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आखिर सिद्धू ने पलट ही दिया कैप्टन का तख्त, कभी अमरिंदर सिंह ने डिप्टी सीएम बनाने से किया था इनकार

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Published : Sep 18, 2021, 5:56 PM IST

amrinder singh resigned navjot singh sidhu
amrinder singh resigned navjot singh sidhu

नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब में आखिर पटियाला के राजा कैप्टन अमरिंदर सिंह का तख्ता पलट ही दिया. साढ़े चार साल पहले 2017 में सिद्धू ने डिप्टी सीएम नहीं बनाने पर कैप्टन के खिलाफ अपनी जंग छेड़ी थी, इसका नतीजा यह रहा कि अमरिंदर सिंह अपनी दूसरी पारी में कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. 1965 की लड़ाई में पाकिस्तान को मोर्च पर धूल चटाने वाले कैप्टन अपने ही पार्टी में बीजेपी से आए नेता से हार गए. 18 सितंबर को उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया.

हैदराबाद : कांग्रेस ने आजाद भारत के पंजाब को 13 मुख्यमंत्री दिए. अमरिंदर सिंह (Chief Minister Captain Amarinder Singh) के इस्तीफे के बाद 14वें कांग्रेसी 6 महीने के लिए सूबे की कमान संभालेंगे. 18 सितंबर को कांग्रेस आलाकमान ने कैप्टन से इस्तीफा मांग लिया. 40 विधायकों ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाने की मांग की थी.

शुक्रवार रात ही हाईकमान ने लिख दी विदाई की स्क्रिप्ट :बताया जाता है कि हाईकमान ने शुक्रवार रात आनन-फानन में बैठक की तारीख और समय फिक्स कर दिया. पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने शुक्रवार की रात करीब 11 बजकर 42 मिनट पर ट्वीट किया और सीएलपी की बैठक बुला ली. हरीश रावत भी फौरी तौर पर चंडीगढ़ भेजे गए. जब पार्टी ने पर्यवेक्षक के तौर पर अजय माकन और हरीश चौधरी को भी मीटिंग में शामिल होने का आदेश दिया, तब यह तय हो गया कि अमरिंदर सिंह को गद्दी छोड़नी पड़ेगी. उन्हें विधायक दल की बैठक से पहले इस्तीफा देने को कहा गया था. विधायक दल की बैठक में नए नेता का चुनाव के लिए बुलाई गई थी. कैप्टन अमरिंदर सिंह के विदाई की तैयारी नवजोत सिंह सिद्धू ने उसी दिन शुरू कर दी थी, जब 22 जुलाई वह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने थे. हालांकि सिद्धू और कैप्टन के बीच मतभेद विधानसभा चुनाव के बाद ही सामने आए थे.

कांग्रेस के पंजाब प्रभारी अमरिंदर सिंह के करीबी माने जाते हैं मगर इस बार सिद्धू की बगावत के बाद उन्होंने भी हाईकमान का सहारा लिया.

2017 में ही शुरू हुई थी सिद्धू और कैप्टन में खटपट : 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस का दामन थामा था. बताया जाता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में अमृतसर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, मगर बीजेपी ने अरुण जेटली को उम्मीदवार बना दिया. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनी तो सिद्धू राहुल और प्रियंका के करीबियों में शुमार हो गए. वह अमरिंदर की सरकार में पर्यटन और नगर निकाय के मंत्री बने. यही से अमरिंदर और सिद्धू में खटपट शुरू हुई.

कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तल्खी 2017 में ही शुरू हो गई थी

टीवी शोज और बाजवा के मुद्दे पर हुई थी सिद्धू की किरकिरी : बताया जाता है कि बतौर मुख्यमंत्री कैप्टन अपने मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के कामकाज के तरीके से नाखुश थे. उधर, सिद्धू भी वादे के मुताबिक डिप्टी सीएम नहीं बनाने से नाराज हो गए. टीवी शोज में सिद्धू की खिंचाई शुरू हुई तो कैप्टन ने उनका विभाग बदल दिया. इसके बाद तो सिद्धू ने अमरिंदर सिंह को चुनौती देना शुरू कर दिया. जब पाकिस्तानी सेना प्रमुख बाजवा से मुलाकात के बाद सिद्धू की आलोचना शुरू हुई तो अमरिंदर समर्थकों ने भी सिद्धू की घेराबंदी कर दी. 20 जुलाई 2019 को सिद्धू ने अमरिंदर सिंह के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद तो हमेशा वह अपनी ही सरकार की आलोचना करते रहे.

