एक दौर था जब किसी भी प्रकार के मानसिक समस्या के इलाज के लिए मनो चिकित्सकों के पास जाना समाज में हंसी और शर्म का कारण बन जाता था। मिलेनियम और जेनरेशन जेड कही जाने वाली आज की पीढ़ी भी मनोचिकित्सकों के पास जाने में हिचकिचाती है लेकिन उसका कारण सामाजिक मान्यताएं नहीं बल्कि मानसिक समस्याओं के उपचार के लिये दी जाने वाली महंगी जांचे तथा महंगी दवाइयां हैं। यही नहीं, ज्यादातर मामलों में मानसिक समस्याओं के लिए दी जाने वाली दवाइयों के शरीर पर दुष्प्रभाव या पार्श्व प्रभाव भी नजर आते हैं जैसे वजन बढ़ना, भावनात्मक या पाचन संबंधी समस्याएं, यौन रोग, नींद में समस्या तथा हारमोंस में असंतुलन आदि।
मानसिक विकारों और समस्याओं के क्षेत्र में उपचार को हर लिहाज से बेहतर और सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से विभिन्न विकल्पों के विकास के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्षेत्र में कार्य कर रहे स्टिमवेदा न्यूरोसाइंसेज के संस्थापक और सीईओ राम्या येलाप्रगदा बताते हैं कि वर्तमान में इसी श्रंखला के अंतर्गत आने वाले “अत्याधुनिक मानसिक उत्तेजना” (आरटीएमएस) उपचार का उपयोग करने के लिए भारत में 1.2 लाख रूपये से अधिक का भुगतान करना पड़ता है।
वह बताते हैं कि मस्तिष्क उत्तेजना के सुरक्षित और लक्षित विकल्प अपेक्षाकृत काफी लोकप्रियता प्राप्त कर सकते हैं लेकिन इसमें आरटीएमएस की जटिलता और आकार एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आता है। वह बताते हैं कि वर्षों से शोधकर्ता मस्तिष्क उत्तेजना तकनीक का एक पोर्टेबल संस्करण विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं जिसे ट्रांसक्रेनियल डायरेक्ट करंट स्टीम्यूलेशन (टीडीसीएस) कहा जाता है जो दैनिक मनोरोग चिकित्सा को बेहतर रूप में बदल सकता है।
गौरतलब है कि राम्या येलाप्रगदा आईआईटी दिल्ली से अपनी इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद ए.आई, एम.एल केंद्रित कार्यक्रम प्लाक्षा लीडर्स फैलोशिप का हिस्सा बने। यहीं पर उनकी मुलाकात उनकी साथी संस्थापक से हुई जिसके उपरांत उन्होंने उनके साथ मिलकर स्टिमवेदा न्यूरोसाइंसेज की शुरुआत की।
टीडीसीएस के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए एम्स दिल्ली के क्लीनिकल मनोचिकित्सक रोहित बताते हैं कि टीडीसीएस व्यापक उपयोग की क्षमता के चलते मानसिक बीमारियों के प्रबंधन में उपयोगी साबित हो सकते हैं। इस तकनीक ने अभी तक संज्ञानात्मक समस्याओं और मानसिक रुग्णता या बीमारियों के प्रबंधन में प्रभावकारी भूमिका दर्शित की है।