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Explainer : जाने क्यों चढ़ता ही जाएगा महंगाई का पारा

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Published : Mar 15, 2022, 5:01 PM IST

थोक मूल्य सूचकांक (wholesale price index) (WPI) के रूप में मापी गई भारत की थोक कीमतों में पिछले साल के इसी महीने की कीमतों की तुलना में इस साल फरवरी में 13% से ज्यादा की वृद्धि हुई. यह लगातार ग्यारहवां महीना है (The Eleventh Straight Month) जब थोक कीमतों में साल-दर-साल वृद्धि दोहरे अंकों में है. क्या है जो इस उच्च मुद्रास्फीति को बढ़ावा दे रहा है? क्या यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी और कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि है या यह कोई और कारण हैं जो इस उच्च मुद्रास्फीति के पीछे हैं. भविष्य में यह किस ओर जा रहा है...

wholesale price index
थोक मूल्य सूचकांक

इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (India Ratings and Research) में प्रधान अर्थशास्त्री और सार्वजनिक वित्त निदेशक सुनील सिन्हा (Principal Economist and Director of Public Finance) के अनुसार, WPI मुद्रास्फीति के बढ़ने का वास्तविक कारण प्राथमिक और विनिर्माण मुद्रास्फीति में तेजी आने में निहित है. उन्होंने कहा कि फरवरी 2022 में प्राथमिक मुद्रास्फीति ( Primary Inflation) 13.4% पर आ गई और यह लगातार तीसरा महीना है जिसमें यह 13% से अधिक रहा है. फरवरी 2022 में विनिर्माण मुद्रास्फीति (Manufacturing Inflation) बढ़कर 9.8% हो गई, जो जनवरी 2022 में 9.4% थी.

प्राथमिक वस्तुओं (Primary Articles) में मूल रूप से भोजन, फल, सब्जियां, अनाज और कुछ अन्य गैर-खाद्य पदार्थ जैसे तिलहन, खनिज, कच्चे और प्राकृतिक गैस शामिल हैं, इनकी थोक मूल्य सूचकांक में 22.6% हिस्सेदारी है. प्राथमिक वस्तुओं के तहत, खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति इस साल जनवरी में 23 महीने के उच्च स्तर 10.33% पर पहुंचने के बाद फरवरी में 8.19% पर आ गई. फलों और सब्जियों की मुद्रास्फीति जनवरी के 27.61% से फरवरी में 19.69% पर आ गई. यह मुख्य रूप से मंडियों में ताजा स्टॉक आने के कारण हुआ. हालांकि फलों और सब्जियों की मुद्रास्फीति अभी भी उच्च स्तर 19.69% पर है, जो पिछले साल फरवरी में उनके थोक मूल्यों की तुलना में लगभग 20% अधिक है. दूसरी ओर, अनाज की मुद्रास्फीति फरवरी में बढ़कर 6% से अधिक हो गई जो कि 25 महीने का उच्च स्तर है.

खाद्य तेल : मौसम और वैश्विक राजनीति दोनों की मार
खाद्य तेलों (Wholesale Price of Edible Oils) की थोक कीमतें बढ़ रही हैं. पिछले साल मई में गिरावट का एक रुख दिखाने के बाद फरवरी में यह बढ़कर 14.9% हो गईं. सिन्हा का कहना है कि तीन कारणों से आपूर्ति बाधित होने की वजह से निकट भविष्य में खाद्य तेलों के ऊंचे स्तर पर रहने की उम्मीद है. सबसे पहला, पाम ऑयल के एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता इंडोनेशिया ने निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है. दूसरा, एक अन्य प्रमुख आपूर्तिकर्ता ब्राजील में शुष्क मौसम की स्थिति के कारण आपूर्ति बाधित हुई है. और अब रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आपूर्ति में व्यवधान खाद्य तेलों की थोक कीमतों को ऊंचे स्तर पर रखेगा.

