सागर।एक तरफ देश में पांच राज्यों का विधानसभा चुनाव चल रहा है और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का एक तरह से बिगुल बज चुका है. वहीं दूसरी तरफ केंद्र की मोदी सरकार की तरफ से लाए गए इलेक्टोरल बांड के मामले की सुनवाई शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में खत्म हुई. इस मामले में संवैधानिक पीठ ने अपना फैसला रिजर्व रखा है. मामले की चर्चा बुंदेलखंड में होना इसलिए लाजमी है, क्योंकि राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता की लड़ाई एक बुंदेलखंड की बेटी सुप्रीम कोर्ट में लड़ रही हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं डाॅ. जया ठाकुर की.
इलेक्टोल बांड में पारदर्शिता को लेकर याचिका दायर:डाॅ. जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोल बांड में पारदर्शिता को लेकर याचिका दायर की है. खास बात ये है कि जया ठाकुर सिर्फ ने इस मामले को लेकर नहीं, बल्कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के नियम, ओबीसी आरक्षण, महिला आरक्षण मामले में भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. डॉ. जया ठाकुर की पहल पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी स्कूलों में सेनेटरी पैड मुफ्त बांटे जाने और हर स्कूल में गर्ल्स टाॅयलेट की अनिवार्यता पर सरकारों को सख्त निर्देश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में बाकायदा राज्यवार समीक्षा भी कर रहा है.
कौन है डॉ. जया ठाकुर:डाॅ. जया ठाकुर सागर जिले की बंडा कस्बे की रहने वाली हैं. उनकी स्कूली पढाई सागर संभागीय मुख्यालय पर हुई है और उन्होंने बीडीएस की डिग्री हासिल की है. जया ठाकुर की शादी दमोह में हुई है. पारिवारिक संस्कारों के चलते डॉ जया ठाकुर सामाजिक और राजनीतिक मामले में काफी सक्रिय रहती हैं. बुंदेलखंड इलाके में समाजसेवा और खासकर महिला सशक्तिकरण से जुडे़ कई आयोजन उन्होंने कराए हैं. उनके पति वरूण ठाकुर सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. जिनके माध्यम से वो कई गंभीर और जनहित से जुडे़ मामले सुप्रीम कोर्ट में उठाकर कई ऐतिहासिक फैसले करा चुकी हैं. हाल ही में इलेक्टोरल बांड मामले में हुई सुनवाई में डॉ. जया ठाकुर तीन याचिकाकर्ताओं में से एक थीं.
इलेक्टोरल बांड पर क्या कहना है जया ठाकुर का:डॉ जया ठाकुर ने इलेक्टोरल बांड में पारदर्शिता के अभाव का मुद्दा उठाया और कहा कि ''चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक आफ इंडिया के एतराज के बाद भी सरकार ने संशोधन लागू किए हैं. ऐसे में सिर्फ सत्ताधारी दलों को चंदा मिल रहा है.'' उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि ''लोकतंत्र में पारदर्शिता मुख्य अवयव है. जब चुनाव में हिस्सा लेने वाले एक उम्मीदवार से उसकी शैक्षणिक योग्यता, संपत्ति, अपराध और तमाम तरह की जानकारी मांगी जाती है तो राजनीतिक दलों के लिए ऐसी छूट क्यों दी जा रही है. राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए. राजनीतिक दलों को होने वाली गुमनाम फंडिग पारदर्शिता के साथ-साथ एक मतदाता के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है. निश्चित रूप से मुझे आशा है कि इस मामले में कोर्ट हमारे पक्ष में फैसला देगा, क्योंकि इस स्कीम में देश के समस्त नागरिकों के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है. इसमें चंदा देने वाले का नाम और राशि का खुलासा नहीं किया जाता है कि कौन व्यक्ति कितने पैसा दे रहा है. इससे सरकार की योजनाएं और कार्य भी प्रभावित होंगे. क्योंकि चंदा देने वाले अपने हित में नीतियां या निर्णय प्रभावित कराएंगे.''