान की खेती करते हैं.

बुंदेलखंड से पाकिस्तान तक पहुंचा देशी बंगला पान: 17वीं शताब्दी में जब बुंदेलखंड में महाराज छत्रसाल का राज था, तब उन्होंने पान की खेती शुरू करवाई थी. साथ ही साथ उन्होंने किसानों को बढ़ावा देने के लिए खेती को पर्याप्त संरक्षण दिया था. खेती के लिए बीज से लेकर खेती में काम आने वाली सभी व्यवस्थाएं रियासत काल में राजा की मदद से होती थी. इसका परिणाम ये हुआ कि बुंदेलखंड का पान सिर्फ बुंदेलखंड में मशहूर ना होकर देश भर में मशहूर हुआ. यहां का बंगला पान भारत देश की सरहदों को पार कर मुस्लिम देशों तक पहुंच गया. पाकिस्तान, बांग्लादेश और दूसरे कई मुस्लिम देश बड़े पैमाने पर देशी बंगला पान का आयात करते हैं.

पान किसानों को सरकार से कोई सहायता या सब्सिडी नहीं

काफी महंगी होती है पान की खेती: मौजूदा हालातों पर गौर करें, तो पान की खेती काफी महंगी भी होती है. एक एकड़ में पान की खेती करने के लिए किसान को करीब एक लाख रूपए की लागत आती है. पान की खेती के लिए पान के बीज की व्यवस्था के अलावा सागौन की लकड़ी, चारा और सनोरा की जरूरत होती है. इसके बाद कीटनाशक और लगातार पानी की व्यवस्था भी करनी होती है, जो काफी महंगा सौदा होता है. लगातार बढ़ती महंगाई और सरकार की तरफ से किसी तरह की सब्सिडी ना होने के कारण किसानों को पान की खेती काफी महंगी पड़ने लगी है.

ग्लोबल वार्मिंग का भी असर: दरअसल बुंदेलखंड इलाका समशीतोष्ण जलवायु के लिए जाना जाता है. यह जलवायु पान की खेती के लिए काफी मुफीद होती है. लेकिन लगातार वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है और इसका असर बुंदेलखंड के मौसम पर भी हुआ है. बुंदेलखंड के मौसम में गर्मी बढ़ने के कारण पान की खेती कमजोर पड़ रही है.

पान उत्पादन करने वाले किसान बदहाली की कगार पर

ना सब्सिडी, ना बीमा का प्रावधान: खास बात ये है कि, पान की खेती को लेकर सरकार गंभीर नहीं है. सरकार द्वारा आज तक ये तय नहीं किया गया है कि, पान की खेती को सामान्य खेती में रखा जाए या उद्यानिकी खेती में रखा जाए. मौजूदा शिवराज सरकार पहले कई बार वादा कर चुकी है कि पान की खेती को उद्यानिकी खेती में रखेंगे. लेकिन अभी तक इस पर फैसला नहीं किया गया है. पान की खेती किसी भी तरह की खेती में शामिल ना होने के कारण ना तो किसानों को बीज, कीटनाशक खरीदने में सब्सिडी मिलती है और ना ही फसल का बीमा होता है. जिस कारण फसल बर्बाद होने पर ना के बराबर मुआवजा मिलता है. जिस एक एकड़ फसल की लागत एक लाख के करीब होती है, उस पर महज 5 हजार मुआवजा बड़ी मुश्किल से मिलता है.

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क्या चाहते है पान किसान: पान उत्पादक किसान पान की खेती को उद्यानिकी फसलों में शामिल करना चाहते हैं. क्योंकि पान की खेती को ना तो सामान्य खेती में शामिल किया गया है और ना ही उद्यानिकी में शामिल किया गया है। ऐसी स्थिति में इन किसानों को भारी लागत वाली फसल में नुकसान होने पर ना के बराबर मुआवजा मिलता है. उत्पादक किसान चाहते हैं कि, अगर पान की खेती उद्यानिकी खेती में शामिल हो जाएगी, तो उन्हें नुकसान से उभरने में काफी मदद मिलेगी.

क्या कहना है उद्यानिकी विभाग का: उद्यानिकी विभाग के तकनीकी अधिकारी पीडी चौबे बताते हैं कि, पान की खेती को उद्यानिकी फसल में शामिल करने का प्रस्ताव शासन के पास लंबित है. फिलहाल हम किसानों को सिर्फ 35% तक सब्सिडी दे पाते हैं. पान की फसल के लिए 500 वर्ग मीटर की लागत उद्यानिकी विभाग के अनुसार 74 हजार रूपए तय की गई है. इस लागत की 35% सब्सिडी किसानों को दी जाती है. जो करीब 20 से 25 हजार के बीच होती है. इसके अलावा किसानों को फसल का नुकसान होने पर कोई मुआवजे की व्यवस्था नहीं है. शासन द्वारा पान की खेती को लेकर जानकारी मांगी गई थी, जो भेज दी गई है.

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