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किसान आंदोलन पर कंवरपाल गुर्जर का बड़ा बयान, 'कानून तो रद्द हो गए, आंदोलन जारी रखने का कुछ और ही कारण है'

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Published : Dec 6, 2021, 8:24 PM IST

Kanwarpal Gurjar comments on farmers protest
Kanwarpal Gurjar

हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर (Kanwarpal Gurjar) ने किसान आंदोलन को लेकर कहा कि तीनों कृषि कानून वापस (farm laws repeal) ले लिए गए हैं. अब किसानों को जिद छोड़ देनी चाहिए. किसान नेताओं का कहना था कि कानून वापसी तो घर वापसी, तो अब वहां बैठने का औचित्य ही नहीं बनता. मुझे लगता है इसके पीछे कोई और कारण है.

यमुनानगर: कृषि कानून वापस हो चुके हैं, लेकिन किसान अब भी अपनी अन्य मांगों को लेकर डटे हुए हैं. किसानों का कहना है कि जब तक उनकी बाकी मांगें नहीं मान ली जाती तब तक आंदोलन खत्म नहीं होगा. वहीं इस पर शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर (Kanwarpal Gurjar) ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. कंवरपाल गुर्जर ने कहा कि किसानों की मुख्य मांग मान ली गई हैं. कृषि कानून वापस (farm laws repeal) ले लिए गए. हालांकि ये कानून किसानों के हित के थे, लेकिन राष्ट्रहित को देखते हुए कानून वापस लिए गए.

उन्होंने कहा कि साथ ही एमएसपी पर भी कमेटी गठित की जाएगी. जिसमें किसान भी शामिल होंगे. ज्यादातर किसान संतुष्ट हैं और घर वापसी कर रहे हैं. अब किसानों को वहां से उठ जाना चाहिए. किसान नेताओं का कहना था कि कानून वापसी तो घर वापसी, तो अब वहां बैठने का औचित्य ही नहीं बनता. मुझे लगता है इसके पीछे कोई और कारण है. किसान हित के कारण नहीं है, कुछ और ही कारण है. अगर किसान के हित की बात है तो किसान पूरी तरह सन्तुष्ट हैं.

किसान आंदोलन पर कंवरपाल गुर्जर का बड़ा बयान, 'कानून तो रद्द हो गए, आंदोलन जारी रखने का कुछ और ही कारण है'

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विपक्ष का कहना है कि सरकार को जिद छोड़ किसानों की मांगें मान लेनी चाहिये. इसका जवाब देते हुए कंवरपाल गुर्जर ने कहा कि सरकार ने कोई जिद नहीं की है. जिद ये लोग कर रहे हैं. सरकार ने संसद में बना हुआ कानून वापस ले लिया. संसद सारे देश की चुनी हुई है जबकि आंदोलन करने वालों का हिस्सा 5 प्रतिशत है, जिद तो उनको छोड़नी चाहिए.

इसके अलावा कंवरपाल गुर्जर ने पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल के जनता ने देखा है 'जेजेपी-बीजेपी का काला इतिहास' वाले बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि अगर पुराना इतिहास उठाकर देखा जाए तो जो भी सरकारें रही उनके समय में किसान या तो उनकी गोली से मारे गए, या लाठीचार्ज से मरे. इस कार्यकाल में इतना सब कुछ होने के बाद भी एक भी किसान को चोट तक नहीं आई. छोटा-मोटा कोई लाठीचार्ज जरूर हुआ होगा, लेकिन कोई भी इतनी बड़ी कार्रवाई नहीं हुई. इतना बड़ा आंदोलन चलने के बाद भी सरकार ने संयम रखा.

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