नई दिल्ली: तारीख 15 अगस्त, साल 1947 हमारा महान देश भारत (Azad Hind Fauj) अपने 200 सालों की गुलामी औऱ पराधीनता की जंजीरों से आजाद हुआ. इस स्वतंत्रता के रणपथ पर अग्रसर होने के रास्ते में कई बाधाएं आई, कई कुर्बानियां हुईं, कईयों ने अपनों को खोया, और कई खुद इस स्वाधीनता के हवन में आहुती बन बैठे, लेकिन आखिरी तक जो टिका वो था, हमारे बहादुर देशवासियों के बुलंद हौसले और अटूट हिम्मत.
आज के पॅाडकास्ट (Positive Bharat Podcast Azad Hind Fauj) में इसी अटूट हिम्मत और वीरता का प्रमाण बनती एक ऐसी सेना की कहानी, जिसने अपने खून के बल पर हमारे देश को आजाद मिट्टी की खुशबू सौंपी. आज के पॅाडकास्ट में हम बात करने जा रहे हैं, देश के स्वाधीनता आंदोलन (independence movement Azad Hind Fauj) में अहम भूमिका में रही आजाद हिंद फौज की.
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आजाद हिंद फौज, जब कभी इन तीन शब्दों का जिक्र हमारे कोनों को छुता है, तब हमारी चेतना हमें फिर से उस दौर में ले जाती है, जहां हम हमारे वीरों की शौर्यगाधा गुनगुना लगते हैं.
लेकिन जब कभी आजाद हिंद फौज को याद किया जाता है, तब सबसे पहला नाम नेताजी सुभाषचंद्र बोस (Azad Hind Fauj Commander Subhash Chandra Bose) का लिया जाता है, हम में से कईयों को तो यह भी लगता है कि आजाद हिंद फौज की स्थापना खुद सुभाषचंद्र बोस ने ही की, लेकिन यह बात अर्धसत्य है. दरअसल आज़ाद हिन्द फौज का गठन पहली बार राजा महेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा 29 अक्टूबर 1915 को अफगानिस्तान में किया गया था. मूल रूप से उस वक्त यह आजाद हिन्द सरकार की सेना थी, जिसका लक्ष्य अंग्रेजों से लड़कर भारत को स्वतंत्रता दिलाना था, लेकिन इसके कुछ साल बाद जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने दक्षिण-पूर्वी एशिया में जापान के सहयोग करीब 40,000 भारतीय स्त्री-पुरुषों की प्रशिक्षित सेना का गठन शुरू किया, तब उसका नाम भी आजाद हिन्द फौज दिया गया, जिसके बाद ही उन्हें पूर्व में स्थापित हुई आज़ाद हिन्द फौज का सर्वोच्च कमाण्डर नियुक्त कर उनके हाथों में इसकी कमान सौंप दी. इसके बाद से ही भारत को पूर्ण स्वतंत्र कराने के अपने रवैये को लेकर इस फौज ने जंग-ए-आजादी में महान कृत्य करें, जिन्होंने कई ऐसे ऐतिहासिक किस्सों को जन्म दिया, जो हमारे लिए प्रेरणा स्वरूप बनें.
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