नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले कुछ सालों में विदेशों से ट्रेनिंग लेकर लौटे शिक्षकों से रविवार को मुलाकात की. सीएम केजरीवाल ने त्यागराज स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में आयोजित कार्यक्रम में लगभग एक हजार अध्यापकों से बातचीत की. इन शिक्षकों ने सीएम केजरीवाल के साथ अपने ट्रेनिंग के अनुभव को साझा किया और कई और चीजों पर भी चर्चा की.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि विदेशों में ट्रेनिंग लेकर यहां पहुंचे शिक्षकों का अनुभव सुनकर अच्छा लगा. जब हमारी सरकार दिल्ली में बनी तो हमारा एक ही लक्ष्य था कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दें और इसी लक्ष्य के तहत हमने अपने सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपलों और शिक्षकों को अच्छी से अच्छी ट्रेनिंग देने के लिए उन्हें विदेश भेजा, लेकिन इस तरह से शिक्षकों के साथ बातचीत करने का आज पहली बार मौका मिला.
उन्होंने कहा कि आज शिक्षकों में ऊर्जा, आत्मविश्वास देखने को मिला. अगर यह 50 फीसदी भी बच्चों में जा रही होगी तो अपने आप ही सारे स्कूल अच्छे हो जायेंगे. शिक्षक जो खुद को मैनेजर समझते थे, वह अब विदेश में ट्रेनिंग पाकर खुद को लीडर समझ रहे हैं. केजरीवाल ने कहा कि हमारे देश में सालों से एक सामंतवादी सोच चली आ रही है कि सरकारी स्कूलों में तो गरीब बच्चे पढ़ाई करते हैं, इसलिए इन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों को विदेश ट्रेनिंग के लिए क्यों भेजा जाए.
उन्होंने कहा कि मुझे शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने बताया कि पहले ट्रेनिंग के नाम पर सेमिनार होते थे. एक हॉल बुक किया जाता था. हजार शिक्षक बुलाए जाते थे. एक स्पीकर बाहर से आता था और एक दो घंटे की लेक्चर देकर चला जाता था. वह शिक्षकों को कुछ देर के लिए याद रहता था और बाद में सब भूल जाते थे, लेकिन जब आप विदेश जाते हो तो वहां ट्रिनिटी की लैब देखते हो, स्टीफन हॉकिंग का कॉलेज देखते हो तो वह जिंदगी भर का अनुभव एक सेमिनार से नहीं मिल सकता. सेमिनार में ज्ञान तो मिलता है, लेकिन अनुभव नहीं.
8 साल में दो बार विदेश गया हूंः केजरीवाल ने कहा कि शिक्षा मंत्री को जब भी यह जानकारी मिलती है कि उस देश में शिक्षा के क्षेत्र में यह काम हो रहा है तो ट्रेनिंग के लिए वहां वह आप लोगों को भेजते हैं. हम नहीं जाते हैं. मुझे 8 साल हो गए मुख्यमंत्री बने हुए. सिर्फ दो बार ही विदेश गया हूं. उन्होंने कहा कि हमें दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों से सरकारी स्कूल की तुलना नहीं करना है. हमें देश के स्कूलों से करना है. मुझे पता है कि दिल्ली में लाखों की संख्या में छात्र जो प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे, वह अब सरकारी स्कूल में दाखिला ले चुके हैं. उन्होंने कहा कि हमारे आलोचक भी मानते हैं कि दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बदलाव हुए. हम यह नहीं कहते कि सब कुछ अच्छा हुआ, बस निकल पड़े हैं.