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'अहिंसा की नगरी' में बढ़ता गया 'लाल आतंक' का साया, दशकों बाद बह रही बदलाव की बयार

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Published : Feb 6, 2020, 7:08 PM IST

Updated : Feb 8, 2020, 3:51 PM IST

गिरिडीह का पारसनाथ पर्वत जैन धर्मावलंबी का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ नक्सलियों का गढ़ भी माना जाता है. ये पर्वत जैन धर्म के साथ-साथ आदिवासियों के लिए पूजनीय है, इस पर्वत पर करोड़ों लोगों की आस्था है. लेकिन इस पहाड़ पर लोगों को दो तरह की शिक्षा दी जाती है एक तो यहां धर्म और आस्था का पाठ पढ़ाया जाता है तो दूसरी तरफ यहां नक्सली हिंसा की शिक्षा बांटते हैं.

parasnath mountain, पारसनाथ पर्वत
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गिरिडीह: अहिंसा की नगरी के रूप में विश्व प्रसिद्ध पारसनाथ को नक्सलियों ने हिंसा की भूमि बनाकर रख दिया है. जिस भूमि पर अहिंसा का संदेश फैलानेवाले जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की आज वहीं से नक्सली हिंसा की शिक्षा बांट रहे हैं. हालांकि हाल के कुछ वर्षों में नक्सली गतिविधियों पर काफी हद तक रोक लगी है.

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जैन धर्मावलंबी का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल
गिरिडीह के अति उग्रवाद प्रभावित पीरटांड़ में स्थित है झारखंड-बिहार का सबसे बड़ा पर्वत पारसनाथ है. जो जैन धर्म के साथ-साथ आदिवासियों के लिए पूजनीय है, इस पर्वत पर करोड़ों लोगों की आस्था है. जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थांकरों ने यहां मोक्ष की प्राप्ति की है. ऐसे में जैन धर्मावलंबी इसे सम्मेद शिखर कहते हैं. वहीं आदिवासी समाज इस पर्वत को मरांग बुरु कहकर इसकी पूजा करते हैं. आस्था की यह भूमि नक्सलियों का सेफ जोन माना जाता है. कहा जाता है कि बंगाल के नक्सलबाड़ी से उठे माओवादी आंदोलन की आग झारखंड के पारसनाथ की तराई से (धनबाद के टुंडी और गिरिडीह के पीरटांड़) शुरू हुआ.

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सामंतवाद के खिलाफ शुरू हुआ था आंदोलन
जानकार बताते हैं कि 70 के दशक में दिशोम गुरु शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो और एके राय ने संयुक्त रूप से सामंतवाद के खिलाफ लालखंड आंदोलन शुरू किया था. इस आंदोलन के तहत सामूहिक खेती की गयी, लोगों के बीच शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया गया. कालांतर में शिबू सोरेन दुमका में शिफ्ट कर गए और झारखंड मुक्ति मोर्च नाम की नयी पार्टी बनायी. शिबू तो दुमका शिफ्ट हो गए और नक्सलियों को यहीं से इस क्षेत्र में घुसपैठ का मौका मिला. जिस लालखंड आंदोलन की शुरुआत लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए की गयी थी, उस आंदोलन को नक्सलियों ने हाईजैक कर लिया. उस वक्त नक्सली संगठन एमसीसी के अगुवा कन्हाई चटर्जी ने इस इलाके में नक्सली संगठन का विस्तार करना शुरू किया. आलम यह हो गया कि झारखंड-बिहार के अलावा इन दोनों राज्यों से सटे अन्य राज्यों के नक्सली नेताओं का सबसे सुरक्षित ठिकाना पारसनाथ का जंगलों से भरा इलाका बन गया. इस इलाके में कन्हाई ने नक्सल की एक मजबूत पौध तैयार की. आज भी इसी इलाके के कई लोग नक्सली संगठन के पोलित ब्यूरो के मेंबर हैं जो संगठन कि रूपरेखा तैयार कर रहे हैं.

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पारसनाथ में बचे गिने-चुने नक्सली
पारसनाथ में नक्सलियों ने अपनी पकड़ मजबूत की तो यहां कई बड़ी-बड़ी घटनाएं भी घटी. आलम यह हो गया कि लोग यहां आने से कतराने लगे. हालांकि हालात में अब पहले से बदलाव आया है और नक्सलियों के पांव उखड़ने लगे हैं. नक्सलियों ने अपने पैर मजबूत किए तो पुलिस ने भी इस इलाके की घेराबंदी करनी शुरू कर दी. इलाके में अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई और नक्सलियों को पकड़ा जाने लगा. एसपी सुरेंद्र कुमार झा कहते हैं कि पारसनाथ में अब गिने-चुने नक्सली ही बचे हैं जिनका सफाया जल्द हो जाएगा.

