नई दिल्लीः राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत एक लेडी डॉक्टर डॉक्टर अर्चना शर्मा के आत्महत्या का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ है कि नेशनल मेडिकल कमीशन (NATIONAL MEDICAL COMMISSION) के एमबीबीएस पाठ्यक्रम में बदलाव काे लेकर डॉक्टराें में राेष है. एनएमसी ने एमबीबीएस के नए पाठ्यक्रम में थर्ड ईयर में पढ़ाया जाने वाला कम्युनिटी मेडिसिन, जिसमें डॉक्टर को ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर अपनी सेवा देनी होती है को फर्स्ट ईयर में ही शामिल कर दिया है.
बता दें कि डॉ अर्चना शर्मा ऐसे ही काेर्स के तहत राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत थी. एक प्रेग्नेंट महिला की डिलीवरी के दौरान आने वाली मेडिकल कॉम्प्लिकेशन की वजह से मरीज की मौत हो गयी. डॉ शर्मा के खिलाफ धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज किया गया. इससे आहत होकर डॉक्टर शर्मा ने आत्महत्या कर ली. इस मामले काे लेकर पूरे डॉक्टर समुदाय में रोष है. इस बीच एनएमसी द्वारा एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में किए गए बदलाव से पूरे डॉक्टर समुदाय नाराज है. वे इस बदलाव पर राेक की मांग कर रहे हैं.
फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रोहन कृष्ण बताते हैं कि बेहतर डॉक्टर बनाने के उद्देश्य से एनएमसी ने एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में जो बदलाव किया है उसमें कुछ भी नयापन नहीं है. यह पुरानी रेसिपी से ही एक नया डिश बनाने की कोशिश की गई है. इस नए बदलाव से छात्रों को फायदा होने के बजाय नुकसान होने वाला है. पुराने पाठ्यक्रम में जिस कम्युनिटी मेडिसिन को थर्ड ईयर में पढ़ाया जाता था, उसे अब एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू करने के साथ ही फर्स्ट ईयर से ही पाठ्यक्रम में शामिल कर दिया गया है. जो छात्र अभी तक केवल किताबों की दुनिया में रहा है, प्रैक्टिकल अनुभव प्राप्त नहीं किया है उसे अगर सीधे सामुदायिक स्वास्थ्य के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर अपनी सेवा देनी पड़े तो वह कितना न्याय कर सकता है. इन छात्रों से गलतियां होने की आशंका बनी रहेगी. इनकी गलतियों की वजह से अगर किसी मरीज के साथ कुछ गलत हो जाय तो उनके साथ डॉ अर्चना शर्मा जैसा व्यवहार किया जा सकता है.
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