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हरियाणा भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता का मामला: रणदीप सुरजेवाला ने सरकार को घेरा, CM मनोहर लाल पर साधा निशाना

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Published : Jun 6, 2023, 12:55 PM IST

सांसद सुरजेवाला ने सीएम मनोहर लाल पर (Randeep Surjewala on CM Manohar Lal Government) जुबानी हमला बोलते हुए कहा कि हरियाणा में सरकारी भर्ती पारदर्शी तरीके से नहीं हो रही है. अभ्यर्थियों को अपनी उत्तर पुस्तिका देखने की अनुमति होनी चाहिए. सभी चयनित उम्मीदवारों की उत्तर पुस्तिकाओं की स्कैन कॉपी भी वेबसाइट पर उपलब्ध होनी चाहिए.

Randeep Surjewala on CM Manohar Lal
हरियाणा भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता का मामला

चंडीगढ़:कांग्रेस महासचिव और राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला ने प्रदेश में हुई भर्तियों में पारदर्शिता को लेकर खट्टर सरकार पर तीखा हमला बोला है. सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि हरियाणा की भाजपा-जजपा सरकार इस प्रदेश के लाखों बेरोजगार युवाओं को ठग रही है. अच्छे भविष्य की उम्मीद लगाए बैठे युवाओं और उनके परिजनों की आंखों में पारदर्शिता के झूठे नारे लगाकर धूल झोंकी जा रही है. उन्होंने कहा कि ये पारदर्शिता ना एचपीएससी की भर्तियों में है, ना एचएसएससी की भर्तियों दिखाई दी है.


रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि खट्टर राज में विश्वविद्यालयों में तो पारदर्शिता की उम्मीद करना ही बेमानी है. रणदीप ने एक बयान जारी कर मुख्यमंत्री से पूछा कि अगर भर्तियों में पारदर्शिता के मनोहरलाल खट्टर के दावे सही हैं तो युवाओं को आरटीआई के माध्यम से भी उनकी जायज सूचनाएं अभी तक क्यों नहीं दी जा रही? रणदीप ने आरोप लगाया कि दरअसल ये लोग पहले घोटाले पर घोटाले करते चले जाते हैं और फिर उन्हें दबाने के लिए नियम-कानूनों की सरेआम धज्जियां उड़ाते हैं.

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उन्होंने कहा कि खट्टर साहब की सरकार की एक भी भर्ती ऐसी नहीं है जो प्रथम दृष्टया कोर्ट में ना अटकी हो. कुछ भर्तियां तो ऐसी भी हैं, जिनको पूरा हुए भी 7-8 साल हो गए. लेकिन, उनके खिलाफ मामले आज भी न्यायालयों में विचाराधीन हैं. उन्होंने कहा कि एचसीएस की भर्ती तो हर बार इनके लिए एक नया कलंक लेकर आती है. एचसीएस की 2019 की भर्ती में प्रारंभिक परीक्षा में 20 से अधिक प्रश्न ऐसे थे. जिनका हिंदी अनुवाद दिया ही नहीं गया था.

वह मामला भी कोर्ट में फंसा हुआ है. एचसीएस की पिछली भर्ती की प्रारंभिक परीक्षा में आयोग का डिप्टी सेक्रेटरी अनिल नागर कैंडिडेट्स की ओएमआर शीट्स और करोड़ों रुपयों की अटैची के साथ पकड़ा गया था. बड़ी-बड़ी मछलियां इस कीचड़ में धंसी थी. लेकिन, खट्टर सरकार की विजिलेंस ने अनिल नागर को बलि का बकरा बनाकर बाकी सभी घोटालेबाजों को साफ बचा लिया. लोगों को दिखाने के लिए दुबारा परीक्षा करवा ली गई. लेकिन ढाक के वहीं तीन पात.

एक साल गुजर जाने के बाद भी अभ्यर्थियों को ना तो पिछली एचसीएस (प्री) परीक्षा के पेपर-I और पेपर-II के अंक बताए जा रहे हैं और ना ही कट ऑफ बताई जा रही है. सुरजेवाला ने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा विकास शर्मा बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा मामले में दिए गए निर्णय के अनुसार भर्ती की प्रक्रिया पूरी हो जाने के पश्चात सभी भर्ती एजेंसीज को सभी अभ्यर्थियों के अंक अपनी वेबसाइट पर डाल देने चाहिए. एचसीएस की परीक्षा तो क्वालीफाइंग होती है.

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इस परीक्षा में अभ्यर्थियों के अंक, फाइनल आंसर की और कट-ऑफ तो साथ-साथ ही दिखाए जाने चाहिए. लेकिन एचपीएससी एक साल बीत जाने के बाद भी आरटीआई के माध्यम से भी ये सूचनाएं देने को तैयार नहीं है. सुरजेवाला ने कहा कि अभ्यर्थियों को उनकी आंसर शीट्स दिखाने के राज्य सूचना आयोग के निर्णय के खिलाफ एचपीएससी अपील लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चली गई थी. इनकी इस अपील को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 2016 में खारिज कर दिया था.

उसके बाद एचपीएससी ने केवल कुछ महीने कैंडिडेट्स को उनकी आंसर शीट्स की फोटोकॉपी उपलब्ध करवाई. जिससे लोगों को ये पता चला कि एचसीएस की मुख्य परीक्षा में किस प्रकार काट-काटकर अंक बदले जाते हैं. जब इनकी झूठी पारदर्शिता और हेराफेरी का भंडा जनता के सामने फूटने लगा तो पहले तो इन्होंने अंक ढक कर कॉपी दिखानी शुरू की ताकि अभ्यर्थी ये जान ही नहीं पाए कि उसके अंकों में कटिंग की गई है या नहीं. अब तो तानाशाही की हद हो गई है.

किसी और मामले का हवाला देकर एचपीएससी ने अभ्यर्थियों को एक बार फिर से उनकी उत्तर पुस्तिकाओं की कॉपी देनी बंद कर दी है. सुरजेवाला ने कहा कि अभ्यर्थियों को अपनी उत्तर पुस्तिका देखने की अनुमति होनी चाहिए. इसके साथ ही सभी चयनित उम्मीदवारों की उत्तर पुस्तिकाओं की स्कैन की हुई कॉपी भी वेबसाइट पर उपलब्ध होनी चाहिए. जिससे असफल अभ्यर्थी भी तुलना करके देख सकें कि उनसे कहां चूक हुई है.

उन्होंने कहा कि इन भर्ती एजेंसीज की तानाशाही खट्टर साहब के पारदर्शिता के दावों की खुद ही पोल खोल देती है. उन्होंने मांग करते हुए कहा कि सीएम मनोहर लाल को इन भर्ती एजेंसीज के कारनामों की जांच के लिए उच्च न्यायालय के जज की अध्यक्षता में टास्क फोर्स बनानी चाहिए. जिससे इनकी हेराफेरी पर लगाम लगाई जा सके.

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