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अहिंसा की नगरी के तौर पर विश्व प्रसिद्ध पारसनाथ को नक्सलियों ने हिंसा की भूमि बनकर रख दिया है जिस भूमि पर अहिंसा का संदेश फैलानेवाले जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की आज वहीं से नक्सली हिंसा की शिक्षा बांट रहे हैं. हालांकि हाल के कुछ वर्षों में नक्सलियों की गतिविधि पर काफी हद तक रोक लगा है

Body:गिरिडीह. गिरिडीह के अति उग्रवाद प्रभावित पीरटांड़ में स्थित है झारखंड-बिहार का सबसे बड़ा पर्वत पारसनाथ. जैन धर्म के साथ-साथ आदिवासियों के लिए पूजनीय इस पर्वत पर करोड़ो लोगों की आस्था है. जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थांकरों ने यहां मोक्ष की प्राप्ति की ऐसे में जैन धर्मावलंबी इसे सम्मेद शिखर कहते हैं. वहीं आदिवासी समाज के लोग इस पर्वत को मरांग बुरु कह इस पर्वत की पूजा करते हैं.
बाइट: मधुबनवासी

आस्था की यह भूमि नक्सलियों सेफ जोन है. कहा जाता है कि नक्सलबाड़ी से उठी माओवादियों का आंदोलन बंगाल के बाद इसी पारसनाथ के तराई से ( धनबाद के टुंडी व गिरिडीह के पीरटांड़ ) शुरू हुआ. जानकार बताते हैं कि 70 के दशक में दिसोम गुरु के नाम से जाने जानेवाले शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो व एके राय ने संयुक्त रूप सामंतवाद के खिलाफ लालखण्ड आंदोलन शुरू किया था. इस आंदोलन के तहत सामूहिक खेती की गयी, लोगों के बीच शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया गया. कालांतर में शिबू सोरेन दुमका में शिफ्ट कर गए और झारखंड मुक्ति मोर्च नाम की नयी पार्टी बनायी. शिबू तो दुमका शिफ्ट हो गए और नक्सलियों को यहीं से इस क्षेत्र में घुसपैठ का मौका मिला. जिस लालखण्ड आंदोलन की शुरुवात लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए की गयी थी उस आंदोलन को नक्सलियो ने हाईजैक कर लिया. उस वक्त नक्सली संगठन एमसीसी के अगुवा कन्हाई चटर्जी ने इस इलाके में नक्सली संगठन का विस्तार करना शुरू किया. आलम यह हो गया कि झारखड-बिहार के अलावा इन दोनों राज्यों से सटे अन्य राज्यों के नक्सली नेताओ का सबसे सुरक्षित ठिकाना पारसनाथ का बीहड़ व जंगलों से भरा इलाका बन गया. इस इलाके में कन्हाई ने नक्सल की एक मजबूत पौध तैयार की. आज भी इसी इलाके के कई लोग नक्सली संगठन के पोलित ब्यूरो के मेम्बर हैं जो संगठन कि रूपरेखा तैयार कर रहे हैं.
बाइट: अमित राजा, वरिष्ठ पत्रकार

पारसनाथ में नक्सली संगठन ने अपनी पकड़ मजबूत की तो यहाँ घटनाएं भी एक के बाद एक घटने लगी. नक्सली किसी को भी मार देते और बदनाम मधुबन-पारसनाथ की भूमि होने लगी. आलम यह हो गया कि लोग यहां आने से कतराने लगे. हालांकि हालात में अब पहले से बदलाव आया है और नक्सली के पांव उखड़ने लगे हैं.
बाइट: एनपी सिंह, मजदूर नेता, इंटक

नक्सलियों ने अपना पैर मजबूत किया तो पुलिस भी इस इलाके की घेराबंदी करना शुरू कर दिया. इलाके में अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गयी और नक्सलियों को पकड़ा जाने लगा. एसपी सुरेन्द्र कुमार झा कहते हैं कि पारसनाथ में अब गिने चुने नक्सली ही बचे हैं जिनका सफाया शीघ्र हो जाएगा.
बाइट: सुरेन्द्र कुमार झा, एसपी गिरिडीह

Conclusion:बहरहाल पुलिस भले ही पारसनाथ के इलाके से नक्सलियों के पूर्णता सफाया का दावा करे लेकिन सच्चाई यह भी है कि सरकार की गलत नीतियों के कारण ही नक्सल जैसी समस्या उत्पन्न होती है. ऐसे में सरकार को खास कर पुलिस को अपने व्यवहार में सरलता लाने की जरूरत है ताकि हिंसा का रास्ता पूरी तरह बंद हो जाये.
बाइट 1: जैन धर्मावलंबी
बाइट 2: अमित राज, वरिष्ठ पत्रकार
बाइट 3: सुरेंद्र कुमार झा, एसपी





Last Updated : Feb 8, 2020, 3:51 PM IST

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