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हाई कोर्ट में सिपाही नियुक्ति नियमावली को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई, सरकार ने कहा- नियमों का नहीं हुआ उल्लंघन

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Published : Mar 25, 2022, 10:20 AM IST

झारखंड हाई कोर्ट में सिपाही नियुक्ति नियमावली-2014 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई. कोर्ट में सरकार की तरफ से जवाब पेश किया गया. सरकार के जवाब पर प्रार्थी के द्वारा प्रतिउत्तर के लिए समय मांगा गया है. कोर्ट ने 20 अप्रैल को सुनवाई की अगली तिथि निर्धारित की है.

रांची: झारखंड हाई कोर्ट में सिपाही नियुक्ति नियमावली-2014 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एस.एन प्रसाद की खंडपीठ में हुई इस सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से जवाब पेश किया गया. जिसमें ये बताया गया कि सिपाही नियुक्ति नियमावली नियम संगत है. सरकार के जवाब पर प्रार्थी ने कोर्ट से प्रतिउत्तर के लिए समय मांगा है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 20 अप्रैल को होगी.

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जवाब पेश करने का कोर्ट ने दिया था आदेश:इससे पहले इसी मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने चयनित उम्मीदवारों को प्रतिवादी बनाते हुए उन्हें नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया था. राज्य सरकार को भी मामले में अपना जवाब पेश करने को कहा था. उसी आदेश के आलोक में राज्य सरकार और चयनित 4190 अभ्यर्थियों की ओर से अदालत में जवाब पेश किया गया. अदालत को बताया गया कि नियुक्ति नियमावली नियम संगत है और नियुक्ति प्रक्रिया नियम के अनुकूल है. इसलिए याचिका का खारिज कर दी जाए. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने सरकार की दलील का विरोध किया और कोर्ट से जवाब के लिए समय की मांग की.

कोर्ट में दायर हुई थी 50 याचिका:इस संबंध में सुनील टुडू सहित 50 याचिकाएं अदालत में दाखिल की गई है. सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि सिपाही नियुक्ति नियमावली 2014 पुलिस मैनुअल के प्रावधानों के विपरीत है. नई नियमावली में लिखित परीक्षा के लिए निर्धारित न्यूनतम क्वालिफाइंग मार्क्स की शर्त भी गलत है. इसलिए नई नियमावली को निरस्त कर देना चाहिए. इस मामले में जेएसएससी के अधिवक्ता संजय पिपरवाल और प्रिंस कुमार सिंह का कहना है कि नई नियमावली के अनुसार ही वर्ष 2015 में सभी जिलों में सिपाही और जैप के जवानों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया था. नियुक्ति की प्रक्रिया वर्ष 2018 में पूरी कर ली गई है. इस पर वादियों की ओर से कहा गया कि पूर्व में हाई कोर्ट की एकलपीठ ने इस मामले के अंतिम फैसले से नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावित होने का आदेश दिया था.

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