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मूर्ति विसर्जन करने का अनोखा तरीका, यहां मंदिर परिसर में ही कृत्रिम जलाशय बनाकर मां दुर्गा को किया जाता है विसर्जित

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Published : Oct 15, 2021, 7:03 PM IST

Updated : Oct 15, 2021, 7:25 PM IST

परंपरा के अनुसार किसी भी मूर्ति को तालाब या नदी में विसर्जित की जाती है. लेकिन हजारीबाग के बंगाली दुर्गा स्थान में मां दुर्गा की मूर्ति को मंदिर परिसर में ही कृत्रिम जलाशय बनाकर विसर्जित की जाती है. बंगाली दुर्गा पूजा समिति का यह प्रयास काफी सराहनीय है.

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मूर्ति विसर्जन

हजारीबाग:नौ दिनों तक मां दुर्गा की विधि-विधान के साथ पूजा करने के बाद 10वें दिन मां दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है. परंपरा है कि किसी तालाब या नदी में मां की मूर्ति विसर्जित की जाती है. लेकिन हजारीबाग के बंगाली दुर्गा स्थान में मूर्ति विसर्जित करने के लिए भक्त मां को कोई तालाब पोखर या नदी में नहीं ले जाते हैं, बल्कि मंडप परिसर में ही कृत्रिम जलाशय बनाकर विसर्जित करते हैं.

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नवरात्री का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि 9 दिनों तक मां इस मृत्यु लोक में आकर निवास करती हैं और दसवें दिन अपने स्थान को प्रस्थान कर जाती हैं. 9 दिनों तक मां की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है. वहीं कई लोग अपने घरों में भी कलश स्थापना कर पूजा करते हैं. दसवां दिन मां को विदाई दी जाती है. ऐसे तो मां को विदाई देने के लिए मूर्ति का विसर्जन किसी तालाब, नदी या पोखर में किया जाता है. लेकिन हजारीबाग के बंगाली दुर्गा स्थान में कृत्रिम जलाशय परिसर में ही मां को विदाई दी जाती है. पूजा समिति के सदस्यों का कहना है कि हमलोग बहुत ही नियम से पूजा करते हैं. तालाब या नदी गंदा रहता है, इस कारण हमलोग मंदिर परिसर में ही शुद्ध जल में मां को विदाई देते हैं. यह एक नई परंपरा शुरू की गई है.

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पूजा समिति का प्रयास सराहनीय


वहीं कुछ लोगों का कहना है कि जल प्रदूषण ना हो इसे देखते हुए भी समिति ने बैठक कर यह फैसला लिया कि मां को मंदिर परिसर में ही विसर्जित करेंगे. इसके लिए पूरी तैयारी की जाती है. शुद्ध जल कृत्रिम जलाशय में भरा जाता है. फूल से उस जलाशय को सजाया जाता है. उसके बाद विधि विधान के साथ मां की प्रतिमा विसर्जित की जाती है. विसर्जन के बाद जलाशय का जल मिट्टी का उपयोग बगीचा में किया जाता है. जिससे मिट्टी का दोबारा उपयोग हो जाता है और हमलोगों को लगता है कि मां हमारे बीच में ही है. बंगाली दुर्गा पूजा समिति का यह प्रयास सराहनीय है.

Last Updated :Oct 15, 2021, 7:25 PM IST

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