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AIDS DAY : कभी मौत का दूसरा नाम हुआ करता था एड्स, आज यह सिर्फ एक बीमारी है

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 30, 2023, 2:42 PM IST

Updated : Nov 30, 2023, 8:49 PM IST

महामारी के रूप में दुनिया में फैल चुके एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसिएंसी सिंड्रोम) के खतरे के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है. यह ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) के कारण होता है. पढ़ें पूरी खबर..Zero AIDS Patient, World AIDS Day 2023, Human Immunodeficiency Virus, Acquired Immunodeficiency Syndrome, Sellappan Nirmala, Suniti Solomon.

World AIDS Day 2023
विश्व एड्स दिवस

हैदराबाद :विश्व एड्स दिवस हर साल एक दिसंबर को मनाया जाता है. इस दौरान प्रयोग किये जाने वाले रेड रिबन साइन एड्स के बारे में जागरूकता का प्रतीक है. यह दिवस दुनिया भर के एचआईवी पीड़ितों और प्रभावित लोगों का समर्थन करने और इस बीमारी से जान गंवाने वालों के प्रति एकजुट होने के लिए समर्पित है. यह दिन कोई सामान्य उत्सव नहीं है. विश्व एड्स दिवस पर पीड़ित समुदायों को उनके लीडरशिप क्वालिटी को सक्षम बनाने और सपोर्ट करने के लिए अपील करता है ताकि इस रोग का उन्मूलन किया जा सके.

एचआईवी (Human Immunodeficiency Virus-HIV) संक्रमण के कारण एड्स (Acquired Immunodeficiency Syndrome-AIDS) होता है. इसी वायरस की पहचान के कारण एड्स के बारे में पता चल पाया था. वहीं एड्स के साथ जीवन जीने वालों को मेडिकल टर्म में पीएलएचआईवी (PLHIV-People Living with HIV) कहा जाता है. एसटीआई (STI Sexually Transmitted Infections) का उपयोग यौन संबंध के दौरान हुए संक्रमण के लिए किया जाता है.

एचआईवी के दो चरण होते हैं-(1) Acute HIV Infection (2) Chronic HIV Infection

देश में महज 21.6 फीसदी महिलाओं को है एड्स के बारे में जानकारी
भारत सरकार व कई अन्य एजेंसियों की मदद से समय-समय पर नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे किया जाता है. 15-49 साल के लोगों के बीच सर्वे के अनुसार 2015-16 में NFHS-4 के सर्वे के दौरान जहां 20.9 फीसदी महिलाओं को एड्स के बारे में जानकारी होती थी. वहीं 2019-21 (NFHS-5 सर्वे) में 21.6 फीसदी महिलाओं को इसके बारे में जानकारी है. वहीं अगर पुरूषों की बात करें तो NFHS-4 के सर्वे के समय 32.5 फीसदी की तुलना में NFHS-5 के सर्वे में महज 30.7 फीसदी पुरूषों में एड्स के बारे में जानकारी है.

महिला और पुरुषओं में कोंडोम के कारण एड्स से बचाव के बारे में जानकारी का अनुपात बढ़ा है. पहले जहां 54.9 फीसदी महिलाओं को इसके बारे में पता था. वहीं ताजा सर्वे में यह आंकड़ा 68.4 है. वहीं पहले पुरूषों 77.4 फीसदी पुरूषों को इसके बारे में पता था. वहीं अब यह आंकड़ा 82.0 फीसदी है.

जागरूकता, जांच व इलाज से घट रहे हैं मौतें के आंकड़े
एड्स के बारे में जागरूकता, जांच व इलाज से मौतों की संख्या में सालाना कमी देखी जा रही है. यूएनएड्स के डेटा के अनुसार साल 2004 में एड्स से होने वाली मौतें अपने चरम पर थी, जिसके बाद से अब यह 69 फीसदी कम हुई है. वहीं 2010 से अब तक इन मौतों में 51 फीसदी की कमी आई है. 2004 में एड्स से संबंधित मौतों की संख्या चरम पर पहुंच चुका था. उस समय यह 69 फीसदी के करीब था. 2010 के बाद से एड्स से होने वाली मौतों की संख्या में 51 फीसदी रह गया है. 2004 में एड्स से 2.0 मिलियन (200 करोड़) लोगों की तुलना में 2010 में 1.3 मिलियन (0.13 करोड़) लोग मारे गये थे.2010 के बाद से महिलाओं व लड़कियों में एड्स से होने वाली मृत्यु दर में 55 फीसदी और पुरुषों व लड़कों में 47 फीसदी की गिरावट आई है. 2022 में लगभग 6 लाख 30 हजार लोग एड्स से संबंधित बीमारियों से मर गए.

