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जिसे कभी भारत के राष्ट्रपति ने नवाज़ा…अब जी रहा गुमनाम,गुरबत भरी ज़िदंगी..मिलिए राशिद बेग से..

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Published : Sep 25, 2021, 2:14 PM IST

गाजियाबाद राशिद बेग

कुशल्या गांव में रहने वाले राशिद बेग बचपन से ही और बच्चों के मुकाबले काफी अलग थे. राशिद में पढ़ाई के साथ कुछ अलग करने की ललक थी. मैथमेटिक्स की बड़ी दिमाग चकरा देने वाली कैलकुलेशंस, जिन्हें कैलकुलेटर से करने में वक्त लगता था, उनको भी राशिद चंद सेकेंड में बिना केलकुलेटर की मदद लिये पूरा कर लिया करते हैं. आज वह आर्थिक तंगी में जीने को मजबूर हैं.

नई दिल्ली/गाजियाबादः कुशल्या गांव में रहने वाले राशिद बेग बचपन से ही और बच्चों के मुकाबले काफी अलग थे. राशिद में पढ़ाई के साथ कुछ अलग करने की ललक थी. मैथमेटिक्स की बड़ी दिमाग चकरा देने वाली कैलकुलेशंस, जिन्हें कैलकुलेटर से करने में वक्त लगता था, उनको भी राशिद चंद सेकेंड में बिना केलकुलेटर की मदद लिये पूरा कर लिया करते हैं. कैलकुलेशंस में महारत रखने वाले राशिद ने 2013 में अपना नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज कराया. 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा राशिद बेग को शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए "राष्ट्रीय बाल पुरस्कार 2014" रजत पदक प्रदान किया गया. इतना ही नहीं राशिद बेग को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, फ़िल्म अभिनेत्री ऐश्वर्या राय समेत कई बड़ी हस्तियों द्वारा सम्मानित किया गया.


राशिद बेग जिंदगी में ऊंचाइयों की बुलंदियों को हासिल कर रहे थे. जिंदगी की दौड़ में राशिद के पिता कज़्ज़ाफी उनका ढांढस बढ़ाकर हौसला दे रहे थे. राशिद की कामयाबी की रेलगाड़ी बहुत तेजी के साथ दौड़ रही थी. राशिद की जिंदगी में अचानक ही सब कुछ बदल गया. 2016 में राशिद के पिता कज़्ज़ाफी की मृत्यु हो गई. पिता के गुजर जाने के बाद राशिद को गहरा सदमा लगा. राशिद डिप्रेशन में चले गए. पिता परिवार में अकेले कमाने वाले थे. पिता के जाने के बाद परिवार आर्थिक तंगी के दौर से गुजरने लगा. चंद महीनों बाद राशिद के घर की छत ढह गई. घर के हालात खराब हो चुके थे. मरम्मत कराने के लिए पैसे नहीं थे, तो राशिद बहन और मां को लेकर नानी के घर पर रहने लगे.

गाजियाबाद राशिद बेग
आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के चलते राशिद स्कूल की फीस नहीं जमा कर पाए और स्कूल छूट गया. राशिद जिले के एक प्रतिष्ठित स्कूल से पढ़ाई कर रहे थे. पढ़ने की ललक तो थी लेकिन हालात साथ नहीं दे रहे थे तो ऐसे में प्राइवेट बोर्ड से राशिद ने दसवीं पास की. जिसके बाद सरकारी स्कूल से आगे की पढ़ाई की और बारहवीं का इम्तहान दिया, जिसका परिणाम आना अभी बाकी है.
अखिलेश यादव के साथ राशिद

पिता के चले जाने के बाद राशिद पर घर चलाने की जिम्मेदारी भी आ गई. घर के पास ही पिता की चंद बीघा खेती की जमीन है. परिवार का गुजारा करने के लिए राशिद ने जमीन पर खेती करनी शुरू कर दी, लेकिन आर्थिक हालात के चलते खेती में इस्तेमाल होने वाले ट्रैक्टर कल्टीवेटर आदि खरीदने में या किराए पर लेने में असमर्थ हैं. इस मुश्किल दौर में राशिद का साथ उनके पिता के दोस्त लाला कमल कुमार ने दिया. लाला कमलकुमार कुशल्या गांव में एक सम्मानित व्यक्ति हैं. लाला ने खेती करने के लिए राशिद को ट्रैक्टर आदि मुहैया कराया. मौजूदा समय में राशिद खेती कर कर गुजारा कर रहे हैं.

लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स

राशिद का कहना है की पढ़ने की ललक तो आज भी है, लेकिन हालात कुछ ऐसे हैं कि पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल है. राशिद जब उन तस्वीरों को देखते हैं, जब उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था, तो उनकी आंखों में नमी आ जाती है.

गांव वालों के साथ राशिद

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