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हरियाणा में जन आशीर्वाद यात्रा Vs महापरिवर्तन रैली, किसकी होगी नैया पार?

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Published : Aug 18, 2019, 10:07 PM IST

हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस और बीजेपी के बीच लड़ाई राजनीतिक वर्चस्व की हो गई है. कांग्रेस नेता भूपेंद्र हुड्डा ने महापरिवर्तन रैली कर अपनी ताकत दिखाई तो वहीं सीएम मनोहर लाल ने भी हरियाणा में जन आशीर्वाद यात्रा शुरू कर दी है. अब देखना होगा कि विधानसभा चुनाव में किसका दांव किस पर भारी पड़ेगा.

सीएम मनोहर लाल और उपमुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा

चंडीगढ़:हरियाणा में इन दिनों सियासी उठापटक चरम पर है. विधानसभा चुनाव के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई है. वहीं सियासी पारा भी चरम पर है. सीएम ने लोगों को अपने काम गिनाने और केंद्र सरकार के फैसलों को लेकर जन आशीर्वाद यात्रा शुरू की है. वहीं हरियाणा में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी अपना दम दिखाकर कांग्रेस पर दबाव बनाने में लगे हैं.

सीएम मनोहर लाल की जन आशीर्वाद यात्रा

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल दूसरी बार सत्ता में काबिज होने के लिए लोगों का आशीर्वाद लेने चल पड़े हैं. इसके लिए सीएम ने जन आशीर्वाद यात्रा शुरू कर दी है. जिसके तहत मुख्यमंत्री राज्य की सभी 90 विधानसभाओं में ‘जन आशीर्वाद रैलियों’ को संबोधित करते हुए जनता का आशीर्वाद मांगेंगे. इस यात्रा को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हरी झंडी दिखाई.

वजूद के लिए हुड्डा की महापरिवर्तन रैली

वहीं हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने कांग्रेस की अनदेखी से परेशान होकर रोहतक में अपना दमखम दिखाने के लिए महापरिवर्तन रैली कर खुद के वजूद को बचाने के लिए अपना आखिरी दांव खेला है.

सीएम मनोहर लाल का निशाना 75 प्लस, हुड्डा अभी भी पसोपेश में!

इस बार बीजेपी हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए मिशन 75 लेकर चल रही है. इसके लिए सीएम मुख्यमत्री जन आशीर्वाद यात्रा लेकर निकल पड़े हैं. सीएम का टारगेट प्रदेश की 75 से अधिक सीटों पर पार्टी का परचम लहराने का है. इसके लिए वे अपनी सरकार की 5 साल की उपलब्धियां और केंद्र की मोदी सरकार के देश के हित में लिए गए फैसलों को जनता तक पहुंचाकर पार्टी की जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं, जो वर्तमान के सियासी पारे को देखते हुए कोई मुश्किल काम नहीं है.

हुड्डा की कांग्रेस पर दबाव की रणनीति!

वहीं हरियाणा में 10 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा सोच विचार कर दूसरा रास्ता तैयार करने जा रहे हैं. एक तरफ उनसे रोहतक में बड़े ऐलान की उम्मीद थी. जो आधी अधूरी रही, वो इसलिए क्योंकि उन्होंने किसी फैसले के लिए कमेटी के गठन की बात कही, जिसका फैसला उन्हें मान्य होगा.

साथ ही यह भी कह दिया कि वे सारे बंधन तोड़कर पहुंचे हैं लेकिन अंतिम फैसला नहीं लिया. यानी हुड्डा कहीं-न-कहीं अभी भी पसोपेश में दिखाई पड़ रहे हैं, हुड्डा के लिए अलग राजनीतिक पार्टी खड़ा करना आसान साबित नहीं होगा. दूसरी तरफ कांग्रेस आलाकमान उन्हें आगे करते हुए चुनाव में उतारे इसके लिए दबाव की रणनीति भी मानी जा रही है.

मनोहर लाल का टारगेट साफ, हुड्डा खेल रहे सियासी दांव ?

एक तरफ मुख्यमंत्री मनोहर लाल और उनकी पार्टी का टारगेट साफ है, पार्टी अपनी उपलब्धियों का बखान करके हरियाणा की सत्ता में फिर काबिज होने के लिए जोर लगा रही है तो वहीं हुड्डा सियासी दांव खेलते दिखाई दे रहे हैं. इसके लिए रोहतक में हुड्डा ने आज कई बड़ी योजनाओं की घोषणा भी की.

