धनबादः आमतौर पर दैनिक दिनचर्या में अगर घर में चीटिंयां निकल आए तो लोग उसमें बचने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं, लेकिन आज भी एक ऐसा आदिवासी समुदाय है जिनके लिए चीटिंयां किसी लजीज व्यंजन से कम नहीं है. कोड़ा आदिवासी समुदाय के लोग चीटिंयों और उनके अंडों को बड़े चाव से चटनी बनाकर खाते हैं. उनका मानना है कि चीटिंयों में प्रतिरोधक क्षमता है. जिसके कारण उन्हें कभी कोई बीमारी नहीं होती है. समुदाय के लोग उन चींटियों को बेमौत चीटिंयों के नाम से जानते हैं.
जिले के रंगनीभीठा में कई कोड़ा आदिवासी समुदाय के लोग वर्षों रह रहे हैं, पांच छह पीढ़ी इनकी यहां गुजर चुकी है. रंगनीभीठा धनबाद नगर निगम क्षेत्र में आता है. यह शहरी क्षेत्र जरूर है, लेकिन यहां कोड़ा आदिवासी समुदाय के लोग पारंपरिक वेशभूषा में नजर आते हैं.
चीटिंयों के अंड्डे है लजीज व्यंजन
दरअसल, चीटिंयों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं. जिनमें से इन चीटिंयों को सुमदाय के लोग बेमौत चीटिंयों के नाम से जानते हैं. इनके लिए यह एक लजीज व्यंजन है. चीटिंयों एवं उनके अंडों को चटनी बनाकर ये खाने में इस्तेमाल करते हैं. यह चीटिंयां पेड़ों पर पाई जाती है. पेड़ों की छोटी-छोटी टहनियों पर घोसलानुमा आकार के पत्तों के बीच असंख्य चीटिंयां झुंड में अंडा देती हैं. समुदाय के लोग ऐसे वृक्षों को खोज निकालते हैं और फिर उन टहनियों को तोड़ कर नीचे लाते हैं.