पढ़ें : जानिए भारत में थोक मूल्य क्यों अधिक हैं और भविष्य में क्या होगा प्रभाव

कोर मुद्रास्फीति सख्त
आर्थिक सलाहकार के कार्यालय जो WPI डेटा जारी करने के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत नोडल एजेंसी है के अनुसार इस साल फरवरी, 2022 में मुद्रास्फीति बढ़ने की प्रमुख वजह खनिज तेलों, मूल धातुओं, रसायनों और रासायनिक उत्पादों, कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस और गैर-खाद्य वस्तुओं आदि की कीमतों में वृद्धि है. सुनील सिन्हा का कहना है कि ईंधन की उच्च कीमतों के कारण निर्माताओं के मार्जिन पर दबाव पड़ा है, जिससे वे उस बढ़ती इनपुट लागत को अपने उत्पादन की कीमतों पर डाल रहे हैं. सिन्हा का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के रूप में, कोर मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर रहने की उम्मीद है, या तो उच्च एकल अंक में या दोहरे अंकों में है, जो कि 7 मार्च को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में 129.51 डॉलर प्रति बैरल पर थी. निकट भविष्य में ऊर्जा की कीमतों, रसद और परिवहन लागत को उच्च रखने की उम्मीद है.

WPI और CPI मुद्रास्फीति के बीच अंतर
नीतिगत साधन न होने के बावजूद थोक मूल्य सूचकांक में उछाल चिंता का विषय है. जबकि अधिक व्यापक रूप से ट्रैक की जाने वाली उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति को सरकार के नीति उपकरण के रूप में भी माना जाता है. इसमें उस कीमत को देखता है जिस पर उपभोक्ता सामान खरीदता है. वहीं थोक मूल्य सूचकांक (WPI) थोक, या फैक्ट्री गेट/मंडी स्तरों पर कीमतों को ट्रैक करता है. थोक मूल्य सूचकांक (WPI) अनिवार्य रूप से केवल परिवहन लागत, करों और खुदरा मार्जिन आदि से रहित मूल कीमतों को ट्रैक करता है. आसान शब्दों में कहें तो WPI केवल वस्तुओं से संबंधित है, सेवाओं से नहीं. इसलिए, WPI मूल रूप से माल के थोक मूल्यों की औसत गति को पकड़ लेता है और मुख्य रूप से जीडीपी डिफ्लेटर (GDP Deflator) के रूप में उपयोग किया जाता है. अर्थशास्त्र में, जीडीपी डिफ्लेटर का आशय होता है एक वर्ष में एक अर्थव्यवस्था में सभी नए, घरेलू रूप से उत्पादित, अंतिम वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों के स्तर का आकलन है.

पढ़ें : फरवरी में बढ़ी कच्चा तेल और गैर-खाद्य वस्तुओं की कीमत, थोक महंगाई दर 13.11 फीसदी तक पहुंची

ऐसे बढ़ रही है महंगाई
फरवरी 2022 में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) मुद्रास्फीति बढ़कर 13.11 फीसदी पर पहुंच गई
जनवरी 2022 में WPI 12.96 प्रतिशत थी, जबकि पिछले वर्ष फरवरी में यह 4.83 फीसदी थी

खाद्य वस्तुओं के दामों में आई नरमी, कच्चे तेल और गैर-खाद्य वस्तुओं (Non-Food Items) के दामों में तेजी
- फरवरी 2022 में खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति कम होकर 8.19 फीसदी पर आ गई जो जनवरी में 10.33 प्रतिशत थी
- फरवरी 2022 में सब्जियों की मुद्रास्फीति 26.93 फीसदी रही जो जनवरी 2022 में 38.45 प्रतिशत पर पहुंच गई थी
- फरवरी 2022 में विनिर्मित वस्तुओं की मुद्रास्फीति 9.84 फीसदी रही जो जनवरी में 9.42 प्रतिशत थी
- फरवरी 2022 में ईंधन और ऊर्जा खंड में मुद्रास्फीति 31.50 प्रतिशत रही
- फरवरी 2022 में कच्चे पेट्रोलियम में मुद्रास्फीति बढ़कर 55.17 फीसदी हो गई जो जनवरी में 39.41 फीसदी थी
- फरवरी 2022 में अंडा, मांस और मछली में मुद्रास्फीति 8.41 प्रतिशत रही
- फरवरी 2022 में प्याज के दाम 26.37 प्रतिशत तक कम हुए जबकि आलू के दाम 14.78 प्रतिशत बढ़ गए

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