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पर्यावरण बचाने में जुटे साधक समर्थ दादा गुरु, 35 महीने से सिर्फ नर्मदा के जल पर आश्रित, 2.5 लाख किमी की कर चुके पदयात्रा

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 9, 2023, 10:23 PM IST

Updated : Sep 9, 2023, 10:31 PM IST

Samarth Dada Guru Narmada Mission: नर्मदा का अस्तित्व बचाने के लिए साधक समर्थ दादा गुरु 35 महीने से व्रत कर रहे हैं, जो सिर्फ नर्मदा के जल पर आश्रित हैं. अब तक समर्थ दादा गुरु ढाई लाख किमी की पदयात्रा कर चुके हैं.

samarth dada guru
समर्थ दादा गुरु

पर्यावरण बचाने में जुटे साधक समर्थ दादा गुरु

सागर। पर्यावरण और मां नर्मदा के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले समर्थ दादा गुरु पिछले 3 साल से सिर्फ नर्मदा जल पर निर्भर है, लेकिन उनके चेहरे का तेज और आभामंडल देखकर शायद ही आपको विश्वास हो. महायोगी समर्थ दादा गुरु ने धर्म के जरिए समाज को जोड़कर प्रकृति और मां नर्मदा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है, नर्मदा मिशन के जरिए समर्थ दादा गुरु नर्मदा की अविरल धारा के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, तो प्रकृति के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए दिन-रात यात्राएं कर रहे हैं. महायोगी के कठोर व्रत को लेकर लोगों को विश्वास नहीं होता है, इसलिए दादा गुरु अक्टूबर माह में दिल्ली से मथुरा तक पदयात्रा करेंगे, जो करीब 7 दिन में पूरी होगी.

फिलहाल पहली बार सागर पहुंचे समर्थ दादा गुरु ने बताया कि "व्रत के जरिए हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि जो भी माटी और प्रकृति के नजदीक है, वही बेहतर और सुरक्षित है." खास बात ये है कि केवल नर्मदा जल पर निर्भर रहकर समर्थ दादा गुरु देश की करीब ढाई लाख किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं, 3200 किलोमीटर की मां नर्मदा की परिक्रमा कर चुके हैं और तीन बार रक्तदान भी कर चुके हैं. (Samarth Dada Guru)

समर्थ दादा गुरु की कठिन तपस्या:आमतौर पर देखने मिलता है कि धर्म और आध्यात्म्य से जुड़े साधु संत आम लोगों को सदमार्ग पर चलने और धर्म के महत्व को समझाते नजर आते हैं, लेकिन भारतीय योग परंपरा के साधक समर्थ दादा गुरु ने धर्म के जरिए समाज को जोड़कर प्रकृति और नदियों के संरक्षण का कठिन संकल्प लिया है. समर्थ दादा गुरु 35 महीने से केवल नर्मदा जल पी रहे हैं और प्रकृति और मां नर्मदा की सेवा में जुटे हैं. पर्यावरण और मां नर्मदा के लिए समर्पित समर्थ दादा गुरु सात रिकॉर्ड भी बनाए हैं, जिनमें देशभर में नदियों के प्रति जन जागरण के लिए करीब ढाई लाख किलोमीटर की निराहार रहते हुए यात्रा का रिकॉर्ड दर्ज हैं, तो निराहार ही मां नर्मदा के जल पर निर्भर रहते हुए मां नर्मदा की परिक्रमा का रिकॉर्ड भी दर्ज है. वहीं वे केवल पानी पीकर तीन बार रक्तदान कर चिकित्सा जगत के लिए भी कोतूहल का विषय बन चुके हैं.