संकेत एवं लक्षण
एड्स के लक्षण प्रतिरक्षा प्रणाली के खराब होने और CD4+T कोशिकाएं का नुकसान होता है. ये मुख्यरूप से शरीर में प्रतिरक्षण का काम करता है. जैसे ही शरीर में एचआईवी वायरस पहुंच जाता है. यह सीधे तौर पर शरीर के प्रतिरक्षण प्रणाली को नष्ट कर देता है. इसका असर शरीर में कई मेडिकल संबंधी समस्याओं के रूप में दिखता है.इसके कुछ सामान्य लक्षणों में मुख्य ये हैं

  1. निमोनिया होना
  2. सूखी खांसी होना
  3. तेजी से वजन कम होना
  4. बिना कारण के थकान होना
  5. कमर या गर्दन में सूजी हुई लसीका ग्रंथियां
  6. दस्त जो एक सप्ताह से अधिक समय तक रहता है.
  7. याददाश्त, अवसाद और तंत्रिका संबंधी समस्याएं होना
  8. बार-बार बुखार आना या रात में अत्यधिक पसीना आना
  9. जीभ, मुंह या गले पर सफेद धब्बे या असामान्य धब्बे होना
  10. त्वचा पर या उसके नीचे या मुंह, नाक या पलकों के अंदर लाल, भूरे, गुलाबी या बैंगनी रंग के धब्बे

भारत में एड्स की स्थिति

प्रमुख आंकड़े: 2021

  1. 2.4 मिलियन लोग एचआईवी से पीड़ित हैं
  2. 0.2 फीसदी वयस्क एचआईवी प्रसार
  3. 63,000 नए एचआईवी संक्रमण
  4. 42,000 एड्स से संबंधित मौतें
  5. एचआईवी से पीड़ित 65 फीसदी लोग एंटीरेट्रोवाइरल उपचार ले रहे हैं

UNAIDS की ओर से फैक्ट शीट 2023 जारी किया था. डेटा के अनुसार

ग्लोबल एचआईवी एक नजर में

  1. 2022 में वैश्विक स्तर पर 39 मिलियन लोग एचआईवी के साथ जी रहे थे.
  2. 37.5 मिलियन से अधिक वयस्क (15 वर्ष या अधिक) हैं.
  3. 1.5 मिलियन से अधिक बच्चे (0-14 वर्ष)
  4. एचआईवी से पीड़ित आबादी में से 53 फीसदी महिलाएं और लड़कियां थीं.
  5. 2022 में 1.3 मिलियन नए लोग एचआईवी से संक्रमित हुए.
  6. 2022 में एड्स से संबंधित बीमारियों से 6 लाख 30 हजार के करीब लोगों की मृत्यु हो गई.
  7. 2022 में 29.8 मिलियन लोग एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी का उपयोग कर रहे थे.
  8. महामारी की शुरुआत के बाद से 85.6 मिलियन से ज्यादा लोग एचआईवी से संक्रमित हो चुके हैं.
  9. वहीं 40.4 मिलियन से ज्यादा लोग एड्स से संबंधित बीमारियों से मर चुके हैं

एचआईवी के नए संक्रमण के मामले

  1. 1995 में चरम पर पहुंचने के बाद से नए एचआईवी संक्रमण के मामलों में 59 फीसदी की कमी आई है.
  2. 1995 में 3.2 मिलियन नये लोग एचआईवी से नए संक्रमित हुए थे. वहीं इसके अनुपात में 2022 में 1.3 मिलियन नये लोग ही संक्रमित हुए.
  3. 2022 में नए संक्रमितों में से 46 फीसदी महिलाएं और लड़कियां थीं.
  4. 2010 के बाद से नए एचआईवी संक्रमितों की संख्या में 38 फीसदी (2.1 मिलियन ) की गिरावट आई है.
  5. 2010 के बाद से बच्चों में नए एचआईवी संक्रमितों की संख्या में 58 फीसदि ( 3.10 लाख) की गिरावट आई है.

एड्स से संबंधित मौतें

  1. 2004 में एड्स से संबंधित मौतों की संख्या चरम पर पहुंच गई थी. उस समय की तुलना में आज इसमें 69 फीसदी की कमी हुई है.
  2. 2010 के बाद से एड्स से संबंधित मौतों की संख्या में 51 फीसदी की कमी आई है.
  3. 2022 में लगभग 6 लाख 30 हजार लोग एड्स से संबंधित बीमारियों से मर गए.
  4. 2004 में 2.0 मिलियन लोगों की तुलना में 2010 में 1.3 मिलियन लोग मारे गये थे.
  5. 2010 के बाद से महिलाओं व लड़कियों में एड्स से होने वाली मृत्यु दर में 55 फीसदी और पुरुषों व लड़कों में 47 फीसदी की गिरावट आई है.

पहले सालाना प्रति मरीज आता था एक लाख खर्च

  1. एचआईवी मरीजों रोजाना नियमित तौर पर दवा खाना अनिवार्य है. अगर किसी कारण से दवा का डोज बाधित होता है एचआईवी का संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा टीबी सहित अन्य रोगों का खतरा बढ़ जाता है.
  2. एचआईवी के दवाईयां पहले काफी महंगी थी. एक साल के लिए एचआईवी मरीजों के दवाई का खर्च एक लाख के करीब आता था. जेनरिक वर्जन और कई अन्य कारणों से एचआईवी डोज की सालाना कीमत 35 हजार रह गया है.
  3. 2004 से फ्री में एचआईवी मरीजों के लिए एंटी रेट्रोवायरल डोज फ्री में उपलब्ध कराया जा रहा है. इससे मरीजों पर आर्थिक भार कम पड़ रहा है. साथ ही इससे सालाना होने वाली मौतें की संख्या में गिरावट आने का अनुमान है.

