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Cveractive Bladder: बार-बार यूरिन पास करने की फीलिंग से हैं परेशान, एक्सपर्ट से जानिए क्या है इसका समाधान और लक्षण

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Published : Apr 9, 2023, 9:30 AM IST

ओवर एक्टिव ब्लैडर एक ऐसी बीमारी है, जिससे व्यक्ति किसी भी तरह के सामाजिक सरोकार से कट सा जाता है. दरअसल इस समस्या से परेशान व्यक्ति को बार-बार यूरिन पास करने की फीलिंग आती है, जिसके चलते व्यक्ति की रोजाना की एक्टिविटी भी प्रभावित होती है. आखिर इसका क्या इलाज है और इसके लक्षण क्या है जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...(Symptoms of overactive bladder )

Overactive bladder treatment in PGI Chandigarh
ओवर एक्टिव ब्लैडर

एनेस्थीसिया विभाग की प्रोफेसर बबीता घई

चंडीगढ़:पीजीआई चंडीगढ़ में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या हजारों में हैं. ऐसे में हर एक मरीज अलग अलग बीमारी के साथ गंभीर हालात में पहुंचता है. उनमें से एक बीमारी ओवर एक्टिव ब्लैडर की है. जिसकी समस्या लेकर राजस्थान के एक लड़की पीजीआई में 2021 में भर्ती हुई. वहीं, दो साल बाद पीजीआई के यूरोलॉजी विभाग और पेन मैनेजमेंट यूनिट ने मिलकर महिला मरीजों को 13 साल पुरानी बीमारी से निजात दिलाई. आज वह महिला सामान्य व्यक्ति की तरह जी रही है. पीजीआई के तीन विभागों की टीम द्वारा मिलकर महिला मरीज की ओवर एक्टिव ब्लैडर का सफल इलाज कर मरीज को राहत भरा जीवन दिया है. पीजीआई के यूरोलॉजी विभाग और पेन मैनेजमेंट यूनिट के डॉक्टर ने सैकड़ों न्यूरो मोड्यूलेशन तकनीक अपनाकर यह सफलता हासिल की है.

क्या होता है ओवर एक्टिव ब्लैडर?: पेन मैनेजमेंट यूनिट हेड और एनेस्थीसिया विभाग की प्रोफेसर बबीता घई ने बताया कि ओवर एक्टिव पेनफुल ब्लैडर की समस्या पिछले 13 सालों से थी. जिसके कारण महिला आम जीवन व्यतीत नहीं कर रही थी. उन्होंने बताया कि हमारा एक यूरिनरी ब्लैडर होता है, जिसमें किडनी से फिल्टर होकर पेशाब इकट्ठा होता है. जब उस में 300 से 400 एमएल पेशाब इकट्ठा हो जाता है तो यह संकेत न्यूरो सर्किट के जरिए हमारे मस्तिष्क तक पहुंचता है. जिसके बाद हम पेशाब करने की इच्छा होती है.

ओवर एक्टिव ब्लैडर गंभीर समस्या: ओवरएक्टिव ब्लैडर में यह समस्या गंभीर होती है. जहां हमारी ओवरी में 300 से 400 एम एल से कम होकर 40 से 50 एमएम पेशाब ही एकत्र होते ही मस्तिष्क को संकेत भेजता है. जिससे मरीज को हर 10 से 15 मिनट बाद बाथरूम जाना पड़ता है. यह समस्या और गंभीर तब हो जाती है, जब उसे पेशाब न करने पर गंभीर पीड़ा और असहनीय दर्द होता है. उन्होंने बताया कि इस मर्ज में मरीज के न्यूरो सर्किट में गड़बड़ी उत्पन्न होती है. ऐसे में मरीज के दिमाग में से संदेश का संचार अनियमित हो जाता है. इससे मरीज को पेशाब की थैली में पेशाब एकत्र करने की क्षमता कम हो जाती है.

ओवर एक्टिव समस्या से परेशान लड़की 2021 में पीजीआई में हुई भर्ती: डॉ. बबीता ने बताया कि इस समस्या से जूझ रहे मरीजों को डायग्नोज करने में काफी परेशानी होती और विशेषज्ञों की टीम की जरूरत होती है. 13 साल से अलग-अलग डॉक्टरों द्वारा अपनी इलाज करवाने के बाद महिला मरीज राजस्थान से 2021 में पीजीआई चंडीगढ़ में भर्ती हुई. इस दौरान यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुधीर द्वारा महिला मरीज का इलाज करते हुए 2 महीने के खोज के बाद एक पर्याप्त डायग्नोज्ड तैयार किया. इस डायग्नोज को बनाने के लिए फिजियोथेरेपिस्ट, यूरोलॉजिस्ट और पेन फिजिशियन टीम ने मिलकर धीरे-धीरे उस महिला मरीज का इलाज शुरू किया, लेकिन महिला मरीज को इस दौरान अस्थाई तौर पर ही आराम दिया जा सका.

उन्होंने ने बताया कि जब महिला को पेन फिजिशियन डिपार्टमेंट यानी हमारे विभाग में शिफ्ट किया गया. उस दौरान हमने उस महिला को पोडेंटिल लव वॉक करते हुए रेडियो फ्रीक्वेंसी के जरिए 2 महीने तक आराम महसूस दिलाया, लेकिन समस्या वैसे ही बनी रही. इस दौरान मरीज को डॉ. सुधीर द्वारा बोटोक्स के भी इंजेक्शन दिए गए जो सिर्फ एक महीना ही आराम देते, लेकिन समस्या वैसे उभर आती. न्यूरो मॉड्यूलेशन तकनीक का प्रयोग करते हुए, मरीज के मस्तिष्क संबंधी विकार को दूर किया गया, इसके लिए इंप्लांटेबल पल्स का प्रयोग किया गया.

एक लाख लोगों में से 4-5 लोगों को होती है ये बीमारी: ऐसे में मरीज को स्थाई तौर समस्या से निजात दिलाने के लिए इंटरनेशनल नेशनल विशेषज्ञों से बातचीत करते हुए नतीजा निकाला गया कि महिला मरीज को सेक्रेल न्यूरो मॉड्यूलेशन तकनीक के जरिए ही इलाज किया जाएगा. लेकिन, न्यूरो मॉड्यूलेशन का ट्रायल खर्च ही एक लाख के करीब है. वहीं, इसका पूरा खर्च सात से आठ लाख के करीब तक आता है. क्योंकि यह बीमारी एक लाख की जनसंख्या में 4 से 5 लोगों को ही होती है. ऐसे में इस बीमारी का इलाज महंगा है.

पीजीआई में ओवर एक्टिव ब्लैडर का इलाज: वहीं, पीजीआई एक ऐसा संस्थान है, जहां इस बीमारी से संबंधित मरीजों के इलाज किए जा रहे हैं. इस महिला मरीज का इलाज करने के बाद आज यह महिला अपने आम जीवन को जीना शुरू कर चुकी है. डॉ. बबीता ने कहा कि, हमें खुशी है कि वह 13 साल से जिस समस्या से जूझ रही थी उसे हम हल कर पाए.

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