अक्टूबर में दिल्ली से मथुरा तक करेंगे पदयात्रा:समर्थ दादा गुरु के कठिन व्रत पर लोगों को आसानी से विश्वास नहीं होता है, समर्थ दादा गुरु कार्तिक पूर्णिमा (27 नवम्बर) से फिर नर्मदा परिक्रमा शुरू करने जा रहे हैं. जब ये जानकारी दिल्ली में मीडिया के समक्ष रखी, तो वहां मौजूद पत्रकारों को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने कहा कि जब आप नर्मदा परिक्रमा शुरू करें, तो हम लोगों को बुलाएं. हम दो दिन आपके साथ रहकर देखना चाहते हैं कि कैसे आप सिर्फ नर्मदा जल पर निर्भर रहकर एक दिन में 25 किमी पैदल चल लेते हैं. इस बात पर समर्थ दादा गुरु ने कहा कि "नवंबर तक का समय तो बहुत हो जाएगा, अगर आप सत्य जानना चाहते हैं, तो मैं अक्टूबर माह की पहले हफ्ते में दिल्ली से मथुरा तक 7 दिनों की पदयात्रा करूंगा. दो दिन किसी को समझने के लिए कम होते हैं, आप लोगों को मुझे समझने के लिए 7 दिन मिलेंगे."

नौरादेही अभ्यारण्य देश की प्राण शक्ति:सागर के स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय में नर्मदा एक चिंतन विषय पर संवाद करने पहुंचे समर्थ दादा गुरु ने नौरादेही अभयारण्य को सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि राष्ट्र की धरोहर बताया और कहा कि "नौरादेहीही अभ्यारण्य अपने आप में असाधारण है. नौरादेही अभ्यारण्य एक तरफ नर्मदा नदी का जल संग्रहण क्षेत्र है, तो दूसरी तरफ गंगा और यमुना का भी जल संग्रहण क्षेत्र है. मतलब एक ही स्थान पर गंगा मैया, यमुना मैया और नर्मदा मैया का एहसास होता है. नौरादेही अभयारण्य राष्ट्र को प्राण शक्ति देने का काम करता है, जिस तरह हमारे शरीर में फेफड़ों की भूमिका है, उसी तरह हमारे राष्ट्र के लिए नौरादेही अभयारण्य की भूमिका है."

इन खबरों पर भी एक नजर:

दुनिया को प्रकृति का महत्व बताने लिया कठिन संकल्प:निराहार रहते हुए मां नर्मदा जल पर निर्भर समर्थ दादा गुरु अपने कठोर व्रत को लेकर कहते हैं कि "हम गुरुओं और संत का जीवन साधना पर निर्भर हैं, मैंने जो व्रत लिया है ये दुनिया के लिए कठोर हो सकता है, लेकिन हमारे लिए आनंद का विषय है. हम सागर में काफी समय से हैं, आप देख रहे हैं कितने आनंद से बैठे हैं. हमें किसी तरह की थकान नहीं है, ना ही किसी प्रकार की कमजोरी है. हम व्रत के माध्यम से दुनिया को बताना चाहते हैं कि जो माटी और प्रकृति के समीप है, वही सुरक्षित और बेहतर जीवन है."

हमारा धर्म संस्कृति सब कुछ प्रकृति पर केंद्रित:समर्थ दादा गुरु कहते हैं कि "हमारे जीवन शैली और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण बुंदेलखंड ही नहीं, निमाड़, मालवा, महाकौशल हर जगह धीरे-धीरे मिट्टी खत्म हो रही है. हमारा धर्म हमारी संस्कृति सब कुछ प्रकृति पर केंद्रित है, धर्म धरा से अलग नहीं है. जिसको हम सनातन संस्कृति बोलते हैं, वह प्रकृति और गंगा नर्मदा पर केंद्रित है. सिर्फ धर्म आधारित नहीं है, हमारे जीवन हमारी व्यवस्था हमारा विकास सब कुछ धरा, नदी और अभयारण्य पर केंद्रित है, इसे अलग से नहीं जोड़ना चाहिए. हमारे जीवन और धर्म का अस्तित्व है, माटी को पानी से अलग नहीं देखा जा सकता है."

Last Updated : Sep 9, 2023, 10:31 PM IST

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