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Chamba Minjar fair 2022: कल से शुरू हो रहा चंबा का ऐतिहासिक मिंजर मेला, एक क्लिक पर जानें इतिहास

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Published : Jul 23, 2022, 7:10 PM IST

शिवभूमि चंबा का मिंजर मेला प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पूरे देशभर में प्रसिद्ध है. भगवान लक्ष्मीनाथ और रघुनाथ को मुस्लिम परिवार की ओर से तैयार की गई विशेष मिंजर को अर्पित करने के साथ ही 24 से 31 जुलाई तक चलने वाले मिंजर मेले की शुरुआत हो जाएगी. यह मेला हर वर्ष श्रावण माह के दूसरे रविवार से शुरू होकर सप्ताह भर चलता है. इस मेले की शुरुआत और मिंजर नाम कैसे पड़ा पढ़ें पूरी स्टोरी...

Chamba Minjar fair 2022
Chamba Minjar fair 2022

चंबा:हिमाचल में देवी-देवताओं का वास कहा जाता है. यहां की संस्कृति और परंपराएं काफी अलग हैं. यूं तो प्रदेशभर में बहुत से मेले, त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं, लेकिन शिवभूमि चंबा का मिंजर मेला प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पूरे देशभर में प्रसिद्ध है. भगवान लक्ष्मीनाथ और रघुनाथ को मुस्लिम परिवार की ओर से तैयार की गई विशेष मिंजर को अर्पित करने के साथ ही 24 से 31 जुलाई तक चलने वाले मिंजर मेले की शुरुआत हो जाएगी. यह मेला हर वर्ष श्रावण माह के दूसरे रविवार से शुरू होकर सप्ताह भर चलता है.

मिंजर नाम कैसे पड़ा:एक अन्य लोक मान्यता (historical minjar fair of chamba) के अनुसार स्थानीय लोग मक्की और धान की बालियों को मिंजर कहते हैं. इस मेले का आरंभ रघुवीर जी और लक्ष्मीनारायण भगवान को धान और मक्की से बना मिंजर या मंजरी और लाल कपड़े पर गोटा जड़े मिंजर के साथ, एक रुपया, नारियल और ऋतुफल भेट किए जाते हैं. इस मिंजर को एक सप्ताह बाद रावी नदी में प्रवाहित किया जाता है. मक्की की कौंपलों से प्रेरित चंबा के इस ऐतिहासिक उत्सव में मुस्लिम समुदाय के लोग कौंपलों की तर्ज पर रेशम के धागे और मोतियों से पिरोई गई मिंजर तैयार करते हैं, जिसे सर्वप्रथम लक्ष्मीनारायण मंदिर और रघुनाथ मंदिर में चढ़ाया जाता है और इसी परंपरा के साथ मिंजर महोत्सव की शुरुआत भी होती है.

कैसे हुई मिंजर मेले की शुरुआत?: इस मेले की उत्पत्ति को लेकर कई लोक मान्यताएं प्रचलित हैं. बहुत से लोगों का मानना है कि यह त्योहार वरूण देवता के सम्मान में मनाया जाता है. एक मान्यता के अनुसार 10वीं शताब्दी में रावी नदी चंबा नगर में बहती थी और उसके दाएं छोर पर चम्पावती मंदिर एवं बाएं छोर पर हरिराय मंदिर स्थित था. उसी समय चम्पावती मंदिर में एक संत रहे जो हर सुबह नदी पार कर हरिराय मंदिर में पूजा अर्चना किया करते थे. चंबा के राजा और नगरवासियों ने संत से हरिराय मंदिर के दर्शनार्थ कोई उपाय तलाशने का निवेदन किया. तब संत ने राजा और प्रजा को चम्पावती मंदिर में एकत्रित होने के लिए कहा और बनारस के ब्राह्मणों की सहायता से एक यज्ञ का आयोजन किया जो सात दिन तक चला.

