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बच्चों के बदलते व्यवहार के पीछे होती है गंभीर वजह, समझने के बाद ही उठाएं कोई कड़ा कदम- मनोचिकित्सक

By ETV Bharat Haryana Team

Published : Dec 4, 2023, 2:18 PM IST

बदलते समय के साथ-साथ बच्चों के व्यवहार में भी अंतर आता जा रहा है. बच्चों पर परिवार, समाज के साथ-साथ स्कूल और माता-पिता के व्यवहार का बहुत असर होता है. कई बच्चे अपनी परेशानी को माता-पिता से बता देते हैं तो कुछ ऐसे भी बच्चे होते हैं जो अपनी परेशानी किसी के साथ साझा नहीं कर पाते हैं और अंदर ही अंदर परेशान रहते हैं. कई बच्चे तो हिंसा पर भी उतर आते हैं. आखिर इसके पीछे क्या कारण है इसको लेकर ईटीवी भारत ने पीजीआई में मनोचिकित्सक डॉक्टर निधि चौहान से खास बातचीत की. (Chandigarh Child Mental Health)

Chandigarh Child Mental Health
बच्चों का मनोविज्ञान

पीजीआई में मनोचिकित्सक डॉक्टर निधि चौहान से समझिए बच्चों का मनोविज्ञान

चंडीगढ़: आए दिन चंडीगढ़ में स्कूल बच्चों की गुंडागर्दी और शरात की शिकायतें सामने आ रही हैं. ऐसे में बच्चों की मानसिक स्थिति को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं. मनोचिकित्सक के अनुसार इस कदर हिंसक होने वाले बच्चों के स्वभव के पीछे कई बड़ी वजह हो सकती है. इस तरह के बच्चों के लिए मनोविज्ञान में तीन स्तर बनाए गए हैं, जिन बच्चों में व्यवहार को लेकर दिमाग में सवाल चलते रहते हैं, उन्हें गंभीरता से समझने की जरूरत है.

परिवार और समाज का पड़ता है बच्चों पर असर: बीते दिनों चंडीगढ़ सेक्टर- 19 के सरकारी स्कूल में एक 15 साल के छात्र ने अपने स्कूल के ही हेड मास्टर के सिर पर लोहे की रॉड से हमला कर दिया था. इस हमले में हेड मास्टर गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इस घटना के बाद छात्र को स्कूल से सस्पेंड कर दिया गया. आखिर ऐसी क्या परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं कि छात्र इस तरह से हिंसा पर उतारू हो जाते हैं. इस समस्या को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने पीजीआई चंडीगढ़ में मनोचिकित्सक डॉक्टर निधि चौहान से खास बातचीत की. आइए जानते हैं बदलते समय के साथ बच्चों के मनोविज्ञान पर किस तरह का असर पड़ता है.

बच्चों के साथ कैसे करें बात?:वहीं, डॉक्टरों की मानें तो इस तरह के छात्रों की मानसिक स्थिति को समझने की जरूरत है. ऐसे हालात में स्कूल को ऐसे छात्र को सस्पेंड नहीं करना चाहिए था. उसे एक अच्छे मनोचिकित्सक के पास कंसल्टेशन के लिए भेजना चाहिए था. ताकि उसकी मानसिकता को समझा जा सके. डॉक्टर निधि चौहान ने बताया कि टीनएजर जिनकी उम्र 14 से 15 के बीच होती है. उनमें देखा गया है कि वह बच्चे अचानक से कुछ भी बोल या कर देते हैं. इस उम्र के बच्चों को मनोचिकित्सक भाषा में अडोलेसेन्स (किशोरावस्था) के नाम से जाना जाता है. इस उम्र के बच्चों में शारीरिक बदलाव और मानसिक बदलाव तेजी से हो रहा होता है. वहीं, अगर नर्वस सिस्टम की बात करें तो वह अपनी धीमी गति से चल रहे होते हैं. जिस किसी भी बच्चे को कुछ भी समझना मुश्किल हो जाता है. किउकी यह समय के साथ विकसित होता है.

