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नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पढ़ी अब अपने गांव आकर बच्चों को कर रहीं प्रशिक्षित

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Published : Sep 4, 2022, 12:38 PM IST

शिमला की अमला रॉय जो देशभर में अनेक स्थानों पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी हैं, पिछले एक साल से गांव के बच्चों के साथ निरंतर सांस्कृतिक और रंगमंचीय गतिविधियां कर उनकी प्रतिभा निखार रही (Amala Roy training children of her village) हैं. वहीं, शनिवार को सोलन जिले के धर्मपुर के समीप रौड गांव में जंगल जातकम नाटक का मंचन (Jungle Jaatkam drama staged in Dharampur) किया.

Jungle Jaatkam drama staged in Dharampur
अमला रॉय गांव के बच्चों को कर रही प्रशिक्षण

शिमला: नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (National School of Drama Delhi) से अध्ययन करने के बाद देश भर में अनेक स्थानों पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी अमला रॉय पिछले एक साल से गांव (Amala Roy of shimla) के बच्चों के साथ निरंतर सांस्कृतिक और रंगमंचीय गतिविधियां कर उनकी प्रतिभा निखार रही (Amala Roy training children of her village) हैं. अपनी संस्था अभिव्यक्ति के माध्यम से अमला रॉय ने शनिवार को सोलन जिले के धर्मपुर के समीप रौड गांव में जंगल जातकम नाटक का मंचन (Jungle Jaatkam drama staged in Dharampur) किया. नाटक एक 'स' जंगल की कहानी है जो की हमारे आसपास का जंगल है.

धर्मपुर में जंगल जातकम नाटक का मंचन: लेखक ने उसको बहुत ही सुंदर रूप से लिखा है. मनुष्य की इच्छा उसका लालच जो उसी का विध्वंश कर रहा है. उसको लेकर कटाक्ष है. जंगल आज भी मनुष्य का पालन पोषण करता है. जहां जंगल की अपनी दुनिया है अपना परिवार है वो मनुष्य को आज भी अपना मित्र ही समझता (Amala Roy training children) है. लेकिन मनुष्य ने ऐसा विकराल रूप ले लिया है कि उसका पूरा शरीर 'घमोच' हो गया है. जिसके आगे वो बोना हो गया है. विकृत घमोच जो कि मनुष्य की क्षुद्रता और दुर्बलता का प्रतीक है, वो उसका गुलाम बन कर खींच रहा है. ये बहुत दुखद है.

बच्चों ने शक्तिशाली ढंग से आवाज एवं शरीर का प्रयोग करके जंगल के नाना प्रकार के कार्य कलापों को वहां घटित होने वाली घटनाओं का मंचन किया. जहां जंगल खुश था आनंद में था, लेकिन मुनिष्य की ना खत्म होने वाली प्रगति ने उसको बहुत दम्भी बना दिया है. अपना अंत करने का सारा सामान जुटा लिया है. उस दर्द को बच्चों ने अपने भावों और अभिनय से प्रभाशाली ढंग से प्रस्तुत किया और ये आह्वान किया कि आज अगर हम सजग नहीं होंगे तो हमारा अंत निश्चित है.

यह कहानी काशीनाथ सिंह की कहानी पर आधारित है. कहानी का रूपांतर अच्छर सिंह परमार ने किया है. जिसका निर्देशन राजिंद्र शर्मा (हैप्पी) द्वारा किया गया. नाटक का संगीत सुनील सिन्हा ने किया है. दर्शक के रुप में गांव वालों के साथ साथ सोलन और कसौली के रंगकर्मियों पर इस प्रस्तुति का अनूठा प्रभाव पड़ा और सबने बच्चों को भरपूर सराहा और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्सहित किया.

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