ब्राह्मणों ने सात विभिन्न रंगों की एक रस्सी बनाई, जिससे मिंजर (Chamba Minjar fair 2022) का नाम दिया गया, जब यज्ञ सम्पूर्ण हुआ तो रावी नदी ने अपना पथ बदल लिया और हरिराय मंदिर के दर्शन संभव हुए. एक अन्य मान्यता के अनुसार जब चंबा के राजा साहिल बर्मन ने कांगड़ा के राजा को पराजित किया तो उनका नलोहरा पुल पर लोगों द्वारा मक्की की मिंजर के साथ भव्य स्वागत किया गया और मिंजर मेले की शुरुआत हो गई.

भगवान रघुवीर को लेकर भी है एक कथा:दंतकथाओं के अनुसार 17वीं सदी की बात है. शाहजहां ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया. जिसमें हिस्सा लेने के लिए चंबा के राजा पृथ्वी सिंह भी पहुंचे. वह विजयी रहे और पुरस्कार के तौर पर उन्होंने भगवान रघुवीर की प्रतिमा मांग ली. दिल्ली के शासकों ने उन्हें यह भेंट कर दी. बता दें कि चंबा के राजा जब भगवान रघुवीर को यहां लेकर आए तो उनके साथ सफी बेग मिर्जा को भी भेजा गया. मिर्जा जरी-गोटे के काम में माहिर थे और उन्होंने जरी से मिंजर बनाकर रघुवीर जी, लक्ष्मी नारायण और राजा पृथ्वी सिंह को भेंट किया और तब से लेकर आज तक 300 साल से ज्यादा का वक्त गुजर गया है, लेकिन इसी परिवार के वंशज (परिवार का मुखिया) आज सबसे पहले रघुवीर जी को जरी गोटे से बनी मिंजर अर्पित करते हैं और तभी मेले की शुरुआत होती है.

इस परिवार के सदस्य मिंजर करीब आते ही मिंजर बनाने लग जाते हैं. आज भी इस काम में परिवार की तीन पीढ़ियां जुटी हुई हैं. इनके द्वारा बनाई गई मिंजर ही मेले के दौरान बाजार में बिकती है और उन्हें बहनें अपने भाइयों की रक्षा के लिए बांधती हैं. लोग एक दूसरे को भी मिंजर देते हैं.

एक सप्ताह तक चलता है यह मेला:मिंजर (History of Minjar of Chamba) मेला जुलाई माह के अंतिम रविवार से शुरू होकर एक सप्ताह तक चंबा के ऐतिहासिक एवं हरे-भरे चौगान मैदान में पारम्परिक ढंग से मनाया जाता है. इस दौरान लक्ष्मी नारायण मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है एवं कुंजरी-मल्हार गाए जाते हैं. स्थानीय लोगों के लिए मिंजर अच्छी फसल की कामना का प्रतीक है. इस अवसर पर दोस्तों एवं रिश्तेदारों में आपस में मिंजर भेंट किए जाते हैं.

ऐसे होता है मिंजर मेले का समापन:मिंजर विसर्जन इस त्योहार की अति महत्वपूर्ण रस्म है, जिससे पहले रघुनाथ मंदिर जो कि चंबा के राजा के अखण्ड चण्डी महल में स्थित है, से एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है. रघुवीर एवं अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों की सुसज्जित पालकियों को पारम्परिक रीति-रिवाज के साथ महल से विसर्जन स्थल तक लाया जाता है, जिसमें पारम्परिक वेशभूषा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु एवं लोग शामिल होते हैं. उत्सव के मुख्य अतिथि सुसज्जित मंच से मंत्रोच्चारण के बीच मिंजर, एक रुपया, नारियल, दूब और फूल को नदी में प्रवाह कर इन्हें वर्षा देवता को अर्पित करते हैं. इस समारोह के साथ मिंजर मेला समाप्त हो जाता है तथा देवी-देवताओं की प्रतिमाएं एवं शाही ध्वज को वापस अखण्ड चण्डी महल में लाया जाता है.

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