नवजोत सिंह सिद्धू के पिता अमरिंदर को लाए राजनीति में : जब सिद्धू प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे, तब उनके स्वागत में आयोजित समारोह में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उनसे पारिवारिक रिश्तों की चर्चा की थी. कैप्टन ने कहा था कि सिद्धू के पिता सरदार भगवंत सिंह उनकी माताजी को राजनीतिक समर्थन दिया. तब सरदार भगवंत सिंह पटियाला कांग्रेस के प्रधान हुआ करते थे. जब कैप्टन सिंह आर्मी छोड़कर पटियाला आए तो सिद्धू के पिता ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया. तब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यह कहकर चुटकी ली थी कि 1963 में जब सिद्धू पैदा हुए थे, तब मैं चीन के बॉर्डर पर शिफ्ट हुआ था.

नवजोत सिंह सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह पर अकाली दल के खिलाफ नरम रुख रखने का आरोप लगाया था

कांग्रेस ने सिद्धू की बात क्यों मानी :बीजेपी से निकलने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू कई दलों के संपर्क में थे. आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल से उनकी नजदीकी जगजाहिर है. ऐसे हालात में अगर सिद्धू कांग्रेस छोड़ते हैं तो पार्टी को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, सिद्धू भले ही पार्टी को वोट नहीं दिला पाएं मगर हराने का माद्दा जरूर रखते हैं. अभी 117 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस की 77 सीटें हैं, जिनमें 40 सिद्धू के समर्थक हैं. कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, सुखबिंदर सिंह सरकारिया, सुखजिंदर सिंह रंधावा जैसे नेताओं ने कैप्टन का साथ छोड़ दिया.

अमरिंदर सिंह सोनिया गांधी के भरोसेमंद सिपहसलार थे, मगर सिद्धू राहुल और प्रियंका के करीबी हैं

पार्टी के सर्वे में सिद्धू पड़े कैप्टन पर भारी : नवजोत सिंह सिद्धू राहुल गांधी के करीबी में शामिल हैं. इस कारण जब मनमुटाव की खबरें आईं तब भी कांग्रेस ने सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. हाईकमान को यह विश्वास दिलाने में कामयाब रहे कि सीएम अमरिंदर सिंह विपक्षी अकाली दल के खिलाफ नरम रुख रखते हैं, जिससे पार्टी को नुकसान हो सकता है. पार्टी के अंदरूनी सर्वे में भी सिद्धू पंजाब के कैप्टन पर भारी पड़े. नवजोत सिंह सिद्धू लगातार जनता को लुभाने वाले सवाल उठा रहे थे. यह रणनीति अमरिंदर सिंह पर भारी पड़ी. यह भी माना जा रहा कि हालातों को देखते हुए सिद्धू का कद बड़ा करने और अमरिंदर की विदाई का समर्थन कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी किया है.

राजमाता मोहिंदर कौर ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया था.

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद कांग्रेस छोड़ गए थे कैप्टन :पटियाला के राज परिवार के सदस्य कैप्टन अमरिंदर सिंह 70 के दशक में राजनीति में सक्रिय रहे. 1980 में पहली बार सांसद बने. 1984 में उन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में कांग्रेस छोड़ दी और अकाली दल में शामिल हो गए. जब प्रदेश में अकाली दल को सत्ता मिली तो वह कृषि, वन और पंचायती राज के मंत्री बने. 1992 से 98 तक वह अकाली दल ( पंथिक) में शामिल रहे. जब केंद्र में सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनीं तो वह कांग्रेस में लौट आए. 2002 से 2007 तक वह सीएम रहे. 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने मोदी लहर में भाजपा के दिग्गज नेता अरुण जेटली को अमृतसर में हराया था. 2017 में वह दोबारा पंजाब के सीएम बने.

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