जानिए कैसे एचआईवी का हुआ था जन्म
एचाईवी के बारे में 1980 के दशक में खबरें पूरी दुनिया पहुंच चुका था. एड्स की उत्पति स्थल डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो की राजधानी किन्शासा शहर माना जाता है. 1980 के आसपास बीमारी के बारे में पूरी दुनिया को पता चल चुका था. वैज्ञानिक शोध के आधार पर साइंस जरनल में छपी रिपोर्ट के अनुसार यह रोग मेडिकल जांच में पता चलने से करीबन 30 पहले ही मनुष्यों में पहुंच चुका था. वैज्ञानिकों के अनुसार यह एचआईवी चिंपैजी वायरस का परिवर्तित रूप है, जिसे सिमियन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस के नाम से जाना जाता है. किन्शासा शहर बुशमीट (जंगली पशुओं का मीट बाजार) का बड़ा बाजार है. माना जा रहा है कि यहां से पहली बार पीड़ित पशु से खून से यह इंसानों में पहुंचा (Zero AIDS Patient) . उन दिनों इस इलाके का विकास हो रहा था. इस दौरान बड़ी संख्या में बाहरी पुरूष यहां आते-जाते थे. असुरक्षित सेक्स और संक्रमित सुई से इसका प्रसार काफी तेजी से हुआ.

भारत में कैसे हुआ एड्स का खुलासा

  1. 1982 में मद्रास मेडिकल कॉलेज में सेलप्पन निर्मला (Sellappan Nirmala) माइक्रोबायोलॉजी की पढ़ाई कर रही थीं. उन्होंने अपने शोध के लिए विषय निर्धारण के लिए टॉपिक चुनने में परेशानी हो रही थी. इस पर उन्होंने अपनी टीचर/गाइड सुनीति सोलोमन (Suniti Solomon) से मार्गदशन मांगा. उन्होंने सेलप्पन निर्मला को एड्स पर फिल्ड रिसर्च का सुझाव दिया.
  2. सेलप्पन निर्मला ने मुंबई में सैकड़ों लोगों के सैंपल को जमा किया. लैब जांच सभी सैंपल का रिपोर्ट निगेटिव रहा. सेलप्पन ने अपने गाइड को इस बारे में जानकारी दी. उन्होंने फिर से प्रयास का सुझाव दिया.
  3. सेलप्पन 200 सैंपल जमा करने का लक्ष्य रखा. अब चुनौती थी चैन्नई में ऐसे संभावित लोगों और इलाके की तलाश करना जहां इस बीमारी के होने अनुमान हो. चैन्नई में सेक्स वर्कर्स का कोई खास इलाका निर्धारित नहीं था. इसके बाद उन्होंने अपने शोध के लिए मद्रास के एक अस्पताल को चुना. वहां आने वाले मरीजों से दोस्ती कर कुछ लोगों को बिना कारण बताए सैंपल जमा किया गया. मुश्कलि से 80 के करीब सैंपस जमा हुआ.
  4. उन दिनों एलिजा टेस्टिंग की सुविधा पास में सिर्फ सीएमसी भेलोर में. सेलप्पन ने अपने डॉक्टर पति की मदद से जांच के लिए वहां पहुंची. जांच हुआ तो 6 सैंपल में एचआईवी की पुष्टि हुई. मामला गंभीर होने के कारण इस बात को गोपनीय रखा गया. जिनके सैंपल में एचआईवी की पुष्टि हुई, दुबारा उनका सैंपल जमा किया गया. नये सैंपल को लेकर सेलप्पन निर्मला के पति अमेरिका गये.
  5. अमेरिका में भी जांच में एचआईवी संक्रमण की पुष्टि के बाद इसकी जानकारी आईसीएमआर (Indian Council of Medical Research-ICMR) को दी गई. आइसीएमआर की ओर से इस बारे में तत्कालीन पीएम राजीव गांधी को 1995 में अवगत कराया गया. इसके बाद तमिलनाडु के हेल्थ मिनिस्टर को जानकारी दी गई. जानकारी फैलते ही स्वास्थ्य विभाग में चैन्नई से लेकर दिल्ली तक हंगामा खड़ा हो गया. भारत में एचआईवी की पुष्टि होने में कई साल लग गये. इसके बाद 1987 में सेलप्पन निर्मला का एचआईवी पर 'सर्विलांस ऑफ एड्स इन तमिलनाडु' ('Surveillance of AIDS in Tamil Nadu') प्रकाशित हुआ.
Last Updated : Nov 30, 2023, 8:49 PM IST

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