कई बार गिरी, संभली, फिर उठी
न्याय की लड़ाई में वो अटल रही
जिसने अंत तक हार नहीं मानी..
निर्भय होकर 'निर्भया' के लिए न्याय मांगने की
निर्भया की मां के संघर्ष की बात
साल 2012, दिल्ली की वो सर्द रात में हुई घटना ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया था. भले ही घटना को 8 साल पूरे हो चुके हैं, बावजूद इसके जेहन में वो यादें ताजा हैं. बात कर रहें हैं 16 दिसंबर को हुए निर्भया केस की. इस घटना की जानकारी लोगों को मिलते ही लोगों ने विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. लोगों में आक्रोश देखने के बाद लगा कि आरोपियों को सजा जल्द मिलेगी, लेकिन जैसे जैसे समय बीता तो लगा की लोगों का आक्रोश कहीं धूमिल हो गया है. वहीं इन सब के बीच धूंध के पहरे में खिलते सूरज की तरह निखरी निर्भया की मां....वो मां जिसने सब कुछ परे रख कर कोर्ट कचहरी के चक्कर काटे क्योंकि उस मां ने महसूस की थी बेटी की तकलीफ.
आज महिला दिवस के दिन एक बार फिर बताते हैं एक मां के संघर्ष की वो कहानी, जो अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए लड़ी . जिसने हर किसी के दिल और दिमाग पर अमिट छाप छोड़ दी. निर्भया की मां, आशा देवी बताती हैं कि निर्भया 12-13 दिन जिंदा थी, लेकिन ऐसी हालत में थी कि उसे एक चम्मच पानी नहीं दिया जा सकता था. निर्भया को जब होश आया तो उसने पानी मांगा, लेकिन डॉक्टरों ने कहा कि इनका ऐसा कोई सिस्टम नहीं बचा, जिसमें पानी दिया जा सके. इस बात को सोच कर आशा देवी बिलख उठती हैं.
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आशा देवी का कहना है कि आज भी हाथों में पानी लेकर खड़ी रहती हैं और सोचती हैं कि वो अभागे मां-बाप हैं, जिसकी बेटी पानी मांग रही थी, लेकिन हम नहीं दे पाए. यह तड़प आज भी उनके दिल में रहती है. आशा देवी का कहना है कि उनकी बेटी तो उनके साथ नहीं है लेकिन वो हमेशा महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों के लिए अवाज उठाएंगी.