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि सरकार बनने की सूरत में हरियाणा रोडवेज में महिलाओं का सफर फ्री करने का वादा भी किया. इसके अलावा हुड्डा ने इस बार चुनाव में जातिगत दांव भी खेलने का इशारा किया है. हुड्डा ने रोहतक रैली के दौरान कहा कि कांग्रेस की सरकार आने पर हरियाणा में चार उपमुख्यमत्री होंगे. जिनमें एक दलित, एक बीसी, एक ब्राह्मण और एक अन्य किसी समुदाय से होगा. इससे साफ होता है कि हुड्डा वादों का पिटारा खोलकर सभी जाति, वर्ग, समूह और समुदाय के लोगों को साधने में लगे हैं. इसके लिए उन्होंने कमेटी बनाने की बात भी कही.

हुड्डा की रोहतक रैली के मायने ?

हुड्डा की रोहतक रैली उनके खुद के भविष्य की योजना को लेकर ही दिखाई पड़ती है. क्योंकि एक तरफ वे कहते हैं कि वे तो संन्यास लेने वाले थे लेकिन फिर मुकाबले के लिए मैदान में आ गए. यह बयान स्पष्ट कह रहा है कि वर्तमान हरियाणा कांग्रेस में हाईकमान उन्हें अब फिट नहीं मान रहा और वहीं उनके साथी कांग्रेस से ज्यादा उनके प्रति वफादारी रखते हैं.

इसलिए वे उनकी हिम्मत को बढ़ाते हुए उन्हें फिर से सियासी दंगल में उतरने के लिए कह रहे हैं. हुड्डा वहीं कांग्रेस को भी फिर से सोचने का मौका दे रहे हैं, इसलिए कह रहे हैं कि वो एक कमेटी बनाएंगे जिसका फैसला मान्य होगा.

क्या है हुड्डा के पास वर्तमान विकल्प?

अगर कांग्रेस आलाकमान उनको हरियाणा में पार्टी का प्रमुख नहीं बनाती है तो हुड्डा के पास अपनी पार्टी बनाने के अलावा कोई विकल्प दिखाई नहीं दे रहा है. न तो मौजूदा दौर में वे बीजेपी के लिए फायदे का सौदा हैं, न ही जेजेपी और इनेलो के लिए. वर्तमान में हालात बीजेपी के पक्ष में है. इसलिए हुड्डा अलग से लड़कर कुछ विधायकों के साथ सदन में पहुंचकर खुद के लिए हरियाणा की सियासत में जगह बनाए रखने की चाह रख रहे हैं ऐसा कहना भी गलत नहीं होगा.

जानकर मानते हैं कि हुड्डा ने कई बार लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस हाईकमान के दर पर दस्तक दी और उनको हरियाणा कांग्रेस की जिम्मेदारी देने की मांग की लेकिन हाईकमान ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया. जिसके बाद हुड्डा के पास खुद की पार्टी बनाने के अलावा कोई और चारा नहीं रह गया.

एक तरफ गद्दी तय, दूसरी तरफ गद्दी के लिए संघर्ष!

हरियाणा में फिर बीजेपी की सरकार बनती है तो मौजूदा मुख्यमंत्री मनोहर लाल ही अगली बार भी प्रदेश सरकार की बागडोर सम्भालेंगे, दूसरी तरफ भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके करीबी विधायक लगातार कांग्रेस हाई कमान पर दबाव बनाते नजर आ रहे हैं कि हुड्डा को चेहरा बनाकर कांग्रेस मैदान में उतरे, मौजूदा अध्यक्ष अशोक तंवर की अध्यक्षता में हरियाणा में कांग्रेस लगातार बिखरती जा रही है. ऐसे में हुड्डा चाहते हैं कि कांग्रेस आलाकमान उन पर विश्वास जताए. हुड्डा ने जता दिया है कि कांग्रेस के पास उनके अलावा कोई और रास्ता नहीं है.

अलग पार्टी का फायदा या नुकसान?

भूपेंद्र सिंह हुड्डा को अगर कांग्रेस की तरफ से मना लिया जाता है तो हुड्डा अपने पुराने अनुभव के आधार पर पार्टी को छत के नीचे जोड़ने का प्रयास करेंगे, दूसरी तरफ अलग पार्टी बनने से हुड्डा अपनी नई छतरी के नीचे टूटे हुए नेताओं को जोड़ने का प्रयास करेंगे. दोनों ही सूरतों में हरियाणा में नए राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते नजर आएंगे.

इससे हरियाणा में हुड्डा की नैया मझधार में ही अटकी दिखाई दे रही है. इसमें हुड्डा का फायदा कम और नुकसान ज्यादा दिखाई दे रहा है. क्योंकि इनेलो और जेजेपी आज के समय में बिखरते नजर आ रहे हैं, लेकिन आज भी हरियाणा की राजनीति में चौटाला परिवार का वजूद मायने रखता है.

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