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कोरोना ने मौत के सफर को बनाया मुश्किल, आखिरी वक्त में अपनों की अर्थी को कांधा तक नहीं दे रहे अपने

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Published : Jun 2, 2020, 11:35 AM IST

कोरोना का खौफ इतना बढ़ गया है कि अपने ही अपनों से दूर हो रहे हैं. कोरोना से मृत वय्क्ति के परिजन ही उसका अंतिम संस्कार करने से बच रहे हैं. आलम यह है कि बेटा अपने मां-बाप की अर्थी को कांधा तक नहीं दे रहा, तो शमशान घाट में अंतिम संस्कार के बाद मृतक की अस्थि संचय करने भी उसके अपने नहीं पहुंच रहे हैं.

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इंदौर न्यूज

इंदौर। कहते हैं अपने माता-पिता के अंतिम संस्कार से बड़ा फर्ज बच्चों के लिए कुछ नहीं होता. लेकिन कोरोना काल के खौफ ने माता-पिता के शव की अंत्येष्टि और अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी पर भी संक्रमण की लक्ष्मण रेखा खींच दी. जहां अपने ही अपनों को खोने का दर्द, आंसू और मृत व्यक्ति से जुड़ी यादें सब कुछ भुलाकर उन्हें एक नजर देखने से भी बच रहे हैं.

कोरोना काल में अपनों ने बनाई दूरी

अपनों को छूने से भी बच रहे अपने

बेटा मां-बाप की अर्थी को कांधा नहीं दे रहा, तो अपनों की अस्थि संचय करने भी उनके परिजन शमशान घाट नहीं पहुंच रहें. देश के कोरोना हॉटस्पॉट इंदौर शहर में ही अब तक 60 से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए. जहां कोरोना संक्रमण से मृतक के परिजनों और सगे संबंधियों ने उसकी अंत्येष्टि के दौरान अर्थी को कांधा देने से तक मना कर दिया. जिसके बाद शमशान घाट के कर्मचारियों ने ही इन मृतकों का अंतिम संस्कार किया. यहां कई लोग ऐसे भी आए जिन्होंने अपने माता पिता के अंतिम संस्कार के लिए दिहाड़ी मजदूरों को चुना. मजदूरों की मदद से ही किसी तरह बॉडी मुक्तिधाम तक लाए. शमशान घाट के कर्मचारी ने बताया कि ऐसा पहली बार हो रहा है, कि अपने ही अपनों का अंतिम संस्कार तक नहीं कर रहे.

इंदौर के रामबाग स्थित मुक्तिधाम में पिछले दो महीनों से हर दिन कोरोना से मृत लोगों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. यहां श्मशान घाट में काम करने वाले कर्मचारी बताते है कि जब लोग अपनों का अंतिम संस्कार नहीं करते तो वह खुद ही उनकी अंतयेष्टी करते हैं. उन्होंने बताया कि श्मशान में सामान्य मृत्यु वाले शवों को शव यात्रा और एंबुलेंस के जरिए लाया जाता है. लेकिन यदि कोई शव कोरोना संक्रमित है तो एंबुलेंस वाले भी संक्रमित शवों को एंबुलेंस में नहीं लाते. लिहाजा इंदौर के कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए निर्धारित रेड श्रेणी के एमआर टीवी हॉस्पिटल, चोइथराम अस्पताल, अरविंदो अस्पताल और इंडेक्स अस्पताल से शवों को किसी तरह लोडिंग रिक्शा में लाया जाता है.

बेटे ने नहीं दिया मां की अर्थी को कांधा

यहां इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में एक मौका ऐसा आया जब कोरोना संक्रमित मां के शव को उसके बेटे दूर से देखते रहे. लेकिन जब घर से किसी ने बताया कि मां ने चांदी की पायल पहन रखी हैं तो बेटा दौड़ते हुए शव के पास आया और मां की पायल निकाल ली और फिर उससे दूर चला गया. इसी तरह एक अन्य महिला की मौत की जानकारी जब उसकी बेटियों को दी गई तो बेटियां बूढी मां को आखिरी बार देखने तक नहीं पहुंची.

अस्थि संचय के लिए भी नहीं आते लोग

शवदाह ग्रह में अंत्येष्टि के बाद लोग संक्रमण के डर से अस्थि संचय के लिए भी नहीं आते. ऐसी स्थिति में नगर निगम के कर्मचारी ही अस्थि संचय करके मृतक की अस्थियां सुरक्षित रखते हैं. यहां कई मृतकों की अस्थियां लावारिस होने की स्थिति में भी सुरक्षित मौजूद हैं इन अस्थियों को भी अपनों के हाथों तर्पण का लॉकडाउन के बीते 2 माह से इंतजार है.

संक्रमित शवों से मुक्तिधाम में भी फैला कोरोना

इंदौर के रामबाग मुक्तिधाम में नगर निगम के स्वास्थ्य कर्मी जगदीश करोसिया 50 से ज्यादा संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं. इस दौरान शवों के बार-बार संपर्क में आने के कारण वे भी कोरोना संक्रमित हो गए. जिन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है. जबकि उनके पूरे परिवार को भी क्वारेनटाइन किया गया. ऐसे वक्त में तो यही कहा जा सकता है कि कोरोना महामारी ने मौत के बाद के सफर को भी मुश्किल बना दिया है. जहां मौत के बाद भी यह वायरस लोगों का पीछा नहीं छोड़ा है और उसके अपने ही आखिरी वक्त में उसके साथ क खड़े नहीं हो रहे.

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