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जब रोपवे में फंसे पिता ने बेटों से कहा- बोतल में यूरिन संभाल कर रखो, जिंदगी बचाने में आएगा काम

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Published : Apr 12, 2022, 5:04 PM IST

Tragic story of a family trapped in Trikoot mountain ropeway accident
Tragic story of a family trapped in Trikoot mountain ropeway accident ()

त्रिकूट पर्वत रोपवे हादसे में फंसे लोगों को बचाने के लिए चलाया जा रहा ऑपरेशन खत्म हो गया है. अब लोगों की जिंदगी बचाने की जद्दोजहद पूरी होने के बाद अब मौत से जूझे लोगों का दर्द बाहर आ रहा है.

देवघर: त्रिकूट पर्वत रोपवे हादसे में फंसे 63 लोगों में 60 लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया है, जबकि तीन लोगों की जिंदगी नहीं बचाई जा सकी. इस बीच हवा में लटके लोगों की जान हलक में अटकी रही. और कई बार उन्हें आसपास 'मौत' और अपने लोगों को खो देने का डर लगा. रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद अब इस तरह के लोगों की दर्दनाक कहानियां सामने आ रहीं हैं. ऐसी ही रोंगटे खड़े करने वाली कहानी है विनय कुमार दास की, जिनका पूरा परिवार ही रोपवे में फंसा था. किस तरह वे कई घंटों तक जिंदगी के लिए मौत से जूझे, यह आपबीती लोगों को खौफजदा करने के लिए काफी है.

ये भी पढ़ें-63 लोगों को बचाने के लिए तीन दिनों तक चला ऑपरेशन, तीन की नहीं बचाई जा सकी जिंदगी

पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के हरिशचंद्रपुर के विनय कुमार दास अपने पूरे परिवार के साथ घर से पिंडदान के लिए गया के लिए निकले थे. रास्ते में उन्होंने सोचा देवघर में त्रिकूट पर्वत रोपवे पर घूम लेते हैं और फिर देवघर में बाबा भोले पर जलार्पण कर अगले दिन गया के लिए निकल जाएंगे. लेकिन ये बात किसी को पता नहीं थी कि इस तरह का हादसा हो जाएगा.

दर्द बयां करते विनय कुमार दास

विनय का पूरा परिवार कई घंटों तक रोपवे पर फंसा रहा. इस दौरान जब बोतल से पानी खत्म हो गया तो उन्होंने अपने बच्चों से कहा कि अपने अपने बोतल में यूरिन संभाल कर रखो, जरूरत के समय जिंदगी बचाने के काम आ सकता है. क्योंकि ये पता नहीं है कि कितने देर में हमलोगों को यहां से निकाला जाएगा. हालांकि यूरिन पीने की नौबत नहीं आई उससे पहले ही सोमवार को पूरे परिवार को रेस्क्यू कर लिया गया. देवघर सदर अस्पताल में प्राथमिक इलाज के बाद पूरा परिवार मालदा के लिए निकल गया. जाते जाते कहा कि अगर मां की इच्छा होगी तो अगले साल पिंडदान करेंगे.

त्रिकूट पर्वत रोपवे हादसे में फंसे लोगों को निकालने के लिए तीन दिनों तक ऑपरेशन चलाया गया. इस दौरान 60 लोग सुरक्षित निकाले गए, जबकि तीन लोगों की जान नहीं बचाई जा सकी. सेना ने दो दिनों में 34 लोगों को रेस्क्यू किया, इस दौरान दो लोगों की मौत हुई, जिसमें एक महिला और एक पुरुष शामिल है. 11 अप्रैल को सुबह से एनडीआरएफ की टीम ने 11 जिंदगियां बचाईं, जिसमें एक छोटी बच्ची भी शामिल थी. इससे पहले हादसे के दिन 10 अप्रैल को रोपवे का मेंटिनेंस करने वाले पन्ना लाल ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से 15 लोगों को बचाया था, जबकि एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.

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