बच्चों के व्यवहार के पीछे का कारण: पीजीआई में मनोचिकित्सक डॉक्टर निधि चौहान ने बताया कि आज कल के बच्चों के व्यवहार में बहुत अंतर आ चुका है. हमें समझने की जरूरत है कि यह बच्चों का एक भाव है. बच्चों के अंदर जिन भावनाओं का उतार-चढ़ाव चल रहा है, वह किसी न किसी रूप में बाहर जरूर आती है. इन भावों को अंदर से बाहर निकलने की क्या बड़ी वजह है उसे समझने की जरूरत है. इस तरह की मानसिकता से जूझ रहे बच्चों को समझने के लिए तीन फैक्टर जानना बहुत जरूरी है. पहला फैक्टर बायोलॉजिकल, दूसरा साइकोलॉजिकल फैक्टर, तीसरा सोशल फैक्टर है.

पहला फैक्टर बायोलॉजिकल: बायोलॉजिकल फैक्टर के अनुसार जिन बच्चों में मानसिकता और शारीरिक बदलाव हो रहा होता है वे बच्चे एक मुश्किल दौर से गुजर रहे होते हैं. ऐसे में अगर किसी बच्चे के व्यवहार में बदलाव देखा जा रहा है तो उसे इन फैक्टर पर परखा जाता है.

दूसरा साइकोलॉजिकल फैक्टर: अगर हम मानसिक बीमारियों की बात करें. इसके लक्षण अग्रेशन, डिप्रेशन और एंग्जायटी के रूप में देखे जा सकते हैं. इस स्तर पर पहुंचने वाले बच्चों में गुस्सा जरूर से ज्यादा देखा जाता है. इस फैक्टर के तहत बच्चे कोई भी काम करने के लिए तैयार रहते हैं चाहे वे उसी नुकसान पहुंच रहा हो. इसके अलावा अपनी हम उम्र के बच्चों के द्वारा डाला जाता दबाव का भी उन पर गहरा असर होता है.

तीसरा सोशल फैक्टर: तीसरा फैक्टर जो सबसे ज्यादा देखा जाता है वह सोशल फैक्टर है. अगर किसी बच्चे के घर में और आसपास ऐसा माहौल है, जहां लगातार हिंसक वारदात होती हैं. ऐसी स्थिति में बच्चा उस माहौल में ढलने के लिए खुद भी वैसा बन जाता है. वही, जब इन तीनों फैक्टर पर अध्ययन करते हैं तो हम यह समझ सकते हैं कि एक बच्चे के हिंसक होने की पीछे क्या बड़ी वजह है. ताकि समय रहते उसे ठीक किया जा सके. ऐसे में अभिभावकों को सतर्क रहने की जरूरत है.

स्कूल में हो रहे व्यवहार का भी पड़ता है गहरा असर:जहां तक के स्कूल में शिक्षा देने का सवाल है. हर एक स्कूल में दी जाने वाली शिक्षा बच्चों की भलाई के लिए होती है. शिक्षक कभी भी बच्चे का बुरा नहीं चाहेगा. हालांकि कुछ शिक्षकों द्वारा बच्चों को अगर डांटा जाता है तो वह बच्चे की मानसिकता पर एक वजह बन सकती है. क्योंकि देखा गया है कि जिन बच्चों को भरी क्लास के सामने अपशब्द कहे जाते हैं या बेइज्जत किया जाता है उसका नतीजा गलत हो सकता है.

बच्चों में बढ़ रहा मानसिक तनाव: मनोचिकित्सक डॉ. निधि ने बताया 'मुझे हैरानी होती है कि आज कल का अभिभावक न सिर्फ शहरी बल्कि ग्रामीण इलाकों से आने वाले भी अपने बच्चों के मानसिक बीमारी को लेकर जागरूक हो रहे हैं. हमारे पास जो बच्चे आते हैं. उनमें मानसिक तनाव बढ़ रहा है. यहां तक की 6 से 7 साल की उम्र के बच्चे भी मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं. अगर 14 से 15 साल के बच्चों की बात की जाए तो उनके साथ कुछ ऐसा हुआ होता है. जिसे वह भूल नहीं पाते. देखने में आया है कि जिन बच्चों का इलाज पीजीआई में चल रहा है, उनमें से ज्यादातर के साथ सेक्सुअल असॉल्ट हुआ होता है. भले ही यह उनके साथ तीन से चार साल पहले हुआ हो, लेकिन इस अपमान को वे हमेशा महसूस करते हैं. इनमें सिर्फ लड़कियां ही नहीं लड़के भी शमिल हैं.'

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