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Parivartini Ekadashi 2022 : आज करें भगवान वामन की पूजा, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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Published : Sep 6, 2022, 9:40 AM IST

Parivartini Ekadashi 2022

6 सितंबर यानी मंगलवार को एकादशी व्रत है. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi 2022) के नाम से जानते हैं. इस एकादशी को वामन एकादशी, पार्श्व एकादशी या जयंती एकादशी भी कहते हैं. एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना होती है. परिवर्तिनी एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा होती है.

नई दिल्ली/गाजियाबाद:हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है. हिंदू पंचांग के अंतर्गत प्रत्येक माह की 11वीं तीथि को एकादशी (Ekadashi 2022) कहा जाता है. एकादशी को भगवान विष्णु को समर्पित तिथि माना जाता है. हिन्दी पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi 2022) के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु (God Vishnu) के वामन अवतार की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु योग निद्रा में भाद्रपद शुक्ल एकादशी को करवट बदलते हैं. इस कारण से इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) कहते हैं. इसे वामन एकादशी, पार्श्व एकादशी या जयंती एकादशी भी कहा जाता है.

परिवर्तिनी एकादशी शुभ ​मुहूर्त :हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 6 सितंबर दिन मंगलवार को सुबह 05 बजकर 54 मिनट से होगा. इसका समापन अगले दिन 7 सितंबर दिन बुधवार को प्रात: 03 बजकर 04 मिनट पर होगा. व्रत के लिए उदयातिथि मान्य होती है, ऐसे में परिवर्तनी एकादशी का व्रत 6 सितंबर दिन मंगलवार है.

परिवर्तिनी एकादशी 2022

परिवर्तिनी एकादशी व्रत और पूजा विधि :परिवर्तिनी एकादशी का व्रत और पूजन ब्रह्मा, विष्णु समेत तीनों लोकों की पूजा के समान है. इस पूजा की विधि इस प्रकार है. एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को व्रत से एक दिन पूर्व दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए. प्रातः उठ कर भगवान का ध्यान करें और स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष घी का दीपक जलाएं. भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल और तिल का उपयोग करें. व्रत के दिन अन्न ग्रहण ना करें. शाम को पूजा के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं. व्रत के दिन दूसरों की बुराई करने और झूठ बोलने से बचें. इसके अतिरिक्त चावल और दही का दान करें. एकादशी के अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय के बाद पारण करें और जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा देकर व्रत खोलें.

परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा :महाभारत काल के समय पांडु पुत्र अर्जुन के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी के महत्व का वर्णन सुनाया. भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि "हे अर्जुन अब तुम समस्त पापों का नाश करने वाली परिवर्तनी एकादशी की कथा को ध्यानपूर्वक श्रवण करो. त्रेता युग में बलि नाम का असुर था लेकिन वह अत्यंत दानी, सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था. वह सदैव यज्ञ, तप आदि किया करता था. अपनी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि स्वर्ग में देवराज इंद्र के स्थान पर राज करने लगा. देवराज इंद्र और देवतागण इससे भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास गए. देवताओं ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की. इसके बाद मैंने बामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की."

भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि "वामन रूप लेकर मैं राजा बलि से याचना की कि हे राजन! तुम मुझे तीन पग भूमि दान करोगे, इससे तुम्हें तीनों लोकों के दान का फल प्राप्त होगा. राजा बलि ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और भूमि दान करने के लिए तैयार हो गया. दान का संकल्प करते ही मैंने विराट रूप धारण करके एक पाव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग तथा पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया. तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी शेष नहीं था. इसलिए उन्होंने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान वामन ने तीसरा पैर उसके सिर पर रख दिया. राजा बलि की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया. मैंने राजा बलि से कहा मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा. परिवर्तिनी एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है. इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं.

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