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Navratri 2022: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में दूसरे दिन लगाएं ये भोग, जानें देवी का प्रिय रंग, मंत्र और पूजा विधि

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Published : Sep 27, 2022, 6:57 AM IST

Maa Brahmacharini Puja Vidhi
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के (Brahmacharini) ब्रह्मचारिणी एवं तपश्चारिणी रूप को पूजा जाता है. जो साधक मां के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है. (Navratri 2022 2nd Day Maa Brahmacharini Puja Vidhi) (Worship of Brahmacharini) (Navratri 2022) (Navratri 2022 Puja)

भोपाल।शारदीय नवरात्रि शुरू हो चुके हैं और आज नवरात्रि का दूसरा दिन है. नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है- नौ रातें. इन नौ रातों और दस दिन के दौरान शक्ति देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है. दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है. मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरुप देवी ब्रह्मचारिणी का है. यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या हैं. ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली कहा जाता है. वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्व और तप ब्रह्म शब्द के अर्थ हैं. ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य हैं. इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता हैं. (Navratri 2022 2nd Day Maa Brahmacharini Puja Vidhi )

ऐसे खत्म होंगे दुर्गण और दोष: देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना (Worship of Brahmacharini) से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है. जीवन की कठिन समय में भी उसका मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है. देवी अपने साधकों की मलिनता, दुर्गणों और दोषों को खत्म करती है. देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि तथा विजय की प्राप्ति होती है. नवरात्र के दूसरे दिन में मां के (Brahmacharini) ब्रह्मचारिणी एवं तपश्चारिणी रूप को पूजा जाता है. जो साधक मां के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है और जीवन में वे जिस बात का संकल्प कर लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते हैं.

मां ब्रह्मचारिणी प्रिय फूल, ऐसे पूरी होगी मनोकामना: माता ब्रह्मचारिणी की पूजा के दौरान पुष्पों में कमल उन्हें चढ़ाया जाता है तो यह बेहद शुभ माना जाता है. पंडित विष्णु राजोरिया के अनुसार ब्रह्मचारिणी का स्वरूप जिस रूप में है, जिसमें तपस्या और ब्रह्मचर्य का पालन है. ऐसे में जो भी लोग पूजा के दौरान माता ब्रह्मचारिणी को कमल का फूल अर्पित करता है तो इससे उनकी मनोकामना पूरी होती है. देवी को बरगद (वट) वृक्ष का फूल पसंद है, इसका रंग लाला होता है. (Maa Brahmacharini Favourite Flower)

ब्रह्मचारिणी का प्रिय भोग और रंग:पंडित विष्णु राजोरिया के अनुसार माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप दूसरा रूप कहा जाता है. ऐसे में माता को भोग लगाने के लिए सिर्फ एक विशेष वस्तु का उपयोग किया जाए तो आपकी मनोकामना की पूर्ति होती है. माता ब्रह्मचारिणी को मिश्री या शक्कर का भोग अगर लगाया जाता है, तो माता प्रसन्न होती हैं. इसलिए नवरात्र के दूसरे दिन जब माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जा रही हो, तब देवी को शक्कर और पंचामृत का भोग लगाया जाए. देवी को इसका भोग लगाने से दीर्धायु का आशीष मिलता है. नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की लाल रंग शुभ माना गया है. (Maa Brahmacharini Puja Color)

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मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से लाभ: मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से जातक की शक्ति, संयम, त्याग भावना और वैराग्य में बढ़ोत्तरी होती है. संकट में देवी भक्त को संबल देती है. तप के जरिए देवी ने असीम शक्ति प्रप्ता की थी, इसी शक्ति से मां राक्षसों का संहार किया था. माता के आशीर्वाद से भक्त को अद्भुत बल मिलता है जो शत्रु का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है.आत्मविश्वास और स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है. देवी के प्रभाव से जातक का मन भटकता नहीं. मॉ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है. लालसाओं से मुक्ति के लिए मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान लगाना अच्छा होता है. (Maa Brahmacharini Puja benefit)

स्तुति मंत्र:
-या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
-दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू,
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।

मां ब्रह्मचारिणी प्रार्थना मंत्र: (Maa Brahmacharini Prayer Mantra)
- दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू,
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा.

मां ब्रह्मचारिणी कथा:पौराणिक कथा के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए एक हजार साल तक तक फल-फूल खाएं और सौ वर्षों तक जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. ठंड,गर्मी, बरसात हर ऋतु को सहन किया लेकिन देवी अपने तप पर अडिग रही. टूटे हुए बिल्व पत्र का सेवन कर शिव की भक्ति में डूबी रहीं. जब उनकी कठिन तपस्या से भी भोले नाथ प्रसन्न नहीं हुए, तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए. महादेव को पाने के लिए कई हजार सालों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं. मां की कठिन तपस्या देखकर सभी देवता, मुनियों ने उनकी मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया. इस कथा का सार ये है कि अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए कठिन समय में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए तभी सफलता मिलती है.(Maa Brahmacharini Katha)

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