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क्यों जरूरी है डीवॉर्मिंग?

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Published : Feb 11, 2021, 3:08 PM IST

दुनिया भर में बच्चों तथा युवाओं में सॉयल ट्रांसमिटेड हेलमिंथ (एस.टी.एच) यानि पेट के कीड़े होने की समस्या आम है. लेकिन पूरे विश्व में एसटीएच के मामलों में से 27 प्रतिशत मामले सिर्फ भारत में ही है. यह आंकड़ा वाकई चिंताजनक है. इस समस्या से निपटने के लिए तथा भारत में एसटीएच की समस्या से मुक्ति का उद्देश्य लेकर भारत सरकार के स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से इस विशेष दिवस को साल में दो बार 10 फरवरी तथा 10 अगस्त को मनाया जाता है..
National deworming day
राष्ट्रीय डीवॉर्मिंग डे

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में 1 से लेकर 14 साल के लगभग 241 मिलियन बच्चों में पेट में कीड़े जैसी समस्या देखने में आती है. पेट में कीड़े यानि सॉयल ट्रांसमिटेड हेलमिंथ समस्या के प्रति लोगों को जागरूक करने तथा इस समस्या से निपटारन के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से 10 फरवरी को राष्ट्रीय डीवॉर्मिंग डे मनाया गया. इस अवसर पर विभिन्न जागरूकता अभियान चलाए जाने के साथ ही बच्चों को बड़ी संख्या में डी वार्मिंग की दवाइयां देने के लिए भी अभियान चलाया गया. गौरतलब है की इस दिवस को मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य देशभर के 1 साल से 19 साल तक के बच्चों और युवाओं को सॉयल ट्रांसमिटेड हेलमिंथ, जैसी समस्या से मुक्ति दिलाना है. जिससे वे कुपोषण तथा अन्य स्वास्थ्य संबंधी तथा पोषण संबंधी समस्याओं से बच सकें.

नेशनल डीवॉर्मिंग डे की मुख्य गतिविधियां

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से इस अवसर पर भारत के लगभग 11 राज्यों के 277 जिलों तथा आसाम और छत्तीसगढ़ जैसे यूनियन टेरिटरीज में डी वार्मिंग के लिए अभियान चलाया गया. गौरतलब है कि वर्ष 2016 के उपरांत से अब तक बड़ी संख्या में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को इस योजना के तहत डी वार्मिंग की दवाइयों का लाभ देने का कार्य तीव्र गति से किया जा रहा है, जिसके फलस्वरूप यह अभियान भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न अभियानों में से सबसे सफल अभियानों में गिना जाता हैं. बच्चों में डी वार्मिंग की जरूरत को देखते हुए इस विशेष दिवस को साल में दो बार 10 फरवरी तथा 10 अगस्त को मनाया जाता है.

इन विशेष अवसरों पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तत्वावधान में मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय तथा पंचायती राज, जनजातीय मामलों, ग्रामीण विकास, शहरी विकास मंत्रालयों सहित शहरी स्थानीय निकाय और सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों की नोडल एजेंसी के संयुक्त प्रयासों से विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.

एनडीडी यानी नेशनल डीवॉर्मिंग डे के चरण

एनडीडी के नाम से प्रचलित नेशनल डीवॉर्मिंग डे (प्रथम चरण) के तहत सरकार द्वारा निर्धारित योजनाबद्ध तरीके से देश के उन राज्यों को चयनित किया गया, जहां पेट के कीड़ों का संक्रमण के मामलों की संख्या 20 प्रतिशत से ज्यादा है. इन राज्यों में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर लोगों को पेट में कीड़े होने की समस्या से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के बारे में जागरूक किया गया. साथ ही बच्चों को डी वार्मिंग की दवाइयां भी दी गई. इस अभियान से ज्यादा से ज्यादा लोगों और बच्चों को जोड़ने के लिए स्कूलों तथा कॉलेजों में भी विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया.

क्या है एसटीएच

एसटीएच यानी सॉयल ट्रांसमिटिड हेलमिंथ वह बीमारी है जिसमें संक्रमित पानी या मिट्टी खाने से बच्चों के पेट में कीड़े पैदा होते हैं. ये कीड़े या कृमि जमीन पर नंगे पैर चलने से भी शरीर में फैल सकते हैं. इसके अलावा अधपका भोजन, दूषित पानी, शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी तथा खाना पकाने-खाने के दौरान सफाई ना होने तथा शरीर में स्वच्छता की कमी के कारण पेट में कीड़े की समस्या हो सकती है. इस संक्रमण को फैलाने में मक्खी तथा मच्छर जैसे कीड़े बड़ा योगदान निभाते हैं. यह संक्रमण फैलाने वाले हेलमिंथ यानी कीड़े कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे इंटेस्टाइनल पैरासिटिक वार्म, राउंडवर्म, व्हिपवर्म तथा हुकवर्म. यह सभी कीड़े हमारी आंतों को संक्रमित करते हैं.

पेट में कीड़ों के लक्षण

⦁ लगातार कब्ज की शिकायत रहना या खाना नहीं पचना

⦁ दस्त होना

⦁ खाना खाने के तुरंत बाद मल का आ जाना

⦁ मल में बलगम या खून आना

⦁ सोते समय बच्चे का दांत किटकिटाना

⦁ पेट में दर्द तथा जलन, गैस और सूजन का अनुभव होना

⦁ बवासीर का होना

⦁ बार-बार थकान होना

⦁ अत्यधिक कमजोरी में भी कीड़े हो सकते हैं

⦁ खुजली को जन्म देते हैं

⦁ जीभ का रंग बदलकर सफेद हो जाना

⦁ मुंह से लगातार दुर्गंध आना

पेट के कीड़ों की समस्या से बचाव

⦁ भोजन करने से पहले हाथों को अच्छी प्रकार धोएं.

⦁ खुले में बनने वाला या ठेलों पर मिलने वाला भोजन ना खाएं.

⦁ पीने के लिए साफ जल का प्रयोग करें. नल के पानी को उबाल कर फिर ठण्डा कर के पिएं.

⦁ दूषित एवं बासी भोजन ना खाएं.

⦁ अधिक मीठे एवं डिब्बाबंद पदार्थों का सेवन ना करें.

⦁ अच्छे से पका हुआ एवं स्वच्छ भोजन करें.

⦁ खुले में बनने वाले भोजन की बजाय घर में बना भोजन ही खाएं.

⦁ कच्ची सब्जियां और कच्चे मांस का सेवन ना करें. भोजन को अच्छी प्रकार से पका कर खाएं.

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