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Women’s Day Special: मान्यताओं से ऊपर उठकर मिसाल पेश कर रही हरियाणा की ये महिला, अब तक 240 लावारिस शवों का किया अंतिम संस्कार

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Published : Mar 4, 2022, 9:13 PM IST

Women’s Day Special: विश्व महिला दिवस पर ईटीवी भारत लाया है, आपके लिए खास पेशकश. जिसमें ईटीवी भारत आपको ऐसी महिलाओं से मिलवाएगा, जिन्होंने अपने बलबूते से समाज सुधारक कार्य किए हैं. आइए आज मिलवाते हैं पलवल की महिला रेनू छाबड़ा से. जो अपने पति के साथ मिलकर लावारिस शवों का श्मशान घाट जाकर अंतिम संस्कार करती है. अब तक इन्होंने 240 शवों का अंतिम संस्कार कर दिया है.

Palwal Renu Chhabra
Palwal Renu Chhabra

पलवल:हिंदू समाज में मान्यता है कि श्मशान घाट जाकर शव का अंतिम संस्कार केवल पुरुष ही करते है, महिलाओं को श्मशान घाट जाने और किसी भी क्रिया करने पर आज भी रोक है. ऐसे में पलवल कैंप कॉलोनी की रहने वाली रेनू छाबड़ा ने इस मान्यता के परे हटकर 2018 से ने केवल श्मशान घाट जाकर लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करना (unclaimed dead bodies last rites in Palwal) शुरू कर दिया, बल्कि उन लावारिस शवों की अस्थियो को गंगा में विसर्जित करने के लिए हरिद्वार तक जाती है.

रेनू छाबड़ा (Palwal Renu Chhabra) इकलौती ऐसी महिला है जो श्मशान घाट जाकर लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करती है और फिर सभी क्रियाओं में खुद शामिल होती है. ईटीवी भारत से रेनू छाबड़ा ने बताया कि लावारिस शवो का अंतिम संस्कार करने की शुरुआत वर्ष 2018 में हुई. रेनू छाबड़ा ने अपने पति मनोज छाबड़ा के साथ मिलकर वर्ष 2018 में करुणामयी नामक संस्था की शुरुआत की और इस संस्था की स्थापना के पीछे उनका और उनके पति का मकसद लावारिस शवों का ससम्मान के साथ अंतिम संस्कार करना था. 8 अगस्त 2018 को उनकी संस्था को मान्यता दी गई और 10 अगस्त 2018 को उन्होंने प्रथम लावारिस शव का अंतिम संस्कार किया.

मान्यताओं से ऊपर उठकर मिसाल पेश कर रही हरियाणा की ये महिला, अब तक 240 लावारिस शवों का किया अंतिम संस्कार

इस तरह से जुड़ी मुहिम से- रेनू छाबड़ा ने बताया कि शुरू में केवल उनके पति मनोज छाबड़ा ही अपने साथियों के साथ लावारिस शव का अंतिम संस्कार करते थे. एक दिन लावारिस शवों की श्रंखला में एक महिला का शव आया. जिसपर रेनू छाबड़ा ने महिला के लावारिस शव का अंतिम संस्कार करने का फैसला लिया और संगीता नामक महिला के साथ पहली बार श्मशान घाट के अंदर महिला के शव का अंतिम संस्कार किया और दूसरी सभी क्रियाएं भी पूरी की.

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अब तक 240 शवों का अंतिम संस्कार किया- रेनू छाबड़ा बताती हैं कि उस महिला के शव के अंतिम संस्कार के बाद उन्होंने श्मशान घाट के अंदर जाकर लावारिस शवों का अंतिम संस्कार और दूसरी विधियां पूरी करनी शुरू की और तब से लेकर वह लगातार इस मुहिम में जुड़ी हुई है. रेनू ने बताया कि वह वर्ष 2018 से लेकर अब तक 240 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करा चुकी है और अस्थियों को हरिद्वार में विसर्जन करा चुकी हैं. उन्होंने बताया कि उनकी इस मुहिम में उनके परिवार ने हमेशा उनको सपोर्ट किया है और वह अपने पति के साथ मिलकर इस मुहिम को आगे बढ़ा रही हैं.

लावारिस शव का अंतिम संस्कार करती रेनू छाबड़ा

संस्था खुद वहन करती है खर्चा- लावारिस शवों के अंतिम संस्कार का पूरा खर्चा संस्था खुद वहन करती है. एक शव के अंतिम संस्कार पर करीब 4 हजार रूपये का खर्च आता है. ऐसे में बिना किसी प्रशासनिक मदद के वह खुद अपने वहन पर शव का अंतिम संस्कार कराने से लेकर और हरिद्वार जाकर अस्थिया बहाने तक का काम कर रही है. रेनू छाबड़ा के पति मनोज छाबड़ा ने बताया कि उनकी पत्नी इस काम को पूरी ईमानदारी के साथ कर रही हैं और पत्नी के साथ आ जाने से उनको बेहद अच्छा लगता है. उनकी पत्नी घर भी संभालती हैं और उनके साथ लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराने में भी उनसे आगे रहती हैं.

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