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क्यों चर्चा में रायसेन का किला, जानिए इतिहास, आखिर क्यों कैद में है सोमेश्वर महादेव शिवलिंग

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Published : Apr 7, 2022, 6:21 PM IST

पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के आगामी 11 अप्रैल को रायसेन दुर्ग पहुंचकर भगवान शिव का अभिषेक करने का प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ने स्वागत किया है. ईटीवी भारत से बात करते उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को अपना वरिष्ठ नेता बताया और जल अभिषेक करने रायसेन आने पर उनका स्वागत किया है.

raisen someshwar shivling
11 अप्रैल को रायसेन जाएंगी उमा भारती

रायसेन.आजादी के बाद से ही रायसेन दुर्ग में बने शिव मंदिर में कैद भगवान शिव को आजाद कराने की मांग की जा रही है. अब इस मुद्दे ने सियासी रूप ले लिया है. बीजेपी नेता उमा भारती यहां 11 अप्रैल को शिवलिंग का अभिषेक करने आ रही हैं. वहीं यह भी माना जा रहा है कि सीएम शिवराज भी सांची जाते समय यहां पूजा अर्चना करने जा सकते हैं. रायसेन में शिव महापुराण की कथा कर रहे कथा वाचक सीहोर वाले पंडित प्रदीप मिश्रा ने भी कथा के दौरान शिवराज सरकार और रायसेन के लोगों पर तंज कसते हुए कहा था कि आप के गले से खाना कैसे उतर जाता है वो भी यह जानते हुए कि आपके घऱ में राज्य में महादेव कैद में हैं. आइए जानते हैं मंदिर का इतिहास आखिर क्यों कैद में हैं शिवलिंग

11 अप्रैल को रायसेन जाएंगी उमा भारती

प्रभुराम चौधरी ने किया स्वागत:पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के आगामी 11 अप्रैल को रायसेन दुर्ग पहुंचकर भगवान शिव का अभिषेक करने का प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ने स्वागत किया है. ईटीवी भारत से बात करते उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को अपना वरिष्ठ नेता बताया और जल अभिषेक करने रायसेन आने पर उनका स्वागत किया है. 11 तारीख को ही रायसेन जिले की गैरतगंज तहसील में कबूला पुल का लोकार्पण करने के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान भी पहुंचेंगे. माना जा रहा है कि शिवराज भी पूजा अर्चना करने के लिए मंदिर जा सकते हैं. उधर दो बड़े नेताओं की शहर में मौजूदगी और शिवमंदिर खोले जाने की प्रदीप मिश्रा और स्थानीय लोगों की मांग को देखते हुए यह चर्चाएं हैं कि जल्द ही सोमेश्वर धाम के ताले खुल जाएंगे और लंबे समय से मंदिर में कैद भगवान शिव को आजादी मिल जााएगी.

11 अप्रैल को रायसेन जाएंगी उमा भारती
क्यों बंद किया गया था शिव मंदिर: 1543 तक यह स्थान मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित रहा. इसके बाद रायसेन के राजा पूरणमल को शेरशाह ने हरा दिया. उसके शासनकाल में यहां से शिवलिंग हटाकर मस्जिद बना दी गई, लेकिन गर्भगृह के ऊपर गणेश जी की मूर्ति सहित अन्य चिन्ह स्थापित रहे. इससे यह स्पष्ट होता है कि यह मंदिर ही है. आजादी के बाद से सन् 1974 तक मंदिर पर ताले लगे रहे. फिर उस दौरान एक बड़ा आंदोलन हुआ जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री और दिवंगत कांग्रेस नेता प्रकाशचंद सेठी ने खुद मंदिर के ताले खुलवाए थे. उस दौरान केके अग्रवाल यहां के कलेक्टर थे. आंदोलन के बाद से मंदिर के पट साल में एक बार महाशिवरात्रि पर 12 घंटे के लिए खोले जाते हैं. इस दिन यहां मेले का आयोजन भी होता है.
11 अप्रैल को रायसेन जाएंगी उमा भारती
11 अप्रैल को रायसेन जाएंगी उमा भारती

इस डर से नहीं खुलता मंदिर:रायसेन के किले में बना सोमेश्वर धाम मंदिर का निर्माण करीब-करीब 11वीं शताब्दी में हुआ था. परमारकालीन राजा उदयादित्य ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. इस मंदिर में उस वक्त केवल राजघराने की महिलाएं ही पूजा करती थीं. इसमें 2 शिवलिंग हैं. फिलहाल किले और मंदिर की देखरेख पुरात्तव विभाग करता है. मंदिर पर लगे ताले की चाबी भी विभाग के पास ही है. पुरातत्व विभाग को इस बात की चिंता है कि मंदिर बहुत ऊंचाई पर है. इस ऊंचाई पर इसकी देखभाल करना मुश्किल है. इसलिए अगर इस पर ताला नहीं लगाया और किसी ने कोई हरकत कर दी या तोड़फोड़ कर दी, तो सांप्रदायिक तनाव फैल सकता है.

11 अप्रैल को रायसेन जाएंगी उमा भारती

शेरशाह ने भी किया यहां शासन, जानें किले का इतिहास
रायसेन फोर्ट 1100 ईस्वी में बना हुआ प्राचीन किला है. बलुआ पत्थर से बने इस किले के चारों ओर बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारें हैं. किले में नौ दरवाजे और 13 बुर्ज हैं. इस किले का शानदार इतिहास रहा है यहां कई राजाओं ने शासन किया है, जिनमें से एक शेरशाह सूरी भी था. अपनी मजबूती के लिए प्रसिद्ध इस किले को जीतने में उसे पसीने छूट गए थे. तारीखे शेरशाही के मुताबिक, चार महीने की घेराबंदी के बाद भी वो यह किला जीत पाया था. उस समय इस किले पर राजा पूरनमल का शासन था. उन्हें जैसे ही ये पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है तो उन्होंने दुश्मनों से अपनी पत्नी रानी रत्नावली को बचाने के लिए उनका सिर खुद ही काट दिया था. राजा पूरनमल के पास पारस पत्थर होने की कहानी भी बताई जाती है. पारस पत्थर के बारे में माना जाता है कि वह लोहे को सोने में बदल देता है, लेकिन जब राजा राजसेन हार गए तो उन्होंने पारस पत्थर को किले में ही स्थित एक तालाब में फेंक दिया था.

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